कृषि

मध्यप्रदेश: रबी की गेहूं, चना, मटर और मसूर जैसी फसलों को ओला, पाला और ठंड ने पहुंचाया नुकसान

सरकार ने माना, प्राथमिक सर्वे में 34 तहसीलों के 3 हजार से अधिक किसानों की फसलों को नुकसान हुआ

Pooja Yadav
मध्यप्रदेश के किसान खेतों में खड़ी रबी फसलों पर ट्रैक्टर चला रहे हैं। इनकी फसलें ओला, पाला और ठंड के कारण फसल खराब हो गई है। गेहूं को 20 से 50 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा है तो दलहनी फसलों में चना, मसूर फसलें पूरी तरह बर्बाद है। यही हाल मटर का है। 
 
जरुरत से ज्यादा बारिश, कोहरे और ठंड के कारण ये फसलें खेतों में खड़ी-खड़ी सूख गई, जो बची है उसमें फूल नहीं लगे। जिन फसलों में लगे भी थे वे सूखकर झड़ गए। जिसके कारण किसानों ने इन फसलों पर ट्रैक्टर चला दिए हैं।
 
राज्य के राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा ने 14 फरवरी 2024 को विधानसभा में माना कि 34 तहसीलों के 343 गांवों में 3 हजार से अधिक किसानों की फसलें खराब हुई। ये तहसीलें बालाघाट, कटनी, नरसिंहपुर, सिवनी, डिडोंरी, मण्डला, सतना, सिंगरौली, पन्ना, अनूपपुर एवं छतरपुर जिले की है। नुकसान का यह आंकड़ा प्राथमिक सर्वेक्षण का है। अभी सर्वे चल रहा है और यह आंकड़ा बढ़ेगा।
 
इधर किसानों का कहना है कि उन्हें वास्तविक नुकसान के आधार पर मुआवजा दिया जाए, इसमें किसी तरह का भेदभाव न हो। किसानों को खरीफ की सोयाबीन व धान फसलों को भी नुकसान हुआ था, जिसके बाद कर्ज लेकर उन्होंने रबी की फसलें लगाई थी।

नर्मदापुरम की सिवनीमालवा के चापड़ाग्रहण के किसान सूरजबली जाट के पास 35 एकड़ जमीन है। इस बार रबी सीजन में उसने मुख्य रूप से चना व गेहूं की फसल बोई थी, जो दिसंबर के अंत में और जनवरी के शुरुआत में पड़े कोहरे के कारण 50 से 70 फीसदी तक खराब हो गई।
 
उन्होंने बताया कि 11 एकड़ में चने की फसल लगाई थी, शुरूआत में तो फसल अच्छी लगी थी, लेकिन जब फूल और फल लगने की बारी आई तभी तेज ठंड और कोहरा पड़ने लगा। जिसके कारण पेड़ों में ही फूल सूख गए और गिरने लगे। 70 फीसद पौधे अफलन का शिकार हुए।
 
चना लगाने पर प्रति एकड़ 15 से 18 हजार रुपये खर्च आया था, लागत भी नहीं निकलेगी। कुछ चने के टुकड़ों पर तो कटाई से पहले ही ट्रैक्टर चलाना पड़ा। गेहूं की फसल भी जगह-जगह से पीली पड़ गई, दाने प्रभावित होंगे।

सूरजबली का कहना है कि खरीफ में लगाई सोयाबीन, धान की फसल भी खराब हुई थी। शुरू में तो फसल ठीक थी लेकिन जब फसल पकने वाली थी तब लगातार बारिश हुई और सोयाबीन पीला पड़ने के बाद खेतों में ही सूख गया था। बामुश्किल प्रति एकड़ 8 से 10 क्विंटल तक होने वाला सोयाबीन 3 क्विंटल ही हुआ था। जिसके कारण लागत भी नहीं निकली थी इसलिए रबी की फसल लेने के लिए 8 प्रतिशत ब्याज की दर से कर्ज लेकर रबी की फसलें लगाई थी।

नरसिंहपुर जिले के किसान किसन कुमार वर्मा के पास 12 एकड़ जमीन है। जिसमें से 1 एकड़ में मसूर, 3 एकड़ में चना व बाकी में गेहूं की फसलें लगाईं थी जिन्हें अधिक कोहरा पड़ने के कारण 70 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा। अधिक ठंड, कोहरे के कारण बालियां छोटी रह गई, मसूर पूरी तरह सूख गई। चने में फूल नहीं लगे और वह अफलन का शिकार हो गया। मसूर, चना फसल की कटाई करने से पहले ही उस पर ट्रैक्टर चलाना पड़ा।
 
किसान ने बताया कि प्रति एकड़ गेहूं पर 12 से 15 हजार, चने पर 18 से 20 हजार और मसूर पर 8 हजार रुपये खर्च हुए थे। अब तक सर्वे नहीं हुआ। जिले के किसानों का कहना है कि हरी मटर बेचने के लिए काफी पहले लगा दी थी लेकिन वह जनवरी के पहले सप्ताह में ही खराब हो गई, बाद में मसूर की फसल से भी हाथ धोना पड़ा। किसान का कहना है कि जो फसलें बची है, वे काफी हद तक उन्हें नुकसान पहुंचा है, उत्पादन गिरना तय है।

धार में गेहूं को नुकसान नहीं, चना पूरी तरह बर्बाद
किसान मुकेश भदौरिया के पास धार जिले में कुल 4 एकड़ जमीन है। जिसमें उसने चना और गेहूं की फसल ली थी। दिसंबर और जनवरी महीने में धार में रह-रहकर बारिश हुई। जिसकी वजह से चने की फसल बर्बाद हो गई लेकिन गेहूं को नुकसान नहीं पहुंचा। चना 2 एकड़ में लगाया था, जिस पर 15 हजार रुपये खर्च आया। अब तक सर्वे करने वाली टीम नहीं आई। वह खराब फसल की जुताई कर चुका है।
 
सब्जी फसलें भी प्रभावित
ओला, पाला, कोहरा और ठंड के कारण सब्जी फसलों को भी नुकसान पहुंचा है। लागत भी नहीं निकल रही है। जैविक खेती करने वाले नर्मदापुरम की ग्राम पंचायत रोहना के किसान रूप सिंह राजपूत का कहना है कि उसके पास कुल 4 एकड़ जमीन है। जिसमें से 3 एकड़ में गेहूं, आधे एकड़ में चना और आधे एकड़ में सब्जी फसलें जैसे- गोभी, टमाटर, सेम, धनिया, मिर्जी लगाई थी। इन सभी फसलों को जनवरी में पड़े कोहरे से 50 प्रतिशत तक नुकसान हुआ।
 
इसमें से अब तक गेहूं का सर्वे करने के लिए पटवारी आए थे लेकिन बाकी फसलों का किसी तरह का कोई सर्वे नहीं हुआ। वह कहते हैं कि गेहूं की खेती पर प्रति एकड़ 15 हजार रुपये, चने पर 18 हजार रुपये खर्च आया। किसान ने खरीफ सीजन में धान की फसलें लगाई थी जो पूर्व में कम बारिश व बाद में अतिवर्षा से खराब हो गई थी। तब भी नुकसान हुआ था।