मध्य प्रदेश के किसान इस बार बेहद खुश हैं। उन्हें इस साल मंडी और खुले बाजार में गेहूं की फसल का समर्थन मूल्य से ज्यादा का भाव मिला है। पिछले सालों की तरह ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ रहा। पहले उन्हें सहकारी सोसायटी में अपना नंबर आने और तुलाई के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था। इस साल मंडी में 2015 रुपए के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिकने वाला गेहूं 2700 से 3000 रुपए प्रति क्विंटल तक बिक गया है।
मप्र में अनाज खरीद की दो तरह की व्यवस्थाएं हैं। पहली कृषि उपज मंडी हैं। यहां पर पंजीकृत व्यापारी बोली लगाकर खरीदी करते हैं। दूसरी व्यवस्था में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों से गेहूं खरीदता है।
मप्र में पिछले सालों से गेहूं के बंपर उत्पादन के बाद किसानों से खरीद का बड़ा हिस्सा सरकार का ही रहा है। पिछले 4 वर्षों में 535.28 लाख मीट्रिक टन गेहूं एवं धान की खरीदी की गई।
इस साल भी राज्य में गेूहं की पैदावार काफी अच्छी रही है। कृषि विज्ञान केन्द्र रायसेन के वरिष्ठ वैज्ञानिक स्वप्निल दुबे ने बताया कि जनवरी-फरवरी में दो से तीन बार उस वक्त मावठा (सर्दी में होने वाले बारिश) गिरना रहा, जबकि फसलों को पानी की जरूरत थी और पौधे से बालियां निकल रही थीं। दिसम्बर से लेकर मार्च के तीसरे सप्ताह तक अच्छी और लंबी सर्दी पड़ने की वजह से पौधे की अच्छी बढ़वार हुई। इस वजह से दाने को पकने में काफी समय मिला। इस बीच कोई बड़ी प्राकृतिक विपदा भी नहीं आई, जिसके चलते फसल अच्छी रही। हालांकि कई इलाकों में दिसम्बर और जनवरी के महीने में ओले गिरने से चने और अन्य दलहनी फसलों पर विपरीत असर पड़ा।
अच्छी फसल को देखते हुए इस साल समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी को और सरल किया गया। एसएमएस सिस्टम बंद करके किसानों को वेबसाइट से अपना स्लॉट खुद बुक करने की सुविधा दी गई। 4,221 खरीद केंद्र बनाए गए। 19 लाख 81 हजार 506 किसानों ने पंजीयन कराया 9 लाख 3 हजार 142 स्लॉट बुक किए। 28 अप्रैल तक 3.87 लाख किसानों से 32.24 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया है जबकि 19 लाख से ज्यादा किसानों ने पंजीयन करवाया था। कुल 43 दिन की खरीदी के 24 दिन गुजर चुके हैं, लेकिन बताया जा रहा है कि यह पिछले साल की तुलना में अब तक पचास फीसदी कम है।
सीहोर जिले के नसरूल्लागंज के किसान सोनू पटेल ने बताया कि इस बार गेहूं का उत्पादन अच्छा रहा। औसतन 20 क्विंटल प्रति एकड़ उपज निकली। इस बार किसान अपनी उपज मंडियों में बेच रहे हैं क्योंकि इस वर्ष मंडियों में भाव ज्यादा मिल रहे हैं। जिन किसानों ने उपज शासकीय खरीदी केंद्र पर समर्थन मूल्य पर बेची है उन किसानों का पैसा बहुत बहुत दिनों में आ रहा है, यही वजह है कि किसान मंडियों में जाना पसंद कर रहे हैं।
भोपाल मंडी में खरीद करने वाले व्यापारी हरीश ज्ञानचंदानी कहते हैं कि मंडियों में खरीदी का ज्यादा असर यूक्रेन—रसिया युद्ध के कारण है वरना इस बार फसल इतनी अधिक थी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना भी मुश्किल था। विदेशों में ज्यादा मांग होने की वजह से किसानों और व्यापारियों को फायदा मिल रहा है।
किसान नेता केदार शंकर सिरोही ने बताया कि इस साल निर्यात बढ़ने से मंडियों में समर्थन मूल्य से ज्यादा कीमत मिल रही है।
सरकार के जनसंपर्क विभाग की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि पिछले एक माह में मप्र से 2 लाख 43 हजार 600 मीट्रिक टन गेहूं निर्यात किया गया। 59 लाख 24 हजार 800 मीट्रिक टन गेहूं और भेजा जाना है। मप्र का ज्यादातर गेहूं कांडला बंदरगाह गुजरात के जरिए विदेशों में निर्यात हो रहा है।
किसान नेता सुनील गौर कहते हैं कि यह सीधे तौर पर रूस और यूक्रेन युद्ध से जुड़ा मसला है, इन दोनों ही देश की दुनिया में गेहूं निर्यात में बड़ी भागीदारी है, हालांकि हम इसका पूरी तरह से फायदा नहीं उठा पाए हैं। ट्रांसपोर्टेशन के अभाव और समन्वय की दिक्कतों के कारण हम कम निर्यात कर पाए हैं। किसानों को भी इससे कहीं ज्यादा फायदा हो सकता था।