कृषि

मध्य प्रदेश: अगस्त में सूखे से और सितंबर में बारिश से फसलें बर्बाद

मध्य प्रदेश के कई जिलों में 3 सितंबर 2023 तक सूखे जैसे हालात थे, लेकिन उसके बाद हुई भारी बारिश ने हालात ही बदल दिए

Pooja Yadav

मध्य प्रदेश के किसानों पर सूखे और बारिश की मार एक साथ पड़ी है। पहले अगस्त में सूखे ने किसानों की सोयाबीन फसल को भारी नुकसान पहुंचाया, अब सितंबर में हुई भारी बारिश ने गन्ने की फसल को मुश्किल में डाल दिया है।

नर्मदापुरम जिले की सिवनी मालवा तहसील के ग्राम भैरोपुर के रहने वाले किसान संतोष पटवारी बताते हैं कि अगस्त माह में उनके क्षेत्र में 18 दिन तक बारिश नहीं हुई थी। सूखे जैसे हालत निर्मित हो गए थे। इससे धान, मक्का, सोयाबीन की फसल सूखने की कगार पर पहुंच गई। सितंबर के पहले सप्ताह में लंबे अंतराल के बाद बारिश शुरू हो गई। भारी बारिश से इल्ली तो गायब हो गई, लेकिन तेज हवा के कारण सोयाबीन की फसल जमीन पर बिछ गई।

वह कहते हैं कि कहीं-कहीं सोयाबीन फसल खड़ी है, लेकिन उसमें फल्लियां नहीं है। एक एकड़ में फसल की बुआई करने से लेकर बीज खरीदने व अन्य खर्चे मिलाकर न्यूनतम 15 से 18 हजार रुपए खर्च हुए थे। अब यह राशि भी निकलने की उम्मीद नहीं है।

इसी जिले के ग्राम बैराखेड़ी निवासी शैलेंद्र सिंह राजपूत कहते हैं कि उन्होंने 9 एकड़ में धान लगाई थी। अचानक तेज बारिश हुई और बाढ़ के कारण धान डूब गई और कुछ जमीन पर बिछ गई। वह कहते हैं कि 50 प्रतिशत भी उत्पादन हो जाए तो किस्मत है।

सिवनी मालवा के किसान सूरज बली जाट कहते हैं कि मैंने तो 20 एकड़ में सोयाबीन लगाई है। मजदूरी, मेहनत, डीजल, बीज की कीमत मिलाकर प्रति एकड़ 25 हजार रुपए का खर्च बैठा है, यह राशि भी निकल पाना मुश्किल है क्योंकि अगस्त महीने में बारिश नहीं हुई। किसी तरह मोटर पंप से सिंचाई करके 5 एकड़ की फसल को बचाया। इल्लियां ने सोयाबीन की पत्तियां ही नहीं खाई बल्कि उसमें जो छोटी—छोटी फल्लियां लग रही थीं, उन्हें भी नुकसान पहुंचाया।

यह अकेले नर्मदापुरम जिले का हाल नहीं है। इसी जिले से सटे हरदा जिले की टिमरनी तहसील के चारखेड़ा गांव के किसान बसंत कुमार ने 15 एकड़ में सोयाबीन और 5 एकड़ में मक्के की फसल लगाई है। वह बताते हैं कि सोयाबीन को जबरदस्त नुकसान पहुंचा है। जो लागत लगाई है, वह भी नहीं निकल पाएगी।  

खेतों में चलाया ट्रैक्टर

शिवपुरी जिले के इमलौदा गांव के किसान वीरेंद्र सिंह बताते हैं कि उन्होंने खेत में उड़द की फसल लगाई थी। जब वह सूखने लगी तो उन्होंने ट्रैक्टर से जुताई कर खेत अगली फसल के लिए तैयार कर दिया। अब वह गेहूं की फसल लगाने की तैयारी कर रहे हैं। शिवपुरी जिले में 1 जून 2023 से सितंबर माह के पहले सप्ताह तक बारिश की स्थिति की बात करें तो यहां 560.30 मिमी औसत बारिश दर्ज की थी, जबकि जिले की औसत बारिश 816.3 मिमी है। बीते वर्ष कुल 1208.98 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई थी।

राजधानी भोपाल से सटे रायसेन जिले के गांव मोहनिया खेड़ी के किसान चंद्रेश सिंह बताते हैं कि 20 एकड़ खेत में धान की फसल लगाई थी। बारिश न होने से खेतों में दरारें पड़ गईं, जिसके कारण फसल सूखने की कगार पर पहुंच गई। इनमें से कुछ फसल को तो पानी देकर बचा लिया लेकिन बाकी पर ट्रैक्टर चलाना पड़ा। नर्मदापुरम जिले के बैराखेड़ी के किसान ओमप्रकाश सिंह भी 2 एकड़ में खड़ी धान फसल की जुताई कर चुके हैं। अकेले नर्मदापुरम, रायसेन जिले में ही किसानों ने फसलों पर ट्रैक्टर नहीं चलाए, बल्कि खंडवा, हरदा, सागर में भी हजारों किसान सूखे से परेशान होकर खेतों को बखर चुके हैं।


गन्ने को फायदा कम, नुकसान ज्यादा

अधिक बारिश के कारण गन्ने को नुकसान पहुंचने की खबर है। नरसिंहपुर जिले की गाडरवाड़ा तहसील के करप गांव के रहने वाले किसान प्रतीक शर्मा बताते हैं कि उन्होंने 34 एकड़ में गन्ने की फसल लगाई है। इसमें से 60 प्रतिशत फसल सितंबर माह के दूसरे सप्ताह में हुई अधिक बारिश और उसके बाद चली तेज हवा के कारण गिर गई है। अब पत्तियां पीली पड़ रही हैं। कुछ जगह से गन्ने टूट गए हैं। गन्ना दिसंबर व जनवरी में कटेगा, तब तक गिरी हुई गन्ने की फसल को चूहे भी नुकसान पहुंचाएंगे। बारिश बंद होने के बाद सिंचाई करनी होती है, लेकिन गिरी हुई फसल में सिंचाई करना मुश्किल हो जाएगा। गिर चुकी फसल के कारण 40 से 45 प्रतिशत तक नुकसान तय है।

बैतूल जिले के लाखापुर गांव के किसान गोकूल यादव बताते हैं कि उन्होंने 2 एकड़ में गन्ने की फसल लगाई है। गर्मी में इसे पानी देकर बचाया था। जब अगस्त में बारिश नहीं हुई तो फिर से सिंचाई शुरू कर दी थी। जैसे ही सितंबर महीने में बारिश का दौर शुरू हुआ तो लगा कि फसल अब संभल जाएगी। लेकिन हुआ उलट। तेज बारिश के साथ चली हवा के चलते जहां जमीन दलदली हो गई, वहीं गन्ना भी जमीन पर बिछ गया। छिंदवाड़ा, बैतूल, हरदा, नर्मदापुरम समेत लगभग सभी जिलों में मक्के की फसल को भी भारी नुकसान हुआ है।  

वैज्ञानिक भी नुकसान से सहमत
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सोयाबीन रिसर्च सेंटर इंदौर के वरिष्ठ वैज्ञानिक बीयू दुपारे भी मानते हैं कि पहले सूखे से और बाद में अधिक बारिश होने के कारण फसलों को नुकसान पहुंचा है। वह कहते हैं कि पूर्व में लंबे समय तक बारिश नहीं हुई। तब सोयाबीन की वह वैरायटी प्रभावित हुई जो जल्दी बोई जाती है और जल्दी पक जाती है। जब तरह की वैरायटी वाली फसलों को पानी की जरूरत थी तब बारिश नहीं हो रही थी। सितंबर महीने में अब ऐसे समय में अधिक बारिश हो गई है जब कम अवधि वाली फसल पकने को तैयार है।

नर्मदापुरम जिले के कृषि अनुसंधान केंद्र पवारखेड़ा के वरिष्ठ वैज्ञानिक संजीव वर्मा कहते हैं कि सूखे से धान फसल को काफी नुकसान पहुंचा है। उसकी ग्रोथ रुक गई थी। कुछ किसानों ने सिंचाई करके जैसे तैसे फसल तो बचाई लेकिन उत्पादन पर असर पड़ना तय है, क्योंकि सूखे के कारण दाने की मोटाई और प्रति पेड़ संख्या कम होनी तय है।

नहीं मिलेगा बीमा का भी लाभ

किसान कह रहे हैं कि उन्हें किसी तरह के नुकसान की भरपाई का आश्वासन कहीं से नहीं मिला है। किसान सेवकराम यादव कहते हैं कि अब तक शासन की ओर से इस तरह की कोई तैयारी नहीं है। यदि होती तो खेतों का सर्वे होता और पंचनामा बनाया जाता। यहीं बात नर्मदापुरम जिले के किसान सुरेंद्र राजपूत कहते हैं।

उनका कहना है कि उन्होंने तो प्रशासन को नुकसान से अवगत भी करा दिया है लेकिन अब तक किसी तरह का कोई आश्वासन नहीं मिला है। वह कहते हैं यदि प्रशासन ध्यान नहीं देगा तो बीमा कंपनी भी लाभ नहीं देगी, क्योंकि जब शासन नुकसान मानेगा, तभी उन्हें बीमा कंपनी से भी लाभ मिल पाएगा। यदि फसल कटने के पहले तक नुकसान को लेकर सर्वे नहीं कराया तो फसल बीमा कराने के बाद भी किसानों को लाभ नहीं मिलेगा।