हरियाणा के जिले हिसार के गांव स्याहड़वा के किसान प्रदीप कुमार ने चार एकड़ रकबे में स्ट्रॉबेरी की खेती की थी। इस बार अधिक ठंड की वजह से प्रति एकड़ करीब दस मीट्रिक टन की पैदावार हुई थी। प्रति एकड़ करीब 10 से 12 लाख रुपए की आमदनी होने की उम्मीद थी, लेकिन लॉकडाउन ने सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। मुनाफा तो दूर, लागत निकालना मुश्किल हो गया है। बकौल प्रदीप, मुनाफा तो दूर प्रति एकड़ करीब एक से डेढ़ लाख रुपये का नुकसान हुआ है। वहीं, रोहतक के सुनारिया गांव निवासी जिले सिंह और उनके बेटे दीपक का कहना है कि जब स्ट्रॉबेरी तोड़कर बाजार तक पहुंचाना था तो लॉकडाउन शुरू हो गया। उस दौरान कई मजदूर अपने गांव वापस चले गए। इस वजह से चालीस फीसदी स्ट्रॉबरी पौधे में ही खराब हो गए। प्रति एकड़ दो लाख से अधिक नुकसान हो गया।
अचानक हुए लॉकडाउन ने हरियाणा के स्ट्रॉबेरी किसानों की मिठास कड़वी कर दी है। हरियाणा के हिसार, रोहतक, भिवानी, सोनीपत समेत अन्य जिलों में करीब 500 एकड़ में स्ट्रॉबेरी की खेती होती है। बीते वर्ष 4300 मीट्रिक टन पैदावार हुई थी। अच्छी कीमत मिलने की वजह से प्रगतिशील किसान इसकी खेती कर रहे है। किसान जिले सिंह बताते है एक एकड़ में 25-30 हजार पौधे लगते है और करीब पांच लाख रुपये लागत आती है। प्रति एकड़ करीब 8-12 मीट्रिक टन पैदावार होती है। लॉकडाउन लंबी होने की वजह से नुकसान हो गया।
मार्च-अप्रैल के दरम्यान स्ट्रॉबरी बाजार और फूड प्रोसेसिंग यूनिट में बिक्री के लिए पहुंच जाती है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से बाजार तक स्ट्रॉबरी नहीं पहुंच पाई। फूड प्रोसेसिंग यूनिट से जो ऑर्डर थे, वह रद्द हो गई। बाजार तक नहीं पहुंचने से रखे-रखे स्ट्रॉबरी खराब हो गई। हिसार स्थित कृषि यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ अनिल गोदारा बताते है, हरियाणा में कैमारोजा, विंटर डान, सीड चार्ली व पजारो वैरायटी की स्ट्रॉबेरी उगाई जा रही है। सितंबर में बुआई होती है और फ्रुटिंग पीरियड मार्च महीने तक जारी रहता है। इसका फल सिर्फ तीन या चार दिनों तक ही उपयोग किया जा सकता है। अधिकतम 30 डिग्री तक तापमान ठीक है। इसके बाद यह पौधे में ही खराब होने लगता है।
किसानों का कहना है कि इस बार लॉकडाउन की वजह से स्ट्रॉबरी बड़ी मंडियों तक नहीं पहुंच पाई। हिसार में 72 स्ट्रॉबरी किसानों ने किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बना रखा है। एफपीओ के प्रमुख महेंद्र सिंह बताते है, इस बार ऊना (हिमाचल प्रदेश) स्थित एक कंपनी से 250 मीट्रिक टन का ऑर्डर आया था। कई कंपनियों से बातचीत चल रही थी। अप्रैल में पहुंचाना था। लॉकडाउन से दो दिन पहले 40 मीट्रिक टन पहुंचा दिए था। बाकी ऑर्डर कंपनी ने रद्द कर दिए। 20 किलो के एक कैरेट पर पिछले साल 250 से 300 रुपये मिल रहा था, इस बार 350 से 400 रुपये प्रति कैरेट था। बकौल महेंद्र, स्थानीय बाजारों तक किसी तरह कुछ पहुंचाए है, लेकिन वह घाटा ही है। स्ट्रॉबरी के लिए कोई कोल्ड स्टोरेज की सुविधा होती तो रखा जा सकता था।