कृषि

धूल पर सवार हो दूर तक पहुंच सकते है पौधों को लगने वाले रोग, किसान रहें सचेत

रिसर्च के मुताबिक यह रोगजनक महाद्वीपों को पार कर लम्बी यात्रा के बाद भी जीवित रह सकते हैं। इससे वे दूर-दराज के क्षेत्रों में भी फसलों को निशाना बना सकते हैं

Lalit Maurya

एक ताजा रिसर्च से पता चला है कि पौधों को निशाना बनाने वाली बीमारियां और रोगजनक धूल पर सवार हो लम्बी दूरी की यात्राएं कर सकते हैं। जो महाद्वीपों और महासागरों के पार भी फसलों को अपना शिकार बना सकते हैं।

कॉर्नेल विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए इस अध्ययन के मुताबिक यह रोगजनक इस लम्बी यात्रा के बाद भी जीवित रह सकते हैं। इससे वे दूर-दराज के क्षेत्रों में भी पौधों को संक्रमित कर सकते हैं। जो वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है। इस अध्ययन के नतीजे 25 सितम्बर 2023 को जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुए हैं।

अपने इस रिसर्च के दौरान वैज्ञानिकों ने अर्थ सिस्टम मॉडल की मदद से 2022 में आई एक प्रमुख धूल भरी आंधी का अध्ययन किया है। वैज्ञानिकों ने इस महाकाय तूफान को  "गॉडजिला" नाम दिया है। इस तूफान ने उत्तरी अफ्रीका से कैरेबियन और दक्षिण-पूर्वी अमेरिका तक करीब 2.4 करोड़ टन धूल पहुंचाई थी।

शोधकर्ताओं को पता चला है कि पौधों में फैलने वाले घातक फंगस 'फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम' (एफ ऑक्सी) के बीजाणु इस ‘गॉडजिला’ के जरिए समुद्र पार भी ले जाए गए थे, जो पौधों के लिए घातक हो सकते हैं। यह रोगजनक कृषि क्षेत्रों के साथ दूसरे क्षेत्रों में भी फैल गए थे। विशेष रूप से दक्षिणपूर्वी लुइसियाना, मैक्सिको, हैती, डोमिनिकन रिपब्लिक और क्यूबा में इनका जोखिम कहीं ज्यादा था।

गौरतलब है कि फंगस 'फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम' वैश्विक स्तर पर फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले सबसे घातक रोगजनकों में से एक है। यह फंगस 100 से भी ज्यादा फसलों को अपना निशाना बना सकता है। यही वजह है कि इस फंगस को किसानी के लिए एक बड़ा सिरदर्द समझा जाता है।

कॉर्नेल एग्रीटेक और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता कैटलिन गोल्ड का कहना है कि, इस विशाल धूल भरी आंधी में 13,000 से अधिक जीवित बीजाणु हो सकते हैं। हालांकि उनके मुताबिक यह आंकड़ा बड़ी नहीं है, लेकिन यह पहला मौका है जब सामने आया है कि मिट्टी में मौजूद यह रोगजनक धूल के जरिए महासागरों को पार कर हजारो किलोमीटर की यात्रा कर सकते हैं।

पिछले शोधों की मदद से की गई मॉडलिंग में सामने आया है कि इनमें से 'फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम के 99 फीसदी बीजाणु पराबैंगनी विकिरण के संपर्क में आने पर तीन दिनों के भीतर मर जाते हैं। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने इन बीजाणुओं के आकार, वजन और घनत्व को भी ध्यान में रखा है।

कैसे महाद्वीपों के बीच यात्रा करते हैं यह रोगजनक

अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता हन्नाह ब्रोडस्की का इनके बारे में कहना है कि, "जब हम लम्बी दूरी की यात्रा करने वाले कुल बीजाणुओं को देखते हैं, तो इनमें वे बीजाणु भी शामिल हैं जो वायुमंडल में रहते हुए निष्क्रिय हो गए थे। हम पाते हैं कि इनमें से कई बीजाणु ऐसे हैं जो बहुत लंबी दूरी की यात्रा कर सकते हैं।“ हालांकि उनका यह भी कहना है कि, "मुख्य रूप से जो चीज लंबी दूरी तक बीमारियों के प्रसार को रोकती है, वह यह है कि क्या यह रोगजनक कृषि क्षेत्रों में पहुंचने पर भी जीवित रहते हैं।"

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि यह रोगजनक महाद्वीपों के बीच कैसे यात्रा करते हैं। इस दौरान उन्होंने धूल के स्रोत के पास के क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जहां बीजाणु बहुत कम समय के लिए हवा में रहते हैं, और इन क्षेत्रों में संभवतः अधिकांश रोगजनक इस अवस्था में थे जो अभी भी अभी भी फैल सकते हैं।।

ब्रोडस्की ने बताया कि, "दुनिया के कुछ हिस्सों में ऐसे रोगजनकों के देखे जाने की आशंका बहुत ज्यादा है। इनमें यूरोप, एशिया और उत्तरी अफ्रीका के बीच इनके प्रसार की सबसे ज्यादा आशंका है, जहां यह पौधों के बीच बीमारियों के फैलने की वजह बन सकते हैं। उनके मुताबिक यह क्षेत्र कहीं ज्यादा खतरे में हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों में किसान उन जगहों पर फसलें उगाते हैं जहां धूल और बीमारी पैदा करने वाले एजेंट कहीं ज्यादा होते हैं।

यदि  मिट्टी के अनुकूल रहने वाले रोगजनक 'फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम' को देखें तो यह उन सभी महाद्वीपों पर पाया जाता है, जहां पैदावार होती है। इतना ही नहीं यह बीमारी 100 से ज्यादा फसलों और पौधों को नुकसान पहुंचा सकती है, जिसकी वजह से कुछ क्षेत्रों में पैदावार को 60 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है। साथ ही यह किसानों को करोड़ों डॉलर की चपत भी लगा सकती है।

ऐसे में, फंगल रोगों के प्रसार को समझना और उन कृषि क्षेत्रों का पता लगाना जहां यह रोगजनक उतर सकते हैं, वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। रिसर्च के मुताबिक 'फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम' आम तौर पर हवा में नहीं पनपता, लेकिन शोधकर्ताओं ने पाया है कि ये रोगजनक धूल के बादलों में मिट्टी के कणों पर चिपक सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया है कि ऐसे सभी बीजाणु जो पनप सकते हैं उनमें से 53 फीसदी का स्रोत उप-सहारा अफ्रीका था। इतना ही नहीं अटलांटिक के पार यात्रा करने वाले 14 फीसदी रोगजनक इसी क्षेत्र में उत्पन्न हुए थे। ऐसे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता कैटलिन एम गोल्ड का सुझाव है कि, "बीमारी से निपटने के लिए संभवतः इस क्षेत्र पर मुख्य फोकस होना चाहिए।"