फोटो साभार: आईस्टॉक 
कृषि

जमीन-मिट्टी-पानी सीमित, भुखमरी से बचने के लिए दिखानी होगी समझदारी: एफएओ

एफएओ की नई रिपोर्ट में 2050 तक बढ़ती आबादी को भोजन देने के लिए भूमि, मिट्टी और जल का सतत व समझदारीपूर्ण उपयोग एकमात्र रास्ता है

DTE Staff

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने अपनी नई प्रमुख रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि कि 2050 तक 10 अरब लोगों को भोजन खिलाने के लिए हमें भूमि, मिट्टी और पानी का बहुत समझदारी से उपयोग करना होगा। भविष्य की खाद्य सुरक्षा तभी संभव है जब हम इन संसाधनों का सही और जिम्मेदारी से प्रबंधन करें।

सोमवार एक दिसंबर को जारी द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स लैंड एंड वाटर रिसोर्सेज फ़ॉर फ़ूड एंड एग्रीकल्चर 2025 की नवीनतम रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि सभी महत्वपूर्ण संसाधन सीमित हैं। इन्हें सुरक्षित रखना न केवल वर्तमान बल्कि आने वाले दशकों में भी वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बेहद आवश्यक है।

“अधिक और बेहतर उत्पादन की क्षमता” विषय के तहत रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमि और जल संसाधनों में भोजन उत्पादन को टिकाऊ रूप से बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं, जिन्हें अब तक अनदेखा किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 में लगभग 67.3 करोड़ लोग भूख का सामना कर रहे थे, कई इलाके अभी भी बार-बार होने वाली गंभीर खाद्य समस्याओं से परेशान हैं। जैसे-जैसे वैश्विक जनसंख्या 2050 तक 9.7 अरब के करीब पहुंचेगी, इन समस्याओं में और वृद्धि होगी। ऐसी स्थिति में कृषि क्षेत्र को 2012 की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक भोजन, चारा और रेशा, और साथ ही 25 प्रतिशत अधिक मीठा पानी उपलब्ध कराना होगा।

मुख्य चुनौती: कम संसाधनों में अधिक उत्पादन

पिछले 60 वर्षों में वैश्विक कृषि उत्पादन तीन गुना हो गया, जबकि कृषि भूमि में मात्र 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई, लेकिन इसका पर्यावरण और समाज पर भारी प्रभाव पड़ा। एफएओ के आंकड़ों के अनुसार, इंसानों की गतिविधियों के कारण जो भी जमीन खराब हो रही है, उसमें से 60 प्रतिशत  हिस्सा कृषि भूमि का है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि क्षेत्र का विस्तार अब संभव नहीं है। उदाहरण के लिए, वनों की कटाई या नाजुक पारिस्थितिक तंत्रों को कृषि में बदलना उन महत्वपूर्ण जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को नष्ट करेगा, जिन पर कृषि स्वयं निर्भर करती है।

समाधान मौजूद हैं

रिपोर्ट में भूमि, मिट्टी और जल संसाधनों के सतत उपयोग और प्रबंधन के लिए विज्ञान-आधारित सिफारिशें की गई हैं।

रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में 2085 तक 10.3 अरब लोगों को भोजन उपलब्ध कराने की क्षमता है, जब वैश्विक जनसंख्या अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचने का अनुमान है। लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि भोजन कैसे पैदा किया जाता है और इसके पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक लागतें क्या होंगी।

इसलिए भविष्य में उत्पादकता बढ़ाने का रास्ता सिर्फ उत्पादन बढ़ाना नहीं, बल्कि और अधिक समझदारी से उत्पादन करना होगा। इसका अर्थ है:

·         उपज अंतर को कम करना — यानी वर्तमान उपज और संभावित उपज के बीच का अंतर भरना।

·         लचीली और टिकाऊ फसल किस्मों को अपनाना।

·         स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप, संसाधनों का कम उपयोग करने वाली खेती की पद्धतियों को लागू करना, ताकि भूमि, मिट्टी और जल की विशिष्ट स्थितियों के अनुसार बेहतर परिणाम मिल सकें।

वर्षा-आधारित कृषि, जिस पर लाखों छोटे किसान निर्भर हैं, व्यापक अवसर प्रदान करती है। संरक्षित कृषि, सूखा-सहिष्णु फसलें और जल-संरक्षण, फसल विविधीकरण तथा जैविक कम्पोस्टिंग जैसी सूखा-लचीली प्रथाओं को बढ़ावा देकर उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि की जा सकती है। ऐसी पद्धतियां छोटे किसानों की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करती हैं, साथ ही मिट्टी के स्वास्थ्य और खेत की जैव-विविधता को भी बढ़ाती हैं।

समेकित कृषि प्रणालियां जैसे एग्रोफॉरेस्ट्री, चक्रीय चराई, चारा सुधार, और धान–मछली पालन- टिकाऊ तीव्रीकरण के अतिरिक्त रास्ते प्रदान करती हैं।

विकासशील क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ाने की क्षमता विशेष रूप से अधिक है। उदाहरण के लिए, उप-सहारा अफ्रीका में वर्षा-आधारित फसलों की उपज वर्तमान में उपयुक्त प्रबंधन के तहत प्राप्त होने वाली संभावित उपज का केवल 24 प्रतिशत ही है।

रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि न तो कोई एकमात्र मार्ग है, और न ही कोई एक जैसा समाधान सभी देशों पर लागू होता है। टिकाऊ समाधानों के लिए आवश्यक है:

·         सुसंगत नीतियां

·         मजबूत शासन

·         सुलभ डेटा और तकनीक

·         नवाचार

·         जोखिम प्रबंधन

·         सतत वित्त और निवेश

·         तथा संस्थानों और समुदायों की क्षमता को मजबूत करना

जलवायु संकट यह निर्धारित कर रहा है कि भोजन कहाँ और कैसे उगाया जा सकता है। रिपोर्ट की भूमिका में एफएओ के महानिदेशक क्यू डोंग्यू लिखते हैं कि “भूमि और जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए आज किए जाने वाले हमारे निर्णय यह तय करेंगे कि हम वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं को कैसे पूरा करेंगे, जबकि आने वाली पीढ़ियों के लिए दुनिया की रक्षा भी करेंगे।”