कृषि

किसानों की हर तरह की मदद करता है किसान क्रेडिट कार्ड

Vivek Mishra

1998 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) लॉन्च किया था जिसका मकसद किसानों को संस्थागत ऋण मुहैया कराना है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ओर से 2019 में जारी “रिपोर्ट ऑफ द इंटरनल वर्किंग ग्रुप टू रिव्यू एग्रीकल्चरल क्रेडिट” के मुताबिक कार्ड का मकसद किसानों को एकल खिकड़ी के जरिए पर्याप्त और समय से क्रेडिट सपोर्ट देना है।

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इस कार्ड के तहत दिए गए ऋण में फसलों की बुआई-कटाई के लिए पैसों की जरूरत, फसल कटाई के बाद खेत प्रबंधन की जरूरतों के लिए, उत्पाद की मार्केटिंग के लिए, खेत में इस्तेमाल मशीनों के प्रबंधन के लिए, कृषि से जुड़े अन्य कार्यों के लिए व किसानों के घर के खर्च जैसे मद शामिल होते हैं।

केसीसी सभी तरह के किसानों को कवर करता है लेकिन यह खासतौर से देश में किसानों में 86 फीसदी हिस्सेदारी करने वाले लघु व सीमांत किसानों (2 हेक्टेयर तक भूमि वाले) के लिए ज्यादा मददगार है। केसीसी पांच साल की अवधि के लिए उपलब्ध होने वाला ऋण है, इसके बाद दोबारा इसे बढ़वाया जा सकता है। खेत मालिक, बटाई के किसान, मौखिक लीज, कृषि श्रमिक और खेती-किसानी से जुड़े स्वयं सहायता समूह भी केसीसी के लिए योग्य हैं।

4 अप्रैल, 2022 को लोकसभा में राज्य वित्त मंत्री भगवत कारद के जवाब के मुताबिक 2022 तक देश में 7.3 करोड़ केसीसी कार्ड संचालित हैं। केसीसी की ऋण सीमा व्यवसायिक व सहकारी, ग्रामीण बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के 4 अप्रैल, 2018 के मास्टर सर्कुलर के आधार पर ही तय करते हैं। केसीसी किसी क्रेडिट कार्ड की तरह ही काम करता है जिसमें कई फायदे जुड़े हुए हैं। सामान्य क्रेडिट कार्ड के 20 फीसदी से भी अधिक मासिक ब्याज दर के मुकाबले केसीसी की अधिकतम छमाही ब्याज दर 7 फीसदी है। यदि समय से पैसा जमा किया जाए तो इसमें 3 फीसदी की छूट भी मिलती है।

केसीसी बनवाने में अधिकतम एक महीने का वक्त लग सकता है। आवेदक को केसीसी हासिल करने के लिए बैंक के पास जमीन या किराए पर ली गई खेती के दस्तावेज पेश करने होते हैं। बैंक इन दस्तावेजों को और संबंधित जमीन व फसलों की जांच करता है, जिसके आधार पर किसी किसान के क्रेडिट कार्ड की ऋण सीमा तय होती है।

केसीसी में अधिकतम सीमा भी नहीं है। बड़े किसान करोड़ों में कृषि ऋण ले सकते हैं। हालांकि, किसान को उसकी अधिकतम ऋण सीमा पहले ही वर्ष नहीं दी जाती, बल्कि पूरी पांच वर्ष की अवधि में वह अधिकतम तय की गई ऋण सीमा की निकासी कर सकता है। निकासी में पांचवे वर्ष तक 10 फीसदी लिमिट बढ़ती रहती है।

हालांकि, भले ही कागज में भूमिहीन किसानों के लिए केसीसी दिए जाने का प्रावधान है लेकिन यह बहुत ही दुर्लभ है कि भूमिहीन किसान को बैंक केसीसी दे। आरबीआई की 2019 की रिपोर्ट में नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट्स ऑल इंडिया रुरल फाइनेंशियल इन्क्लूजन सर्वे 2016-2017 के हवाले से कहा गया है कि उचित कानूनी फ्रेमवर्क और कृषि संबंधी दस्तावेज की अनुपलब्धता के चलते बटाईदार किसान, साझा किसान, मौखिक लीज वाले किसान व भूमिहीन श्रमिक किसान संस्थागत कृषि ऋण हासिल करने में बहुत ही मुश्किलों का सामना करते हैं।

केसीसी से पैसे की निकासी के लिए आरबीआई ने मास्टर सर्कुल, 2018 में जारी अपने प्रावधान में कहा है कि बैंक किसानों के सामान्य डेबिट-क्रेडिट कार्ड की तरह मैग्नेटिक स्ट्रिप वाले केसीसी कार्ड मुहैया कराएं। हालांकि, बैंक इसका पालन करने में फिसड्डी साबित हो रहे हैं और किसानों को दूर-दराज इलाकों से आकर बैंक के चक्कर काटने पड़ते हैं। डाउन टू अर्थ के एक आरटीआई के जवाब में एसबीआई ने बताया कि सिर्फ 60 फीसदी केसीसी होल्डर्स को मैग्नेटिक स्ट्रिप कार्ड दिए गए हैं। ज्यादातर किसान केसीसी अकाउंट से पैसा अपने चेक के जरिए हासिल करते हैं।