“केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना (केबीएलपी) के चलते पन्ना टाइगर रिजर्व की अनूठी पारिस्थितिकी नष्ट हो सकती है। ऐसे में प्रस्तावित नदी जोड़ो परियोजना को मंजूर करने और उस पर काम शुरू करने से पहले पन्ना नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व के संरक्षण हितों को ध्यान में रखकर दीर्घ प्रभावों का विस्तृत अध्ययन होना चाहिए। साथ ही इस अध्ययन रिपोर्ट का भी परीक्षण होना चाहिए कि परियोजना के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए क्या उपाय सुझाए गए हैं।”
यह सख्त टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट में 30 अगस्त को केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) की ओर से दाखिल विस्तृत रिपोर्ट की सिफारिश का हिस्सा है। नदी जोड़ परियोजना से जुड़ी इस रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट जल्द ही विचार करेगा। सीईसी ने कहा है कि इस प्रस्तावित परियोजना में सिंचाई की जरूरत पूरा करने और गरीबी खत्म करने के दावे का परीक्षण उस विशेषज्ञ एजेंसी से कराना चाहिए जो शुष्क क्षेत्र की कृषि और मिट्टी व जल संरक्षण पर खास विशेषज्ञता रखती हो। सीईसी ने भले ही अपनी सिफारिश में परियोजना के लिए संभावना छोड़ दिया हो लेकिन रिपोर्ट के तमाम हिस्सों में परियोजना की वैधता पर स्पष्ट सवाल भी उठाया है।
सीईसी ने रिपोर्ट में पन्ना राष्ट्रीय पार्क और पन्ना टाइगर रिजर्व के संरक्षण और हितों को लेकर परियोजना में पूर्व बचाव सिद्धांत (प्रीकॉशनरी प्रिंसिपल) को भी ध्यान में रखने की सलाह दी है। केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना के पहले चरण (केबीएलपी-1) की जांच के लिए सीईसी ने 27 से 30 मार्च का दौरा किया था। बिट्टू सहगल और मनोज मिश्रा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सीईसी का गठन कर विस्तृत फील्ड रिपोर्ट तलब की थी।
केएलबीपी के पहले चरण वाली परियोजना को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति ने 23 अगस्त, 2016 को 39वीं बैठक में वन्यजीव मंजूरी दी थी। सीईसी ने इस मंजूरी पर सवाल उठाया है। इस परियोजना में 6,017 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्जन शामिल है। इसके चलते न सिर्फ बाघों और वन्यजीवों के रहने लायक पन्ना राष्ट्रीय पार्क और पन्ना टाइगर रिजर्व को नुकसान है बल्कि केन में निर्माण के कारण नदी के पानी का बहाव भी मुड़ जाएगा जिससे केन घड़ियाल अभ्यारण्य को भी नुकसान होगा। इस अभ्यारण्य पर प्रशासनिक नियंत्रण पन्ना टाइगर रिजर्व का है। वन भूमि के डायवर्जन से करीब 10,500 हेकटियर वन पर्यावास जलमग्न हो सकता है।
पन्ना टाइगर रिजर्व को नुकसान के अलावा सीईसी ने सवाल किया है कि परियोजना के लिए पानी की उपलब्धता कैसे सुनिश्चित होगी? मसलन केन और बेतवा का कैचमेंट एरिया औसत 90 सेंटीमीटर वर्षाजल ही हासिल करता है। खासतौर से सूखे के समय दोनों नदियों की बेसिन में पानी की उपलब्धता कम हो जाती है, जिसके चलते जलसंकट बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।
जबकि सूखे की स्थिति में कई अध्ययन इस ओर इशारा करते हैं कि दोनों ही बेसिन में अनुमान से भी कम जल मौजूद होता है। केबीएलपी के पहले चरण में केन के निचले बेसिन और बेतवा के ऊपरी हिस्से को विकसित किया जाना है। इससे ऊपरी केन बेसिन या कैचमेंट क्षेत्र से जुड़े किसान पानी से महरूम हो जाएंगे। उन्हें लघु सिंचाई परियोजनाओं की ओर देखना पड़ेगा। बिना केन बेसिन के ऊपरी हिस्से में सिंचाई सुविधाओं को विकसित किए हुए केन बेसिन के जरिए बेतवा बेसिन को सरप्लस पानी भेजने का अनुमान भी ठीक नहीं है, सीईसी ने कहा है कि इस परियोजना में 28 हजार करोड़ रुपये पब्लिक फंड शामिल है, जो इस तरह के काम से बर्बाद हो सकता है।
सीईसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच पानी के बंटवारे का मामला भी अभी तक साफ नहीं हो पाया है। इस परियोजना से उत्तर प्रदेश ज्यादा पानी की मांग कर रहा है। सीईसी के समक्ष यूपी ने अपना पक्ष रखते हुए 50 फीसदी पानी हासिल करने का दावा किया है। यूपी करीब 530.5 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) पानी की मांग कर रहा है जबकि डीपीआर के मुताबिक ऊपरी बेतवा बेसिन में 384 एमसीएम पानी का इस्तेमाल किया जाएगा। पानी न होने की स्थिति में यूपी ने जितनी मांग की है उस हिसाब से ऊपरी बेतवा क्षेत्र में सिंचाई विकसित करने के लिए पानी नहीं रह जाएगा। यह भी संदेह जताया जा रहा है कि केन के पास बेतवा नदी को देने के लिए सरप्लस पानी होगा ही नहीं। ऐसी स्थिति में केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना का पहला चरण खुद ही विफल हो जाएगा।
वहीं, सिंचाई के जो फायदे केबीएलपी से गिनाए गए हैं उस पर सीईसी का कहना है कि जो फायदा केबीएलपी से गिनाया जा रहा है वह तो अब भी बिना परियोजना मौजूद है। मसलन, अभी यूपी में बैरियारपुर पिक अप वियर (पानी को ऊपर चढ़ाने वाली संरचना) से करीब 2.14 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई हो रही है जबकि केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना (केबीएलपी) से सिर्फ 2.52 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होगी। मात्र 0.38 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षेत्र बढ़ेगा। इसी तरह मध्य प्रदेश (एमपी) भी अभी केन नदी के बैरियापुपर पिकअप वीयर से पूरी त रह पानी का इस्तेमाल कर रहा है। इसी तरह केन बेसिन में 182 सिंचाई परियोजनाएं और बेतवा बेसिन में 348 परियोजनाएं शामिल हैं। सीईसी ने कहा है कि केबीएलपी-1 जैसी किसी नई और बड़ी परियोजना के बिना भी सिंचाई संबंधी संरचनाएं विकसित करने की काफी संभावना मौजूद हैं।
वहीं, इस परियोजना का प्रमुख मकसद है सिंचाई की सुविधा बढ़ाना और खेती को समृद्ध कर गरीबी दूर करना। लेकिन इस मकसद का तफसील से निरीक्षण नहीं किया गया है। सीईसी ने कहा है कि अनिश्चित वर्षा की प्रवृत्ति और पानी के कम होते बहाव को ध्यान में रखते हुए योजनाकारों को किसानों को पुराने कृषि पंरपरा पर लौटने और पुरानी फसलों के चयन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। चेक डैम का निर्माण व मिट्टी और जल संरक्षण के अन्य उपायों के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ऐसे में बिना नुकसान न सिर्फ क्षेत्र को हरा-भरा किया जा सकता है बल्कि इस दृष्टिकोण से कम लागत में ही कृषि समृद्ध होगी।
सीईसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस परियोजना से मुनाफे का आकलन भी ठीक से नहीं किया गया है। यदि सभी बिंदुओं को मिलाए तो आर्थिक मोर्चे पर इस परियोजना को सफल नहीं कहा जा सकता है। समिति ने पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी, वन्यजीव मंजूरी और अन्य मंजूरियों में तमाम ज़रूरी बातों की उपेक्षा किए जाने पर भी सवाल किया है।
याची की ओर से अधिवक्ता और पर्यावरण कानूनों के जानकार ऋत्विक दत्ता का कहना है कि राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड को कोई अधिकार नहीं है कि वह संरक्षित क्षेत्र को अधिसूचित दायरे से बाहर या गैर संरक्षित क्षेत्र अधिसूचित कर दे। यह उसी सूरत में संभव है जब कोई प्रस्ताव राज्य के संरक्षित क्षेत्र में सुधार ला रहा हो।