रांची जिले के राहे ब्लॉक के डोकाद पंचायत के चैनपुर गांव के पवन महतो की चिंता यह कि खेत तैयार हैं, बिचड़े खराब हो गएः फोटो नीरज सिन्हा 
कृषि

सालों तक सूखे से परेशान रहे झारखंड में इस साल हुई भारी बारिश

खरीफ की बुवाई का समय निकला जा रहा है और बारिश संभलने नहीं दे रही है, जिन लोगों ने धान की नर्सरी लगाई थी, वो भी खराब हो गई

Niraj Sinha

कभी बारिश की आस में आसमान की ओर ताकते थे, इन दिनों मायूस नजरों से आसमान निहारते हैं कि बारिश थोड़ा ठहर जाए। समय से पहले इतनी बारिश होगी, सोचा नहीं था। 20 हजार रुपये के हाइब्रिड धान के बीज  डाले थे, उनमें से कुछ खेती के लायक रहे, अधिकतर चौपट हो गए। दोबारा बीज डाले हैं। लगे हाथ बुआई (रोपा) के लिए खेत भी तैयार कर रहे हैं। आगे क्या होगा, फिलहाल कुछ नहीं कह सकते।  

झारखंड में रांची जिले के राहे प्रखण्ड अंतर्गत चैनपुर गांव के किसान बीरेन महतो एक सांस में यह सब बोल जाते हैं। इसके साथ ही मौसम विभाग के द्वारा अगले छह दिनों के पूर्वानुमान की चर्चा करते हुए कहते हैं कि सुना है थोड़ी राहत मिलने वाली है। इसलिए सुबह से ही बाल- बच्चे समेत खेतों में उतरे हैं।

साल दर साल सूखा का सामना करने वाला झारखंड का इस मानसून में यही कड़वा सच है। बिरेन महतो अकेले नहीं, जो इस चिंता से जूझ रहे हैं।  लगातार और भारी बारिश से खरीफ की खेती पर फिलहाल संकट उत्पन्न होता दिखता है।  दरअसल खरीफ की बुवाई का समय निकला जा रहा है और वर्षा संभलने नहीं दे रहा। आर्थिक बोझ पड़ने पर बड़ी तादाद में किसानों के माथे पर बल पड़े हैं। जबकि सरकार के कृषि विभाग ने राज्य में लगभग 18 लाख हेक्टेयर में धान लगाने का लक्ष्य तय किया है।

 बिरेन महतो के भतीजे पवन महतो भी खेतों में उनके साथ उतरे हैं। पवन कहते हैं, “बिचड़ा खराब होने से बहुत नुकसान उठाना पड़ा। सब कुछ महंगा है। हमलोग बड़े जोतदार ठहरे, तब लड़खड़ा रहे हैं, छोटे किसानों और चार-छह खेतों के भरोसे गुजर-बसर वालों को क्या होगा, सोच कर मन घबराता है।’’

मौसम परिवर्तन का यह उदाहरण किसानों और कृषि वैज्ञानिकों को भी परेशान कर रहा है। मौसम विज्ञानी भी लगातार परिस्थितियों का आंकलन करने और कारणों की समीक्षा करने में जुटे हैं। उधर राज्य सरकार का कृषि विभाग विकल्प तलाशने के लिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ड्राईलैंड एग्रीकल्चर हैदराबाद से बातचीत में जुटा है।

15 जिलों में 60 से 155 प्रतिशत अधिक बारिश

झारखंड में 17 जून को मानसून का प्रवेश हुआ था. राज्य में वर्षापात का औसत 1022.9 मिमी है। मौसम विभाग के आंकड़े के अनसार एक जून से 15 जुलाई तक सामान्य 348.9 मिमी वर्षापात की तुलना में 595.8 मिमी वर्षापात रिकॉर्ड किया गया है। अलबत्ता कम से कम पंद्रह जिलों में 60 से 155 प्रतिशत अधिक बारिश हो गई है।

राज्य के पूर्वी सिंहभूम जिले में डेढ़ महीने के दौरान 985.7 मिमी बारिश हो चुकी है। सामान्य से यह 155 प्रतिशत अधिक है। रांची जिले में सामान्य से 126 प्रतिशत अधिक 816 मिमी बारिश हो चुकी है। पलामू प्रमंडल (जोन) के पलामू, लातेहार जिले में भी सामान्य से 112 और कोल्हान प्रमंडल के खरसांवा-सरायकेला में सामान्य से 132 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है।

 आदिवासी बहुल और पठारी इलाके में शामिल गुमला, खूंटी, पश्चिम सिंहभूम, सिमडेगा, लोहरदगा में भी सामान्य से अधिक वर्षापात रिकॉर्ड किया गया है। जाहिर तौर पर पठारी इलाके में खरीफ की खेती संकट के भंवर में फंसी है। दूसरी तरफ  संथालपरगना के तीन जिले देवघर, गोड्डा, पाकुड़ में सामान्य से बहुत मामूली 5 से 15 प्रतिशत कम बारिश हुई है।

 जलवायु परिवर्तन और लो प्रेशर सिस्टम

रांची मौसम केंद्र के प्रमुख और वरिष्ठ वैज्ञानिक अभिषेक आनंद ने डाउन टू अर्थ से कहा है कि मानूसन में अधिक वर्षापात का पूर्वानुमान तो था, लेकिन पहले जहां, जुलाई के दूसरे पखवाड़े और अगस्त में सिस्टम ज्यादा बनते (फॉर्म होते) थे, इस बार जून से ही इसके असर देखे जाने लगे। रही बात, जलवायु परिवर्तन की, तो यह बताता है कि मौसम के किसी पैटर्न को तहस- नहस करना यानी पैटर्न को फॉलो नहीं करने देना, डिस्टर्ब कर देना। यही होता भी दिख रहा है। इस परिवर्तन के अनेक फैक्टर हैं. उनमें प्रदूषण, एनवायरमेंटल डिग्रेडेशन, (पर्यावरण क्षरण), समुद्री वार्मिंग, बेतरतीब और बिना प्लानिंग शहरीकरण, नदियों, नालों का अतिक्रमण भी शामिल हैं।

एक नजर में
• एक दर्जन जिलों में 50 से 160 प्रतिशत तक अधिक बारिश हुई है • पूर्वी सिंहभूम, रांची, सरायकेला, खूंटी, रामगढ़, लातेहार, पलामू में ज्यादा बारिश दर्ज की गई है • 17.90 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई का लक्ष्य है, जिसमें 15 जुलाई तक 9.62 प्रतिशत बुआई हो चुकी है • 10.37 लाख हेक्टेयर में मक्का, दलहन, तिलहन की बुआई का लक्ष्य है • 15 जुलाई तक केवल 12.50 प्रतिशत बुआई हो पाई है • 79.71 लाख हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र में 38 लाख हेक्टेयर खेती योग्य भूमि है • पिछले 24 वर्षों में 14 साल झारखंड आंशिक और संपूर्ण सूखे की चपेट में रहा है • सबसे अधिक 24 लाख छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनके पास औसतन 1.74 हेक्टेयर जमीन है • वर्ष 2023-24 में 32 लाख टन और वर्ष 2024-25 में 41 लाख 38 हजार टन धान का उत्पादन होने की संभावना है। (स्रोत: मौसम केंद्र, कृषि विभाग झारखंड)सरकार और आर्थिक सर्वेक्षण)

अभिषेक आनंद आगे कहते हैं, “वैसे मौसम का कोई बाऊंड्री नहीं होता। जो भी असर एक जगह होता है उसका प्रभाव दूसरी जगह पड़ता ही है। बंगाल की खाड़ी से जब कोई कम दबाव (लो प्रेशर) सिस्टम बना होता है और उसका मूवमेंट झारखंड की तरफ से हो रहा होता है तो लगातार बारिश हो जाती है और इससे वर्षापात का आंकड़ा बढ़ जाता है।

कृषि के सवाल पर आनंद कहते हैं, पूर्वानुमान के मुताबिक अभी हफ्ते भर का समय फायदेमंद है। बुआई की गति तेज हो सकती है।

 बुआई पर असर, अनिश्चतता की तस्वीर

झारखंड सरकार के कृषि विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल 17 लाख 90 हजार 400 हेक्टेयर में धान की बुवाई और 10 लाख 37 हजार 852 हेक्टेयर में मक्का, दलहन, तिलहन, रागी, ज्वार, बाजरा (मोटे अनाज) बुआई का लक्ष्य रखा गया है।

सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 15 जुलाई तक धान की बुवाई महज 9.62 प्रतिशत हो सकी है। इनमें छींटा बुवाई ज्यादा है। कम से कम एक दर्जन जिलों में धान की बुआई शुरू नहीं हो सकी है। दूसरी तरफ दलहन, तिलहन और मोटे अनाज की बुआई महज 12.50 प्रतिशत हो सकी है।

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में शुष्कभूमि कृषि (ड्राईलैंड एग्रीकल्चर) के मुख्य वैज्ञानिक डॉ डीएन सिंह औसत से ज्यादा और समय से पहले होती इस बारिश पर हैरानी प्रकट करने के साथ कहते हैं, “शोध बताते हैं कि झारखंड में 15 जुलाई तक धान की बुआई का क्वालिटी पीरियड होता है। यानी इससे पैदावार अच्छी होती है। हालांकि बारिश का चक्र बदलने से किसान यहां पूरे अगस्त महीने तक बुआई करते हैं। अब लगातार और भारी बारिश का असर रबी की फसलों पर भी पड़ सकता है। चिंता इसकी भी है कि भादो में बारिश जमकर हो गई, तो मुश्किलें बढ़ेंगी. ”

सिंह आगे कहते हैं, “झारखंड में 88 प्रतिशत वर्षा आधारित खेती होती है। टांड जमीन पर मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी, सोयाबीन, दलहन, तिलहन की खेती होती है और ये फसलें लगातार होती बारिश बर्दाश्त नहीं कर पातीं। जाहिर तौर पर अनिश्चित और भारी वर्षा से छोटे और मंझोले किसान परेशान हाल हैं। लेकिन किसान कभी हारता नहीं। इसलिए वे उम्मीदों की गठरी बांधे दोबारा भी बीज डाल रहे हैं। खेतों में जूझ रहे हैं।”

सिंह की किसानों को सलाह है कि बिचड़ा (पौधे) के लिए बीज, टांड वाली जमीन में डालें। और अपने कृषि प्रबंधन को मजबूत बनाने का प्रयास करें। जिनके बिचड़े तैयार हैं वे बुआई की गति तेज करें।

आदिवासी बहुल खूंटी जिले के अड़की प्रखंड में सुदूर बाड़ीनिजकेल गांव के नथनियल पूर्ति बारिश के हालात से दुखी हैं। वे बताते हैं कि अब तक सूखा का सामना करते थे इस बार बारिश ने मुश्किल में डाला है। बहुत जतन से पैसे जमा कर रखे थे। चार हजार रुपये का हाइब्रीड बिज खेतों में डाले, लेकिन आधा सड़ गया। तीन खेतों में बुवाई कर सके हैं। अब चिंता सताती है कि अधिक बारिश से फसल बर्बाद न हो जाए। पठारी वाली जमीन पर मकई और दूसरी फसल लगाते थे, लेकिन इस बार संभलने का मौका ही नहीं मिल रहा। सच कहिये, तो खेती के नाम पर जुआ खेल रहे हैं।

झारखंड सरकार में कृषि मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की डाउन टू अर्थ से कहती हैं, "अनिश्चित वर्षा" को लेकर विभाग सतर्क है। उन्होंने अधिकारियों और विशेषज्ञों को अलग- अलग स्तर पर अध्ययन करने के साथ रिपोर्ट की नियमित तौर पर समीक्षा करने के निर्देश दिए है। कृषि निदेशालय ने जिलों से रिपोर्ट तलब की है। उम्मीदें कायम है कि जुलाई के दूसरे पखवाड़े से लेकर अगस्त में बुवाई का आंकड़ा बढ़ेगा। मंत्री नेहा आगे कहती हैं, “किसानों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी है कि केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, जिसे राज्य ने स्थगित कर लिया था, उसे फिर से 2024 में हमलोगों ने पीएम फसल बीमा योजना में राज्य को इनरोल्ड किया है। अब बीमा का बेहतर लाभ किसानों को मिल सकेगा।