कृषि

झारखंडः कितना नुकसान कर गई ओलावृष्टि और बेमौसम बारिश

झारखंड के किसानों को पिछले पांच महीने में तीन दफा नुकसान झेलना पड़ा है

Anand Dutt

बीते 10 जनवरी से लेकर 12 जनवरी तक झारखंड के कई जिलों में जोरदार बारिश और ओलावृष्टि हुई। रांची के अशोक नगर के कुछ परिवारों में मौसम को देखते हुए नए आलू और मटर को पकाकर खास नाश्ते का इंतजाम किया गया।

इसी अशोक नगर से लगभग 40 किलोमीटर दूर मांडर के किसान उदय सिंह के तीन एकड़ में लगे मटर के फसल में दाग पड़ गए। बीते 12 तारीख की शाम को हुई ओलावृष्टि से मटर के साथ दो एकड़ में लगे फूलगोभी के पौधे को भी भारी नुकसान हुआ है. वो कहते हैं, अब इस मटर को तोड़ने के बाद बाजार में कोई पूछेगा भी नहीं।

मौसम विभाग की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, 12 जनवरी को सिमडेगा जिले में सबसे अधिक 43.4 मिमी बारिश हुई। वहीं रांची में 24 मिमी बारिश दर्ज की गई। 14 और 15 जनवरी को भी बारिश का अनुमान लगाया गया। इन दो जिलों के अलावा कोडरमा, जमशेदपुर, चाईबासा, रामगढ़, हजारीबाग, लोहरदगा, देवघर, गुमला में भी बारिश हुई है।

मांडर के ही एक और किसान रमेश कुमार सिंह 40 हजार पत्ता गोभी और 15 हजार फूलगोभी का पौधा लगाए थे। ओला गिरने से अधिकतर पौधे बर्बाद हो चुके हैं। वो कहते हैं, अब खेत के बजाय घर के पास के बारी (छोटी क्यारियां) में लगा पाएंगे। खुद के खाने भर का ही हो पाएगा। जो पैसे का नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई कैसे करेंगे, इसका फिलहाल उन्हें कोई अंदाजा नहीं है।

पांच महीने में तीन दफा झेला है नुकसान 

झारखंड में बड़े किसानों की संख्या काफी कम हैं। ये बड़े किसान धान की फसल के तत्काल बाद खेत को खाली छोड़ देते हैं। छोटे किसान इनकी खेत को किराए पर लेकर सब्जी उगाते हैं। रमेश सिंह ऐसे ही किसान हैं। पूंजी के साथ किराए का घाटा भी उनको झेलना है।

बीते पांच साल से खेती-किसानी कवर कर रहे पत्रकार पवन कुमार कहते हैं, सितंबर माह में तीसरी दफा ये नुकसान किसानों को झेलना पड़ रहा है। नकद फसल को सबसे अधिक नुकसान हुआ है। इसमें मटर, टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी, प्याज, लहसन, पालक, आलू, सरसो, चना आदि शामिल है।

उनके मुताबिक, पहले सितंबर में लगाया और उस वक्त भी बारिश हुई. फिर नवंबर दिसंबर में लगाया, उस समय भी बेमौसम बारिश से भारी नुकसान हुआ। बचे हुए फसल को या जिन किसानों में काफी बाद लगाया उनको जनवरी की इस बारिश ने नुकसान पहुंचाया है। यही वजह है कि झारखंड के बाजारों में अभी तक मटर, टमाटर के दाम गिरे नहीं हैं।

किसान उदय सिंह इसका दूसरा पक्ष बताते हैं, वो कहते हैं- कोई भी सब्जी अगर 20 रुपए या उससे नीचे मिल रहा है मतलब किसानों को उस फसल में भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है. वहीं 20 रुपए से ज्यादा जिन सब्जियों के दाम है, उसमें बस इतना समझिये कि वह अपना पूंजी निकाल पा रहा है. 

मल्टीलेयर फार्मिंग की किसानों को बचा सकता है भविष्य में 

बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (बीएयू) के प्लानिंग डेवलपमेंट यूनिट के सीईओ सिद्धार्थ जायसवाल कहते हैं, पूरे राज्य में ओलावृष्टि नहीं हुई है, लेकिन जहां हुई है, वहां बहुत नुकसान हुआ है। इसका कारण है मोनोक्रापिंग फार्मिंग सिस्टम। जिन जगहों पर मल्टीलेयर फार्मिंग सिस्टम अपनाया गया है, वहां मटर जैसे फसलों को ना के बराबर नुकसान हुआ है। जो फसल बाजार में आनेवाले थे, वो लगभग खत्म हो गए हैं।

दूसरा कारण है कि पर्यावरण के लगातार बदलने और रासायनिक खाद के इस्तेमाल के कारण मिट्टी की उत्पादकता कम हो गई है। जिस वजह से असमय बारिश और ओलावृष्टि की चोट मिट्टी झेल नहीं पाती है। किसानों को परंपागत खेती के साथ मल्टीलेयर तकनीकी पर आना ही होगा।

सिमडेगा जिले में सबसे अधिक 43.4 मिमी बारिश दर्ज की गई। यहां के ठेठईटांगर ब्लॉक के कोनबेगी गांव के किसान विपिन कुमार कहते हैं अरहर में फूल आ गया था। इस बारिश से लगभग 90 प्रतिशत नुकसान हो चुका है। अब उसमें फल आने की संभावना ना के बराबर है।

अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य प्रभारी राजकुमार यादव कहते हैं गिरिडीह जिले की आबादी लगभग 27 लाख है, लेकिन यहां एक भी कोल्ड स्टोर नहीं है। इस जिले में लगभग तैयार हो चुके आलू की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। किसान इस उम्मीद में था कि अगर दस दिन और खेत में छोड़ देते हैं तो शायद आलू का साइज थोड़ा और बड़ा हो जाएगा। लेकिन इस बीच बारिश ने सब नाश कर दिया. हमारी मांग है कि हर प्रखंड में एक कोल्ड स्टोर की सुविधा सरकार दे।

सरकार की ओर से दी गई जानकारी  के मुताबिक झारखंड के 24 जिलों को मिलाकर कुल 57 लाख किसानों की संख्या सरकार मानती है. इसमें रांची में 10, हजारीबाग में 6, जमशेदपुर में 1, धनबाद 1, दुमका 1, बोकारो में मात्र  एक कोल्ड स्टोर चालू अवस्था में है।

किसानों को हुए इस अप्रत्याशित नुकसान को सरकार नुकसान मान भी रही है या नहीं. इस मसले पर जब मंत्री बादल पत्रलेख, राज्य कृषि निदेशक निशा सिंहमार से बात करने की कोशिश की गई तो दोनो ही उपलब्ध नहीं हो सके।

राज्य में 57 लाख किसानों का कोई संगठन नहीं है। शायद यही वजह है कि न तो उनकी मांग, न ही उनके नुकसान को कभी गंभीरता से लिया जाता है।