कोरोनावायरस की वजह से घोषित लॉकडाउन का बड़े शिकार प्रवासी मजदूर और किसान हुए हैं। किसान अभी तक रबी की फसल की कटाई तक शुरू नहीं कर पा रहे हैं, जबकि सरकार ने खरीददारी की तैयारी शुरू कर दी है। 2 अप्रैल को केंद्र सरकार ने कहा कि आगामी रबी सीजन की फसल की खरीददारी इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (ई-नाम) के जरिए की जाएगी। लेकिन क्या यह इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म किसानों की समस्या को दूर कर सकेगा?
आसान भाषा में समझते हैं कि आखिर ई-नाम क्या है? ई-नाम प्लेटफॉर्म की शुरुआत 14 अप्रैल 2016 को गई। उस समय कहा गया था कि अमेजन-फिल्पकार्ट जैसा ऑनलाइन पोर्टल है, जहां किसान अपनी फसल का ब्यौरा और फोटो अपलोड करेगा और देश के किसी भी हिस्से में बैठा व्यापारी पोर्टल पर फसल या उत्पाद को बुक करा सकता है। इसके लिए किसान और व्यापारी दोनों को प्लेटफॉर्म पर रजिस्ट्रेशन कराना होता है। वैसे तो यह प्रक्रिया बहुत सामान्य लगती है, लेकिन ऐसी है नहीं। दरअसल, किसान को अपने फसल काट कर मंडी तक लानी होती है। जहां मंडी अधिकारी फसल की ग्रेडिंग करते हैं। उसके बाद फसल का तोल करके मंडी में ही एक ढेर बना दिया जाता है। इस ढेर का फोटो करके ई-नाम प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया जाता है। जिसे कोई व्यापारी ऑनलाइन खरीद कर सकता है। और किसान के खाते में पैसे पहुंच जाते हैं।
लगभग 4 साल बाद सरकार को यह अहसास हो चुका है कि इस प्रक्रिया में जटिलता है, इसलिए अब कहा गया है कि किसानों को मंडी आने की जरूरत नहीं है, वह अपने उत्पाद वेयर हाउस तक पहुंचा सकते हैं। हालांकि क्या वेयर हाउस में फसल की ग्रेडिंग नहीं की जाएगी, यह अब तक स्पष्ट नहीं है। उत्तर प्रदेश की एक प्रमुख मंडी के सचिव नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि मंडी में सालों से आमने-सामने ही खरीददारी होती रही है। ई-नाम प्लेटफॉर्म शुरू होने के बावजूद भी व्यापारी और किसान आमने-सामने ही खरीददारी करने में सुविधा महसूस करते हैं।
वह बताते हैं कि उनकी मंडी से केवल एक बार गुजरात के व्यापारी ने गेहूं खरीदा था, लेकिन उसके बाद ट्रांसपोर्टेशन की बड़ी दिक्कत आई। सरकार के दबाव में बेशक उन्होंने अपनी मंडी में आने वाले किसानों और व्यापारी का रजिस्ट्रेशन किया हुआ है, लेकिन खरीददारी पहले की तरह ही होती है। उसके बाद हम पोर्टल की औपचारिकताएं पूरी कर देते हैं, जिससे लगे कि खरीददारी ई-नाम के जरिए हुई है।
भारतीय किसान यूनियन के नेता धर्मेंद्र मलिक बताते हैं कि अव्वल तो प्लेटफॉर्म पर बाहर के व्यापारी खरीददारी कर ही नहीं रहे हैं और यदि बाहर से कोई व्यापारी बुक करा भी दे तो ट्रांसपोर्ट की दिक्कत होती है। ई-नाम को लॉन्च हुए 4 साल हो चुके हैं, अब जाकर सरकार कह रही है कि पौने चार लाख ट्रकों को इस पोर्टल से जोड़ा जाएगा। 10 दिन बाद खरीददारी शुरू हो जाएगी तो इतने कम समय में क्या इन ट्रकों को ऑनलाइन मंडियों से जोड़ा जा सकता है?
यहां सवाल यह भी है कि कोरोनावायरस की वजह से पूरे देश को लॉकडाउन कर दिया गया है और खरीददारी की समस्या पूरे देश में आने वाली है, लेकिन सरकार ने जो ई-नाम का समाधान दिया है, वो केवल 585 मंडियों में ही उपलब्ध है। हालांकि 2 अप्रैल 2020 को कृषि मंत्री ने कहा कि देश की 415 मंडियों को और जोड़ा जाएगा, लेकिन यह बात सरकार ने 4 जनवरी 2019 को राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में भी कही थी। मतलब, जनवरी 2019 से लेकर मार्च 2020 के बीच ई-नाम से एक भी मंडी को नहीं जोड़ा गया। 11 फरवरी 2020 को संसद में दिए गए जवाब में सरकार ने बताया था कि 31 मार्च 2018 तक देश में 6,946 थोक मंडियां हैं और इनमें से 585 मंडियों को ई-नाम प्लेटफॉर्म से जोड़ा जा चुका है। यानी कि अब तक 8.42 फीसदी ही मंडियां ई-नाम से जुड़ सकी हैं।
हरियाणा के बल्लभगढ़ इलाके के किसान प्रहलाद सिंह कहते हैं कि हमारे आसपास की कोई भी मंडी ई-नाम से नहीं जुड़ी हुई है। हालांकि हम दो-तीन साल से सुन रहे हैं कि बल्लभगढ़ मंडी को ई-नाम से जोड़ा जाएगा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि 415 मंडियों को ई-नाम प्लेटफॉर्म से जोड़ने में कितना समय लग सकता है।
वहीं, ई-नाम प्लेटफॉर्म से किसानों को जुड़े होने की बात की जाए तो 6 मार्च 2020 को संसद में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक अब तक 1.66 करोड़ किसान और 1,27,963 व्यापारियों व 70,904 कमीशन एजेंट ई-नाम प्लेटफॉर्म से जुड़ चुके हैं। दिलचस्प बात यह है कि 9 जुलाई 2019 को सरकार की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक 30 जून 2019 तक ई-नाम पोर्टल से जुड़ने वाले किसानों की संख्या 1.64 करोड़ थी तो क्या नौ माह में केवल 2 लाख किसान ही प्लेटफॉर्म से जुड़ पड़ हैं।
जनगणना 2011 के मुताबिक, देश में कृषि क्षेत्र से जुड़े श्रमिकों की कुल संख्या 26.31 करोड़ थी, इनमें से 11.89 करोड़ किसान और 14.43 करोड़ खेतिहर मजदूर हैं। अगर इसी आंकड़े को आधार बनाया जाए तो अब तक लगभग 14 फीसदी किसान ही ई-नाम से जुड़ पाए हैं। तो फिर इस लॉकडाउन में 86 फीसदी किसान क्या करेंगे, यह बड़ा सवाल आने वाले दिनों में सरकार के लिए सिरदर्द बन सकता है।