यदि सिर्फ खेती-किसानी से होने वाली आय को गिना जाए तो एक किसान हर रोज महज 27 रुपए ही अर्जित कर पा रहा है। इतनी कम आय में खेतों पर काम करना और ठीक-ठाक तरीके से अपने जीवन को चलाए रखना न सिर्फ मुश्किल है बल्कि नामुमकिन है।
यह चिंता 21 नवंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल उच्च स्तरीय समिति की अंतरिम रिपोर्ट में जाहिर की गई है। समिति की यह अंतरिम रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के 2 नवंबर, 2024 के आदेश का अनुपालन करते हुए दाखिल की गई। इस उच्च समिति की अध्यक्षता पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज नवाब सिंह ने की।
समिति ने बीते एक साल से शंभू बॉर्डर पर अपनी मांगों को लेकर बैठे हरियाणा और पंजाब के किसानों से बातचीत व कृषि क्षेत्र की स्थिति का जायजा लेने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है।
अंतरिम रिपोर्ट में 2018-19 में किए गए राष्ट्रीय सर्वेक्षण पर आधारित "सिचुएशन असेसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल हाउसहोल्ड्स एंड लैंड एंड लाइवस्टॉक होल्डिंग्स ऑफ हाउसहोल्ड्स इन रूरल इंडिया" का हवाला देते हुए बताया गया है "कृषि परिवारों की औसत मासिक आय केवल 10,218 रुपए है और वे औसत कृषि आय पिरामिड के निचले हिस्से में है।"
रिपोर्ट यह भी बताती है कि ठहरे हुए उत्पादन और घटती आय ने किसानों के सिर पर कर्ज का बड़ा बोझ लाद दिया है। यह बोझ उन्हें मौत की तरफ ढ़केल रहा है। रिपोर्ट में नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड, 2023) की रिपोर्ट के हवाले से कहा
"हाल के दशकों में किसानों और कृषि मजदूरों पर कर्ज कई गुना बढ़ गया है। 2022-23 में, पंजाब में किसानों का संस्थागत कर्ज 73,673 करोड़ रुपए था, जबकि हरियाणा में यह और भी अधिक 76,630 करोड़ रुपए था। इसके अलावा राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन (एनएसएसओ, 2019) के मुताबिक किसानों पर गैर-संस्थागत कर्ज का भी एक बड़ा बोझ है, जो पंजाब में कुल बकाया कर्ज का 21.3 फीसदी और हरियाणा में 32 फीसदी है।"
अंतरिम रिपोर्ट बढ़ते कर्ज की इस चिंता को एक बड़ी त्रासदी के तौर पर देखता है। समिति ने कहा कि करीब 30 वर्षों में 4 लाख से अधिक किसान और खेतिहर मजदूर आत्महत्या कर चुके हैं।
समिति ने रिपोर्ट में कहा "नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 1995 से आत्महत्या का डेटा एकत्र करना शुरू किया है तबसे अब तक 4 लाख से अधिक किसान और कृषि मजदूर आत्महत्या कर चुके हैं। वहीं, पंजाब में, तीन सार्वजनिक क्षेत्र विश्वविद्यालयों द्वारा किए गए घर-घर सर्वेक्षण में 2000 से 2015 के बीच कुल 16,606 आत्महत्याएं दर्ज की गईं।"
अंतरिम रिपोर्ट में यह बताया गया कि ऐसा क्यों हुआ है?
"रिपोर्ट के मुताबिक 1990 के दशक के मध्य में हरित क्रांति से हुए शुरुआती लाभों के बाद कृषि उत्पादन और उपज में ठहराव आने से इस संकट की शुरुआत हुई। वहीं, हाल के वर्षों में किसानों और कृषि मजदूरों पर कर्ज का बोझ कई गुना बढ़ गया है।"
वहीं, कृषि आय में गिरावट उत्पादन लागत में वृद्धि और रोजगार के घटते अवसरों ने किसानों की समस्याओं को और गहरा कर दिया है। खासतौर से छोटे और सीमांत किसान और कृषि मजदूर इस आर्थिक संकट से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक "राष्ट्रीय स्तर पर कृषि क्षेत्र में काम करने वाले 46 फीसदी श्रमिकों का योगदान आय में केवल 15 फीसदी है। इसके अलावा, छिपी हुई बेरोजगारी और परिवार के बिना वेतन वाले श्रमिकों की उच्च दर भी इस संकट का हिस्सा है।"
पंजाब और हरियाणा की हालत सबसे ज्यादा खराब
रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2014-15 से 2022-23 के बीच पंजाब का कृषि क्षेत्र 21 प्रमुख कृषि राज्यों में से 20वें स्थान पर रहा, जिसकी वार्षिक वृद्धि दर केवल 2 फीसदी थी। हरियाणा 3.38 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर के साथ 16वें स्थान पर रहा। दोनों राज्य राष्ट्रीय औसत से नीचे प्रदर्शन कर रहे हैं।
इसके अलावा रिपोर्ट में कृषि क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय समस्याओं की बात भी की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक इसने कृषि क्षेत्र को और कमजोर कर दिया है। जल स्तर में गिरावट, सूखा, अत्यधिक बारिश, गर्म हवाओं और फसल अवशेष प्रबंधन जैसी चुनौतियों ने खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि "यह संकट ऐसे समय में आया है जब यह स्पष्ट हो चुका है कि कृषि विकास और स्थिरता में गरीबी दूर करने और बड़ी आबादी को आजीविका प्रदान करने की क्षमता है। कृषि क्षेत्र में सुधार और इसे लाभकारी बनाने के लिए ठोस कदम उठाने की सख्त आवश्यकता है।"
समिति ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशों में कहा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी मान्यता देने के साथ कर्ज राहत और रोजगार सृजन के उपाय किए जाएं। साथ ही जैविक खेती और फसल विविधीकरण को बढ़ावा दिया जाए। कृषि विपणन प्रणाली में सुधार किए जाएं।