एक ओर, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने घोषणा की कि दिसंबर 2019 में सब्जियों की कीमतों के कारण खाद्य मुद्रास्फीति 14.1 प्रतिशत रही, तो दूसरी ओर कर्नाटक के किसान प्याज की कीमतों को लेकर परेशान थे।
2018 की तुलना में इसी महीने सब्जियों की कीमतों में 60 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। पिछले साल दिसंबर में खाद्य मुद्रास्फीति छह साल में सबसे अधिक है। इसकी वजह तीन प्रमुख सब्जियां - आलू, प्याज और टमाटर रहे, जिन्होंने मुद्रास्फीति को उच्चतम स्तर पर पहुंचा दिया। एनएसओ की रिपोर्ट के अनुसार, आलू की कीमतें 37 प्रतिशत, प्याज की 328 प्रतिशत और टमाटर की कीमतें 35 प्रतिशत बढ़ीं। यह मूल्य वृद्धि साल-दर-साल आधार पर होती है।
कर्नाटक के किसान कुछ सप्ताह पहले जो प्याज 200 रुपए प्रति किलो बेच रहे थे, वे कुछ दिन पहले 40 रुपए किलो प्याज बेचने लगे तो ऐसे में सवाल उठता है कि इसके लिए क्या प्याज दोषी है? आइए, इसे अलग-अलग बिंदुओं में समझते हैं।
पहला: अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) के अनुसार, भारत 2009 में जब सूखे के कारण कृषि उत्पादन गिर गया था, तब से ही उच्च खाद्य मुद्रास्फीति का सामना कर रहा है। 2015-16 तक उच्च खाद्य मुद्रास्फीति जारी रही, लेकिन उसके बाद यह मध्यम स्तर पर है।
भारत में 2006-2015 के दौरान खाद्य मुद्रास्फीति के विश्लेषण में आईएफपीआरआई ने पाया कि 2014 और 2015 को छोड़कर सभी वर्षों के दौरान खाद्य मुद्रास्फीति 7 प्रतिशत से अधिक रही। नवंबर 2013 में यह 14.72 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। दिसंबर 2019 में इसने नकारात्मक वृद्धि दर्ज की या -2.65 प्रतिशत पर अपस्फीति दर्ज हुई। 2009 के बाद यह माना गया कि खाद्य उत्पादन बढ़ेगा, जिससे खाद्य मुद्रास्फीति कम होगी। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ, इससे यह संकेत जाता है कि खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ने की और भी कई वजह हैं।
दूसरा: क्या ये तीन सब्जियां हैं जो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में महत्वपूर्ण हैं और हमेशा उच्च मुद्रास्फीति के लिए जिम्मेदार हैं? आईएफपीआरआई द्वारा किए गए निर्णायक विश्लेषण के अनुसार, समग्र खाद्य मुद्रास्फीति में प्याज का योगदान सिर्फ 2 प्रतिशत है, जबकि टमाटर का हिस्सा 1 प्रतिशत है। चावल का योगदान लगभग 11 फीसदी है। सबसे अधिक दूध (22 प्रतिशत ) की वजह से खाद्य मुद्रास्फीति प्रभावित होती है।
वास्तव में यह नहीं कहा जा सकता है कि किस खाने की वस्तु के कारण महंगाई दर यानी खाद्य मुद्रास्फीति प्रभावित होती है, लेकिन यह एक विशिष्ट अवधि में परिस्थितियों पर निर्भर करता है। मौजूदा महंगाई दर बढ़ने की वजह प्याज और दूध के दाम बढ़ना है।
तीसरा: क्या इसका मतलब यह है कि बेशक कम समय के लिए ही सही, किसानों को इसका आर्थिक लाभ मिल रहा है? प्याज किसानों को तो कम से इस अभूतपूर्व मूल्य वृद्धि का कोई लाभ नहीं मिला। बाजार में नई फसल आते ही किसानों को अपने प्याज की कीमत सही करनी पड़ी, जैसा कि कर्नाटक के किसानों ने किया। इससे पहले कि किसान फसल और अपनी उपज को बाजार तक पहुंचा सकें, सरकार ने भी महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए प्याज का आयात किया। इसे मौसम की चरम घटनाओं से भी जोड़ कर देखना चाहिए, क्योंकि बेमौसमी बरसात के कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ा और उनके पास बेचने के लिए प्याज की मात्रा भी कम थी। ऐसी स्थिति में जैसे ही आयातित प्याज और नई फसल बाजार में पहुंची, प्याज की कीमतें तत्काल कम हो गई। कर्नाटक में ऐसा ही हुआ।
चौथा: प्याज एक अत्यधिक लाभदायक फसल है। लेकिन तब ही, अगर यह सही गुणवत्ता और सही समय पर बाजार में पहुंचता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के वादे को पूरा करने के लिए तरीके सुझाने वाली कमेटी के अनुसार, एक किसान प्याज जिस कीमत पर बेचता है, उसका लगभग 43-44 प्रतिशत ही उसे मिलता है। उचित भंडारण और परिवहन की कमी के कारण, एक प्याज किसान अपनी उपज का लगभग 14.4 प्रतिशत गंवा देता है, इससे उसकी कमाई और कम हो जाती है।
पांचवां: प्याज किसान अगले चार से पांच महीने बाजार को बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं। पिछले साल मौसम की स्थिति के कारण नुकसान के बावजूद बाजार अब नई उपज से पट रहा है। कर्नाटक और पड़ोसी राज्यों में इसके कारण प्याज की दरों में कमी आ रही है। सरकार ने 36,000 मीट्रिक टन से अधिक प्याज के ऑर्डर पहले ही दे दिए हैं। मई में जब प्याज की दूसरी फसल काटी जाएगी, उसके बाद बाजार में प्याज की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाएगी। इस वजह से प्याज के दाम काफी निचले स्तर तक पहुंच सकते हैं।