कृषि

भारत ने डब्ल्यूटीओ वार्ता में की पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग के स्थाई समाधान को अंतिम रूप देने की पुरजोर वकालत

Lalit Maurya

भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान कृषि पर चल रही वार्ता में पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग (पीएसएच) के स्थाई समाधान को अंतिम रूप देने की वकालत की है। गौरतलब है कि यह मामला पिछले 11 वर्षों से अटका है।

पब्लिक स्टॉक होल्डिंग (पीएसएच) के तहत ही सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर किसानों से गेहूं-चावल जैसी फसलें खरीदकर स्टॉक करती है और फिर इस अनाज को कमजोर तबके की मदद के लिए मुफ्त या सस्ते में वितरित किया जाता है। कृषि पर होने वाला यह वार्ता सत्र 27 फरवरी की दोपहर को शुरू हुआ है।

इस दौरान भारत ने पीएसच पर 2013 के बाली मंत्रिस्तरीय निर्णय, 2014 के सामान्य परिषद निर्णय और 2015 के नैरोबी मंत्रिस्तरीय निर्णय के तीनों जनादेशों को वापस ले लिया है।

बता दें कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जो देशों के बीच व्यापारिक नियमों को तय करता है। भारत न सिर्फ डब्ल्यूटीओ के संस्थापक सदस्यों में से एक है, साथ ही वो इस संगठन का सक्रिय भागीदार भी है। जो एक जनवरी 1995 से इसका हिस्सा है। मौजूदा समय में विश्व व्यापार संगठन के 164 देश सदस्य हैं, जो विश्व के 98 फीसदी अंतराष्ट्रीय व्यापार का प्रतिनिधित्व करते हैं।

क्या है भारत का तर्क

भारत का तर्क है कि ध्यान केवल निर्यातक देशों के व्यापारिक हितों तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए, वास्तविक चिंता खाद्य सुरक्षा और लोगों की जीविका को लेकर है।

इसके साथ ही भारत ने इस बात पर भी जोर दिया है कि विश्व व्यापार संगठन में लंबे समय से अटके  पीएसएच जैसे महत्वपूर्ण और अनिवार्य मुद्दे पर स्थाई समाधान के बिना, विकासशील देशों में भुखमरी के खिलाफ चल रही जंग को नहीं जीता जा सकता।

विकसित देश शुरू से भारत के पीएसएच कार्यक्रम का विरोध कर रहे हैं। इंडोनेशिया के बाली में 2013 में हुए मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में पीएसएच को लेकर एक पीस क्लॉज पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके तहत इसका स्थाई हल न निकलने तक कोई भी देश अनाज की खरीदारी और उसे कम दाम पर लोगों में वितरित करने का विरोध नहीं करेगा।

भारत के मुताबिक यह मुद्दा इतना अधिक महत्वपूर्ण है कि जी33 देशों के समूह के साथ-साथ अफ्रीका, कैरेबियन और प्रशांत देशों के समूह (एसीपी) और अफ्रीकी समूहों ने इस विषय पर एक प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया है। बता दें कि इसमें दुनिया की 61 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले 80 से अधिक देश शामिल हैं।

विकसित-विकासशील देशों द्वारा दी जा रही सब्सिडी में है भारी अंतर

भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सामने विभिन्न देशों द्वारा प्रति किसान दी जा रही घरेलू सहायता में मौजूद महत्वपूर्ण अंतर पर भी प्रकाश डाला है। विकसित देश पहले ही विकासशील देशों की तुलना में अपने किसानों को कहीं ज्यादा सब्सिडी दे रहे हैं। भारत सब्सिडी के इस आधार मूल्य में बदलाव चाहता है। गौरतलब है कि कुछ विकसित देश, विकासशील देशों की तुलना में 200 गुणा तक अधिक सब्सिडी दे रहे हैं। 

भारत का कहना है कि लाखों कमजोर और संसाधनों की कमी से जूझ रहे गरीब किसानों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कृषि व्यापार में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करना भी सदस्यों और डब्ल्यूटीओ की जिम्मेवारी है।

ऐसे में समग्र सुधार प्रक्रिया में, भारत ने क्रमिक दृष्टिकोण अपनाने को प्राथमिकता देने पर जोर दिया है। इसके लिए पीएसएच का स्थाई समाधान प्रदान करना महत्वपूर्ण है। भारत के अनुसार इसके बाद, कृषि समझौते में विशेष नियमों का समावेश और सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी, जिससे देशों को उचित मदद मिल सके। भारत का कहना है कि इस मुद्दे पर किसी तरह का समझौता स्वीकार्य नहीं है।

इसके बाद अंत में यदि घरेलू तौर पर दी जा रही मदद में कटौती पर चर्चा होती है, तो भारत ने उन देशों में सब्सिडी को खत्म करने से शुरूआत करने को कहा है जो प्रति व्यक्ति के आधार पर कृषि क्षेत्र को बड़े पैमाने पर सब्सिडी दे रहे हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का यह 13वां मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 26 फरवरी 2024 से अबू धाबी में शुरू हुआ है। बता दें कि भारत का साफ तौर पर मानना है कि विकासशील देशों को अपने औद्योगीकरण में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए मौजूदा डब्ल्यूटीओ समझौतों में लचीलेपन की आवश्यकता है।