किसानों की आय दोगुनी करने के लिए गठित समिति जैसे-जैसे कृषि क्षेत्र का आकलन कर रही है, वैसे-वैसे कृषि संकट की गंभीरता का पता चल रहा है। बता दें कि किसानों की आय को दोगुना करना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महत्वपूर्ण वादा है जिसके इर्दगिर्द चुनावी नैरेटिव रचाया जा रहा है।
अपनी सातवीं रिपोर्ट में समिति ने पाया है कि कृषि भूमि के उपयोग में व्यवस्थित बदलाव किसानों का प्रभावित कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में उपजाऊ कृषि भूमि का बड़ा हिस्सा उद्योगों को देने के अलावा नई टाउनशिप बनाने और नई बस्तियों बनाने के लिए दिया जा रहा है। यह तथ्य सब जानते हैं। लेकिन रिपोर्ट के अनुसार, चिंताजनक बात यह है कि ज्यादा से ज्यादा बंजर और असिंचित जमीन कृषि के दायरे में लाई जा रही है। इससे जहां किसानों की उत्पादकता प्रभावित हो रही है, वहीं आय सुरक्षा और खेती की व्यवहारिकता पर भी असर पड़ रहा है।
भारत में 1970-71 के बाद से गैर कृषि भूमि क्षेत्र 100 लाख हेक्टेयर तक बढ़ा है। रिपोर्ट बताती है कि यह मूलरूप से उपजाऊ कृषि भूमि है जिसका उपयोग अन्य कामों के लिए हुआ है। वहीं दूसरी तरफ इस अवधि (1971-12) में बंजर और असिंचित जमीन 280 लाख हेक्टेयर से घटकर 170 लाख हेक्टेयर हो गई है।
रिपोर्ट बताती है कि भारत में जोत भूमि पहले जितनी ही है। इससे पता चलता है कि किसान अब बंजर और सिंचित जमीन पर आश्रित हो रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, जोत भूमि के स्थिर रहने का कारण यह है कि महत्वपूर्ण कृषि भूमि का उपयोग गैर कृषिगत कार्यों के लिए हुआ है। इसी तरह बंजर और असिंचित जमीन कृषि के दायरे में आई है। इस कथन के पीछे तर्क यह है कि शहरों, नगरों और अन्य विकासात्मक गतिविधियों का फैलाव महत्वपूर्ण कृषि भूमि के आसपास हुआ है।
भारत की जोत भूमि 1970 से 1,400 लाख हेक्टेयर के आसपास है। लेकिन गैर कृषि कार्यों के लिए भूमि का उपयोग 1970 में 196 लाख हेक्टेयर से 2011-12 में 260 लाख हेक्टेयर पहुंच गया है। अकेले 2000-2010 के दशक में करीब 30 लाख हेक्टेयर कृषि जमीन गैर कृषि कार्यों के लिए उपयोग में लाई गई है।
दूसरी तरफ जो बंजर और असिंचित जमीन 1971 में 280 लाख हेक्टेयर थी, वह 2012 में घटकर 170 लाख हेक्टेयर रह गई।
महत्वपूर्ण बात यह है कि इस नई कृषि भूमि पर भारत का खाद्य उत्पादन टिका है। लेकिन इस भूमि का अधिकांश हिस्सा बारिश के जल पर निर्भर है। यही वजह है कि किसानों की आय को दोगुना करना एक बड़ी चुनौती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि के दायरे में आई जमीन की उर्वरता और सेहत ठीक नहीं है। इस जमीन को उपजाऊ और आर्थिक रूप से सार्थक बनाने के लिए बहुत ध्यान देने की जरूरत है।