कृषि

जापान के इस शहर में जब भू-जल निकासी करने वाले किसान ही बन गए सबसे बड़े जल संरक्षक

जापान के कुमामोटो शहर में धान की पैदावार करने वाले किसान सिंचाई के लिए एक नदी का सहारा लेते थे लेकिन जब यह व्यवस्था टूटी तो एक योजना ने किसानों के साथ मिलकर जल संरक्षण की मिसाल पेश कर दी।

Vivek Mishra

पूरी दुनिया कई स्तरों पर जलसंकट का सामना कर रही है। इसी संकट के बीच कुछ पहल ऐसी होती हैं जो न सिर्फ स्थितियों को पलट देती हैं बल्कि एक बेहतर समाधान बन जाती हैं। जापान के पर्यावरण मंत्रालय ने किसानों के साथ मिलकर ऐसी ही एक पहल की जिसके बाद कुमामोटो शहर में धान की खेती के लिए भू-जल की निकासी करने वाले किसान खुद ही सबसे बड़े भू-गर्भ जल संरक्षक बन गए। 

संयुक्त राष्ट्र की ओर से विश्व जल दिवस के दिन जारी की गई रिपोर्ट में इस पहल को एक केस स्टडी के तौर पर पेश किया गया है। जापान सरकार की इस पहल से न सिर्फ पारंपरिक चावल खेती को बचाया जा सका और वहां भू-गर्भ जल संरक्षण भी बेहतर हुआ। 

 जापान का कुमामाटो शहर एक ज्वालामुखी वाले क्षेत्र में बसा है। यहां पेयजल और औद्योगिक इस्तेमाल के लिए दस लाख की आबादी भू-गर्भ जल पर निर्भर है। वहीं, वैज्ञानिक शोधों से पता चला कि शीरा नदी के मध्य जल वाले क्षेत्र में धान की खेती के चलते शहर में एक तिहाई भू-गर्भ जल रीचार्ज होता था लेकिन आवासीय क्षेत्रों के बढ़ने से धान की खेती कम होती गई साथ ही फसलों में बदलाव के चलते भू-जल संकट भी बढ़ता चला गया। . 

जापान के पर्यावरण मंत्रालय ने अनुमान लगाया कि यदि ऐसी स्थिति में कोई कार्रवाई नहीं की जाती है तो कुमामोटो में भू-गर्भ जल वर्ष 2007 में करीब 60 करोड़ घन मीटर था जो कि 2024 तक घटकर 56.3 करोड़ घन मीटर तक हो जाएगा। 

लिहाजा कुमामोटो क्षेत्र में 2024 तक 6.36 मिलियन घन मीटर भू-जल रीचार्ज करने का लक्ष्य रखा गया।  

2004 में स्थानीय सरकार ने किसानों को पेमेंट ऑफ इकोसिस्टम सर्विसेज स्कीम (पीईएस स्कीम) यानी पारिस्थितिकी सेवाओं के लिए भुगतान करना शुरु किया। इसका मकसद था कि किसान मई से अक्तूबर के दर्मियान अपने धान के खेतों को नजदीक के शीरा नदी के जरिए पानी लाकर लबालब पानी वाली सिंचाई कर सकें जो कि पहले उनकी खेती का हिस्सा था।

किसानों को यह भुगतान प्रति हेक्टेयर की तैयारी और अवधि के हिसाब से किया गया।  इसमें पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर दोनों की भागीदारी हुई। भू-जल की निकासी और रीचार्ज दोनों का सालाना रिकॉर्ड तैयार होना शुरु हुआ। श्रमिकों के लिए प्रावधान बनाए गए और वित्तीय सहयोग भी देना शुरु किया गया। 

इस पहल में जो अंदाजा लगाया गया था उसका परिणाम मिलना शुरू हो गया। 2004 से 2018 तक 12.2 मिलियन घन मीटर भू-गर्भ जल रीचार्ज हुआ। इसके अलावा भू-जल निकासी में भी कमी आई। करीब 104.7 मिलियन घन मीटर भू-जल की निकासी कम हुई। कुल 27,245,300 यूएस डॉलर मूल्य का जल संरक्षित किया गया। 

कुमामोटो क्षेत्र में लोगों की जल सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को बेहतर रखने के लिए 2014 से 2018 तक कुल 6.46 मिलियन यूएस डॉलर का वित्तीय योगदान किया गया।  

भू-जल के मूल्यवर्धन ने 11 नगरनिगम क्षेत्रों में कई हितधारकों के बीच पानी और एग्रो फॉरेस्टरी को लेकर एक समन्वय स्थापित किया। कुमामोटो में 2012 में ग्राउंड वाटर फाउंडेशन ने इस योजना को विस्तार दिया और शहर में जाड़ों के दौरान भू-जल रीचार्ज परियोजना को शुरु किया।  

पीईएस योजना को अपनाने के दृष्टिकोण ने कुमामोटो शहर में कई अतिरिक्त फायदे दिए हैं। मसलन जल प्रबंधन का अभ्यास, कंपनियों को जल संरक्षण के लिए कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी नीति बनाने की ओर ढकेला जिसके तहत वे अपनी फैक्ट्रियों को पानी बचाने के लिए प्रमाणपत्र भी देते हैं। 

कुमामोटो में धान के खेती में नदी से पानी लाने का इंतजाम कर भू-जल रीचार्ज के लिए अवधि के हिसाब से प्रति घन मीटर की दर से  वित्तीय सहायता दी जाती है। यूएन रिपोर्ट के मुताबिक आधे महीने यानी 15 दिन से अधिक और 25 दिन से कम के लिए 0.078 यूएस डॉलर का वित्तीय सहयोग दिया जाता है। इसी तरह से अवधि के हिसाब से अलग-अलग श्रेणिया बनाई गई हैं। 4 महीने यानी 115 दिन से अधिक और 120 दिन से कम के लिए 0.26 यूएस डॉलर का वित्तीय सहयोग किसानों को दिया जाता है।