महाराष्ट्र में तीन माह यानी जनवरी से मार्च 2025 के दौरान हर 3 घंटे में एक किसान ने आत्महत्या की है। इस बात का खुलासा राज्य के पुनर्वास मंत्री मकरंद पाटिल ने किया। उनका कहना था कि इस साल जनवरी से मार्च के बीच 767 किसानों ने आत्महत्या की। ध्यान रहे कि इसके बाद के माहों में भी मामले आने बंद नहीं हुए बल्कि अप्रैल, मई और जून में 55 अतिरिक्त मामले प्रकाश में आए। पाटिल ने यह भी बताया कि इस प्रकार के मामले राज्य के विदर्भ इलाके सबसे अधिक पाए गए हैं।
राज्य पुनर्वास मंत्री ने यह बात गत 1 जुलाई 2025 को महाराष्ट्र विधानसभा के सत्र के दौरान बताया। इस साल की जनवरी से मार्च के बीच 767 किसानों का मतलब होता है कि औसतन हर तीन घंटे में कम से कम एक किसान ने आत्महत्या की। यह भयावह स्थिति भारत के कृषि क्षेत्र में एक स्थायी संकट की ओर फिर से राज्य व केंद्र सरकार का ध्यान खींच रही है।
महाराष्ट्र विधान सभा सत्र के दौरान पूछे गए एक सवाल के जवाब में पाटिल ने बताया कि इस प्रकार के मामले सबसे अधिक विदर्भ क्षेत्र से आए हैं। पाटिल से सत्र के दौरान पूछा गया था कि राज्य सरकार उन परिवारों की किस तरह से मदद कर रही है जिन्होंने आत्महत्या के कारण परिवार के मुखिया को ही खो दिया है।
डाउन टू अर्थ को मिले दस्तावेजों के अनुसार पाटिल ने विधान सभा सत्र के दौरान पूछे गए सवाल का जवाब एक लिखित उत्तर में देते हुए कहा कि यवतमाल, अमरावती, अकोला, बुलढाणा और वाशिम के पश्चिमी विदर्भ जिलों में 257 मामले सामने आए हैं यानी कुल का लगभग 33 प्रतिशत हिस्सा यही से है। मराठवाड़ा इलाके में जो कि कृषि संकट का एक बड़ा हॉटस्पॉट भी है, उसी अवधि के दौरान 192 आत्महत्याएं दर्ज की गईं हैं।
छत्रपति संभाजीनगर संभागीय आयुक्त कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल, मई और जून 2025 में अतिरिक्त 55 मामले दर्ज किए गए। पहली तिमाही में दर्ज 767 आत्महत्याओं में से 373 मामलों में 1 लाख रुपए का मुआवजा स्वीकृत किया गया था जबकि 200 दावे खारिज कर दिए गए थे। अन्य 194 मामले अभी भी जांच के दायरे में हैं। पाटिल ने कहा कि 327 मामलों में मुआवजा पहले ही वितरित किया जा चुका है। मंत्री ने कहा कि संकट को कम करने के लिए राज्य सरकार अप्रैल में बेमौसम बारिश और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण खड़ी फसल के नुकसान के लिए मुआवजा भी दे रही है। किसानों को सालाना 12,000 रुपए जारी किए जा रहे हैं। इसमें 6,000 रुपए केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना से और बाकी राज्य सरकार से दिए जा रहे हैं। पाटिल ने कहा कि राज्य में बार-बार इस प्रकार के कृषि उपज के नुकसान के कारण अवसाद और तनाव का सामना कर रहे तमाम किसानों को मनोवैज्ञानिक परामर्श भी प्रदान किया जा रहा है।
पाटिल ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने और राज्य में सिंचाई कवरेज का विस्तार करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। हालांकि प्रभावित किसानों का कहना है कि ये प्रयास सार्थक बदलाव लाने में पूरी तरह से विफल रहे हैं। 30 जून को मुख्यमंत्री को संबोधित एक पत्र में समाजवादी जनपरिषद के क्षेत्रीय अध्यक्ष विष्णु ढोबले ने आरोप लगाया कि केंद्र और राज्य दोनों ही स्थानों पर एक ही पार्टी की सत्ता में होने के बावजूद किसानों की आत्महत्या रोकने में पूरी तरह से विफल रही है।
ढोबले ने बताया कि 2023 में सरकार ने सिंचाई कार्यों के लिए 60,000 करोड़ रुपए मंजूर किए लेकिन इसका अधिकांश हिस्सा अभी भी लागू नहीं हुआ है। उन्होंने दावा किया कि राजस्व विभाग के आंकड़ों के आधार पर पिछले तीन सालों में इस क्षेत्र से 3,000 से अधिक किसानों की आत्महत्या की खबरें सामने आईं हैं। जून में छत्रपति संभाजीनगर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए पत्रकार पी साईनाथ ने खेती करने वाली आबादी में दीर्घकालिक गिरावट का दावा किया। उन्होंने कहा कि 2001 की जनगणना में किसानों की संख्या में 72 लाख की गिरावट आई थी। 2011 की जनगणना में 77 लाख की कमी देखी गई। उनका कहना है कि बढ़ते कर्ज और कम आय के कारण देश में प्रतिदिन लगभग 2,000 किसान खेती कार्य से आपने को दूर कर रहे हैं।