कृषि

लाहौल में राजमा की फसल को लगी बीमारी, किसानों को हुआ नुकसान

छह माह तक बर्फ से ढके रहने वाले लाहौल-स्पीति जिले के लोगों के लिए राजमा खास महत्व रखता है

Raju Sajwan, Rohit Prashar

हिमाचल के जनजातीय जिले लाहौल-स्पीति के लाहौल क्षेत्र में इन दिनों राजमा की खेती में आई बीमारी से किसान परेशान हैं। बीमारी इतनी भयावह रूप ले चुकी है कि कई गांव के लोगों द्वारा बार-बार बीज बदलने और बीमारी से बचने के लिए किए अथाह प्रयासों के बाद अब इसकी खेती को बंद करने का ही निर्णय ले लिया है।

डाउन टू अर्थ की टीम ने राजमा में आई इस बीमारी से प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया और वहां पर किसानों और कृषि विशेषज्ञ से बात कर स्थिति का जायजा लिया। किसानों ने बताया कि राजमा में यह बीमारी फलावरिंग स्टेज और फलियों के बनने के दौरान आती है।

इसका प्रकोप इतना ज्यादा है कि 4-5 दिनों में पूरी फसल पीली पड़ जाती है और यदि कुछ फलियां भरी भी हों तो वो भी सड़ जाती हैं। इसके अलावा यदि कोई किसान इस बीमारी के दौरान खेत में सिंचाई करता है तो एक ही दिन में पूरी फसल खराब हो जाती है।

लाहौल स्पीति के मडग्रां गांव के किसान मोतीलाल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि उनका परिवार कई दशकों से राजमा की खेती करता आया है और वे हर साल लगभग 10 किग्रा बीज लगाने के बाद एक क्विंटल से अधिक राजमा पैदा करते थे, लेकिन पिछले 4-5 सालों से उनके क्षेत्र में बार-बार राजमा में भयंकर बीमारी आ रही है।

वह कहते हैं कि वे जितना बीज लगा रहे हैं, उतना भी उत्पादन नहीं मिल पा रहा है। इसलिए किसान अब राजमा की खेती नहीं कर रहे हैं।

इसके अलावा शांशा पंचायत के किसान रामलाल भारद्वाज ने बताया कि राजमाह में बीमारी इतनी भयावह हो गई है कि किसानों ने राजमा उगाना बंद कर दिया है और वे अपने खाने के लिए भी बाजार से राजमा खरीदने पर मजबूर हो गए हैं। हमारे क्षेत्र में पहले बहुत अधिक मात्रा में राजमा पैदा होते थे, लेकिन बीमारी ने सब बंद करवा दिया।

मडग्रां गांव की किसान संतोष कुमारी बताती हैं कि राजमा में आई बीमारी की रोकथाम के लिए हमने बहुत कोशिशें की, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। क्योंकि हमारे क्षेत्र में साल में केवल एक बार ही फसल लेते हैं तो अब हम बार-बार अपने खेतों में प्रयोग नहीं कर सकते हैं। इसलिए अब हमने राजमा लगाना ही बंद कर दिया है, ताकि बेकार की मेहनत से बचा जा सके और नुकसान भी न हो।

लाहौल के अन्य गांवों तिंदी, त्रिलोकीनाथ, जहालमा और मडग्रां के किसानों का कहना है कि राजमा में बीमारी नियंत्रित नहीं हो रही है, जिससे सदियों से चली आ रही राजमाह की खेती केा किसानों को त्यागना पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि उन्होंने बीज को बदलकर भी देखा, लेकिन फिर भी इसका प्रकोप कम नहीं हो रहा है।

कृषि विज्ञान केंद्र, कुकुमसेरी की फूल एवं सब्जी वैज्ञानिक डॉ. राधिका ने डाउन टू अर्थ को बताया कि पिछले कुछ समय में लाहौल क्षेत्र के सभी प्रकार के छोटे व बड़े किसानों के खेतों में राजमा में बीमारी देखी जा रही है। इसे झुलसा रोग कहा जाता है। इससे किसानों का बहुत नुकसान हुआ है।

कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से किसानों को इससे निपटने का  प्रशिक्षण दिया जा रहा है। किसानों से त्रिलोकी राजमा की किस्म का प्रयोग करने की सलाह दी जा रही है। इसमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता अन्य किस्मों की अपेक्षा अधिक होती है।