कृषि

140 करोड़ अतिरिक्त लोगों का भर सकता है पेट, अगर सिंचाई व्यवस्था में हों जाएं ये सुधार

दुनिया की 22 फीसदी कृषि भूमि के लिए सिंचाई की व्यवस्था है, जबकि दो-तिहाई कृषि भूमि अभी भी बारिश पर निर्भर है

Lalit Maurya

वैश्विक स्तर पर सिंचाई व्यवस्था में किया सुधार जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के साथ-साथ और 140 करोड़ लोगों का पेट भरने में मददगार हो सकता है। यह जानकारी हाल ही में कार्नेगी इंस्टिट्यूशन फॉर साइंस द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है।

अध्ययन के अनुसार वर्तमान परिस्थितियों में स्थानीय और रिन्यूएबल स्रोतों में हमारे पास जितना पानी मौजूद है उससे दुनिया भर में 35 फीसदी से अधिक कृषि भूमि पर सिंचाई की स्थाई व्यवस्था की जा सकती है। ऐसे करने से फसल उत्पादकता में जो वृद्धि होगी उससे करीब और 140 करोड़ लोगों का पेट भरा जा सकेगा। लेकिन यह तभी मुमकिन होगा जब हम पानी का सही तरह से इस्तेमाल करते हैं और शाश्वत सिंचाई व्यवस्था की मदद लेते हैं।

देखा जाए तो पिछले 60 वर्षों में वैश्विक स्तर पर कुल सिंचित क्षेत्र बढ़कर दोगुना हो गया है। इसके बावजूद अभी भी दुनिया की 22 फीसदी कृषि भूमि के लिए सिंचाई की व्यवस्था है, जबकि दो-तिहाई कृषि भूमि अभी भी बारिश पर निर्भर है।

आंकड़ों को देखें तो 2000 से 2019 के बीच कुल सिंचित क्षेत्र में 5.2 करोड़ हेक्टेयर का इजाफा हुआ है। इस तरह कुल सिंचित क्षेत्र बढ़कर 34.1 करोड़ हेक्टेयर पर पहुंच गया है। लेकिन जैसे-जैसे वैश्विक आबादी में वृद्धि हो रही है उसके चलते खाद्य पदार्थों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। पता चला है कि भोजन सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए 2050 तक वैश्विक खाद्य उत्पादन को दोगुना करने की जरुरत होगी।

इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए या तो हम कृषि क्षेत्र में वृद्धि कर सकते है लेकिन उसका खामियाजा पर्यावरण और जैवविविधता को को भुगतना पड़ेगा। वहीं दूसरी तरफ सिंचाई व्यवस्था में किया सुधार भी इसका एक बेहतर विकल्प हो सकता है। पिछले शोधों से भी पता चला है कि सिंचित फसलें उन फसलों की तुलना में दोगुनी उत्पादक हैं जो अकेले वर्षा पर निर्भर करती हैं। 

समय के साथ और बढ़ जाएगी सिंचाई के लिए पानी की मांग

अनुमान है कि इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए 2050 तक कुल वैश्विक सिंचित कृषि क्षेत्र 80 करोड़ हेक्टेयर तक पहुंच सकता है। मतलब कि इसके लिए पानी की जो मांग है वो पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी।

देखा जाए तो यह समस्या कहीं ज्यादा जटिल है वर्तमान में इंसान जल स्रोतों से जितना पानी ले रहा है, उसका 80-90 फीसदी हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल कर रहा है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या पानी की कमी पैदा किए बिना खाद्य उत्पादन को बढ़ाने के लिए सिंचाई का उपयोग किया जा सकता है?      

ऊपर से जलवायु में जिस तरह से बदलाव आ रहा है उससे बारिश के पैटर्न में भारी बदलाव आ रहा है, जिसका सीधा असर उपलब्ध जल पर पड़ रहा है। इसके साथ-साथ पौधों पर बढ़ता गर्मी का तनाव भी उत्पादकता को कम कर रहा है, जिसका मतलब है कि केवल बारिश पर निर्भर रहकर ही भोजन की बढ़ती मांग को पूरा नहीं किया जा सकता है।

यह सही है कि भूमि पर अतिरिक्त दबाव डाले बिना खाद्य आपूर्ति बढ़ाने के लिए सिंचाई एक शक्तिशाली उपकरण हो सकता है, लेकिन इसके लिए मौजूदा सिंचाई व्यवस्था में बदलाव करने होंगे और शाश्वत सिंचाई व्यवस्था को अपनाना होगा।

शोध के अनुसार सिंचाई की यह शाश्वत व्यवस्था भूजल और स्थानीय उपलब्ध जल स्रोतों पर निर्भर करती है। लेकिन इसमें इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि इन जलस्रोतों में जो जल है वो कम न हो, साथ ही बारिश को भी ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है, जिससे जलवायु में आते बदलावों के साथ उसपर पड़ने वाले असर को सीमित किया जा सके। इस व्यवस्था में कृषि उत्पादकता में इजाफा करने के साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि पानी के उपयोग से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव कम से कम पड़े।

व्यापक असर डालेगा जलवायु में आता बदलाव

शोध के अनुसार जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है गर्मी का तनाव बढ़ रहा है। इसकी वजह से बारिश में बदलाव आने के साथ-साथ पानी तेजी से वाष्पित हो सकता है, जिससे सिंचाई की दक्षता कम हो सकती है।

वहीं दूसरी और वायुमंडल में बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर कुछ फसलों के लिए फायदेमंद हो सकता है जो उन्हें कहीं ज्यादा उत्पादक बना सकता है। ऐसे में इन सभी कारकों का मतलब है कि खाद्य उत्पादन को बढ़ाने के लिए शाश्वत सिंचाई व्यवस्था की व्यवहार्यता को व्यापक रूप से समझने की जरुरत है।

क्या है समाधान

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता लोरेंजो रोसा का कहना है कि अध्ययन से पता चला है कि लंबी अवधि के लिए जल भंडारण जलाशयों का निर्माण, सिंचाई के लिए अकेले अक्षय जल संसाधनों पर निर्भर होने की तुलना में और 120 करोड़ लोगों को पेट भरने में मददगार हो सकता है।

उनके अनुसार अमेरिका, रूस, ब्राजील और नाइजीरिया जैसे देशों में जल भंडारण सुविधाओं का उपयोग करके अत्यधिक गर्म परिस्थितियों में भी स्थाई सिंचाई व्यवस्था तैयार करने की बड़ी क्षमता मौजूद है। हालांकि इस तरह के कार्यक्रम दक्षिण अमेरिका, पूर्वी यूरोप और उप-सहारा अफ्रीका में भी मददगार हो सकते हैं।

हालांकि जल-भंडारण के लिए बनाए इन बुनियादी ढांचों का सामाजिक-आर्थिक और भूमि-उपयोग क्या प्रभाव होगा यह अब तक एक बड़ा सवाल है। इसके साथ ही कृषि में बढ़ता उर्वरकों का उपयोग पर्यावरण और जल गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।

हालांकि शोध में इतना तो स्पष्ट है कि शाश्वत सिंचाई व्यवस्था गरीबी और भूख को कम कर सकती है। इसके साथ ही कृषि के लिए भूमि पर बढ़ते दबाव और उससे उपजे पर्यावरण सम्बन्धी खतरों को कम कर सकती है। रोजा का कहना है कि “कृषि के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करते हुए भोजन की पर्याप्त और समान पहुंच सुनिश्चित करना 21वीं सदी की सबसे बड़ी सामाजिक चुनौतियों में से एक है।“

जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित यह शोध दर्शाता है कि यदि सिंचाई व्यवस्था को सावधानीपूर्वक तैयार किया जाए तो खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग को पर्यावरण पर कम से कम असर डालकर पूरा किया जा सकता है।