कृषि

पूर्वोत्तर भारत के चावल में मिले ऐसे एंटीऑक्सीडेंट, जो डायबिटीज को रोकने में है अहम

आईएएसएसटी की जांच में चावल में दो अनसैचुरेटेड फैटी एसिड, लिनोलिक एसिड (ओमेगा -6) और लिनोलेनिक (ओमेगा -3) एसिड की उपस्थिति देखी गई, जो मानव स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं

Dayanidhi

वैज्ञानिकों ने पाया है कि भारत के सुदूर पूर्वोत्तर में उगाई जाने वाली सुगंधित चावल की किस्म, जिसे जोहा चावल के नाम से जाना जाता है, न केवल टाइप 2 मधुमेह को रोकती है, बल्कि अनसैचुरेटेड या असंतृप्त फैटी एसिड से भी भरपूर होती है, जो हृदय रोग के खिलाफ काम करती है।

भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अनुसार, चावल की किस्म में अहम एंटीऑक्सीडेंट पाए गए, जो इसे मधुमेह प्रबंधन में "पसंद का पोषक तत्व" बनाता है। इसमें कहा गया है कि जोहा में कई बायोएक्टिव यौगिक पाए गए जो एंटीऑक्सीडेंट प्रभाव डालते हैं, खून में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करते हैं और हृदय की रक्षा करते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ के अनुसार, मधुमेह एक प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है, जो 2021 में 20 से 79 वर्ष की आयु के अनुमानित 53.7 करोड़ वयस्कों को प्रभावित करेगी। अनुमान है कि 2045 तक यह आंकड़ा बढ़कर 78.3 करोड़ हो जाएगा।

टाइप 2 मधुमेह की शुरुआत आम होती जा रही है, लेकिन सफेद चावल के सेवन में कमी सहित जीवनशैली और आहार में बदलाव के माध्यम से स्थिति में सुधार  किया जा सकता है। चावल कई देशों में मुख्य भोजन है लेकिन यह खून में शर्करा के स्तर को प्रभावित कर सकता है और मधुमेह के खतरे को बढ़ा सकता है।

जोहा चावल, एक छोटे दाने वाली, सर्दियों की किस्म है जो अपनी अनूठी सुगंध और स्वाद के लिए जानी जाती है। चावल की इस किस्म ने भारत के इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईएएसएसटी) के शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया क्योंकि यह लोकप्रिय धारणा है कि जो लोग इसका नियमित रूप से सेवन करते हैं उन्हें मधुमेह से राहत मिलती है और हृदय संबंधी बीमारियां को दूर करती है।

अध्ययन के मुताबिक,  स्वास्थ्य को फायदा पहुंचाने वाला जोहा चावल में महत्वपूर्ण न्यूट्रास्युटिकल गुणों को बताने वाले ऐसे दावों को वैज्ञानिक मान्यता की आवश्यकता है और इसी तरह वैज्ञानिकों ने अपनी प्रयोगशालाओं में इसकी जांच शुरू की।

आईएएसएसटी की जांच में दो असंतृप्त फैटी एसिड, लिनोलिक एसिड (ओमेगा -6) और लिनोलेनिक (ओमेगा -3) एसिड की उपस्थिति देखी गई, जो मानव स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं और इन्हें आहार में शामिल करने की आवश्यकता है क्योंकि वे प्राकृतिक रूप से उत्पादित नहीं होते हैं। 

प्रयोगशाला और चूहों पर तथाकथित "इन विट्रो" परीक्षणों में जोहा चावल ग्लूकोज के स्तर को कम करने और मधुमेह की शुरुआत को रोकने में भी प्रभावी साबित हुआ।

यह देखते हुए कि चावल एशिया प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख खाद्य पदार्थ है और दुनिया भर में व्यापक रूप से खाया जाता है, जोहा जैसी शक्तिशाली मधुमेह विरोधी चावल की किस्म को लोकप्रिय बनाने से टाइप 2 मधुमेह के प्रसार को कम करने में काफी मदद मिल सकती है।

अग्न्याशय द्वारा पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन न कर पाने, एक हार्मोन जो खून में शर्करा के स्तर को बनाए रखता है और कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन के चयापचय को नियंत्रित करता है, जिसके परिणामस्वरूप टाइप 2 मधुमेह होता है।

ज्यादातर मामलों में, टाइप 2 मधुमेह हाइपरग्लेसेमिया (खून में शर्करा का उच्च स्तर) या हाइपरलिपिडिमिया (कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स जैसे लिपिड का उच्च स्तर) का कारण बनता है।

टाइप 1 मधुमेह में, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इंसुलिन बनाने के लिए जिम्मेदार अग्न्याशय में कोशिकाओं को नष्ट कर देती है ताकि हार्मोन का उत्पादन बंद हो जाए। टाइप 2 मधुमेह के विपरीत, टाइप 1 मधुमेह का कोई इलाज नहीं है, उपचार रक्त शर्करा के सामान्य स्तर को सुनिश्चित करने के लिए निरंतर निगरानी और रखरखाव तक सीमित है।

अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के अनुसार, 2021 में मधुमेह के प्रसार के लिए शीर्ष दस देशों में चावल मुख्य रूप से जिम्मेवार है।

उनका मानना है कि चावल अनुसंधान में अगली बड़ी बात पोषण पर है, विशेष रूप से चावल खाने वाली आबादी के बीच टाइप 2 मधुमेह और संबंधित बीमारियों को कम करने के लिए मधुमेह के अनुकूल कम ग्लाइसेमिक चावल की किस्मों की खोज करना है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, अन्य चावल की किस्मों को खाने वाले चूहों की तुलना में जब चूहों को जोहा चावल खिलाया गया तो वे मधुमेह से उभर गए और उनके रक्त में इंसुलिन का स्तर बढ़ गया और शर्करा के चयापचय में सुधार हुआ।

चावल को लेकर किसानों को आश्वस्त करना

अध्ययन में कहा गया है कि, अब जोहा की मांग बढ़ाने और किसानों को इसकी अधिक किस्म उगाने के लिए प्रोत्साहित करने के प्रयास चल रहे हैं।

जबकि, किसान इसकी खेती करने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि उन्हें जोहा चावल की न्यूट्रास्यूटिकल क्षमता के बारे में पूरी जानकारी नहीं है।

अध्ययन के मुताबिक, अगर किसानों के बीच जोहा चावल की क्षमता के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उन्हें इसे उगाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए सरकारी नीतियां हों तो इससे बहुत मदद मिलेगी।

अध्ययन में कहा गया कि, जोहा चावल को लोकप्रिय बनाना मुश्किल नहीं होना चाहिए क्योंकि यह न केवल मधुमेह रोगियों के लिए एक आशाजनक विकल्प प्रदान करता है, बल्कि अपनी मनमोहक सुगंध और कोमल बनावट के साथ इंद्रियों को भी खुश करता है, जिससे यह एक पाक व्यंजन बन जाता है। 

कई अध्ययनों से पता चलता है कि जोहा चावल में पाए जाने वाले सुगंधित यौगिक न केवल इसके स्वाद को बढ़ाते हैं, बल्कि संभावित स्वास्थ्य लाभ भी रखते हैं, सुगंध और लाभकारी पोषक तत्वों का संयोजन इसे एक आकर्षक विकल्प बनाता है।

भारत जिस मधुमेह के बोझ का सामना कर रहा है, उसे देखते हुए 2019 में भारत में 7.7 करोड़ लोगों को मधुमेह था, जिसके 2045 तक 13.4 करोड़ से अधिक होने के आसार हैं। यह महत्वपूर्ण है कि जोहा चावल और इसी तरह के खाद्य पदार्थ, जो इस स्थिति के खिलाफ किफायती रूप से काम करने के लिए जाने जाते हैं। इसे लोकप्रिय बनाया जाए और आहार में शामिल किया जाए।