हरियाणा सरकार ने धान की खेती को हतोत्साहित करने के लिए प्रदेश में ‘हरियाणा राज्य अधोभूमि जल संरक्षण अधिनियम’ लागू करते हुए 15 मई से पहले बुवाई और 15 जून से पहले रोपाई पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस साल दो लाख एकड़ धान का रकबा घटाने का फैसला किया है। यह बीते वर्ष से दोगुना है। इसके साथ ही समय से पहले बुवाई और रोपाई करने वाले किसानों पर सख्ती बरतने का निर्देश अधिकारियों को दिए गए है। हरियाणा सरकार ने यह नियम पंजाब के तर्ज पर लागू किया है। सरकार का दावा है कि प्रदेश में गिरते भूजल स्तर को सुधारने के लिए यह फैसला लिया गया है।
नोटिफिकेशन के मुताबिक, 15 मई से पहले धान की फसल के लिए नर्सरी तैयार करता है तो कृषि विभाग के अधिकृत अधिकारी नर्सरी को नष्ट कर सकता है और प्रति हेक्टेयर दस हजार रुपये का जुर्माना किसान से वसूला जाएगा। इसके साथ किसान की नर्सरी नष्ट करने पर होने वाले सरकारी खर्च की वसूली भी किसान से की जाएगी। इस कार्रवाई के खिलाफ किसान किसी भी कोर्ट में अपील नहीं कर सकता है और अधिकारी के खिलाफ कोई कानूनी या आर्थिक दंड नहीं दिया जा सकता है। तीन नए कृषि कानून के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन के बीच मनोहर सरकार ने गुपचुप तरीके से इसे अमलीजामा पहना दिया है।
कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 17 मार्च को विधानसभा में पारित होने के बाद यह अब कानूनन रूप ले चुका है। इसे सभी जिले के कृषि विभाग को अमल करने के लिए भेज दिया गया है।
इस बार करीब 12 लाख हेक्टेयर में धान की खेती के लिए सरकार ने लक्ष्य तय किया है। मेरा पानी, मेरी विरासत योजना को इस साल भी लागू किया जा रहा है। धान की खेती छोड़कर फसल विविधिकरण के तहत बाजरा, मक्का, दाल या सब्जी उगाने वाले किसानों को 7000 रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। अगर हरियाणा सरकार के रकबा घटाने के फैसले पर अमल हुआ तो प्रदेश में करीब 52 लाख कुंतल कम धान की पैदावार होगी।
हरियाणा किसान संघर्ष समिति के किसान नेता महेंद्र सिंह चौहान बताते है, अगर किसानों का दाल, मक्का और दूसरी फसल एमएसपी पर बिके तो किसान धान की खेती करना छोड़ सकता है। सरकार ने पिछले वर्ष किसानों को प्रोत्साहन राशि देने का वादा किया है, वह अब तक नहीं मिला है और मक्का की खेती करने वाले किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिला। 800-900 प्रति कुंतल मक्का पिछले साल बिका था, जिससे किसानों को नुकसान हुआ है। पिछले साल धान की खेती नहीं करने वाले भी इस साल धान की ही खेती करेंगे।
हरियाणा सरकार बीते दो वर्षों से धान का रकबा घटा रही है और न्यूनतम समर्थन मूल्य का लक्ष्य भी कम कर दिया है, लेकिन प्रदेश में धान का रकबा और पैदावार कुछ और कहते है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2018-19 में यह 14.47 लाख हेक्टेयर था, जबकि 2019-20 में बढ़कर यह 15.59 लाख हेक्टेयर हो गया। अब भी किसानों की दिलचस्पी धान की खेती में है। 2018-19 में धान की कुल पैदावार 45.16 लाख मीट्रिक टन था, जो बढ़कर 2019-20 में 51.98 लाख मीट्रिक टन हो गया। हरियाणा राज्य के गठन से लेकर अब तक धान के रकबे में 712 फीसदी और पैदावार में 241 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
हरियाणा के किसान धान की खेती छोड़कर दूसरे फसल अपनाने को तैयार नहीं है। यमुनानगर के किसान मनदीप गुलिया कहते है, धान को लेकर हरियाणा सरकार की नीति सही नहीं है। 7000 रुपये का प्रोत्साहन नीति तर्कसंगत नहीं है। एक एकड़ में 25-26 कुंतल पैदावार होती है। सरकार ने एमएसपी 1868 रुपये तय किया है। इस हिसाब से 47 से 48 हजार रुपये की आमदनी होती है। वैसे में कोई 7000 रुपये प्रोत्साहन राशि लेकर क्या करेगा। यह राशि मिलने की कोई गारंटी नहीं है।
दूसरे फसल अपनाने को लेकर मनदीप कहते है मक्का और बाजरा को सरकार 1850 रुपये एमएसपी पर खरीदने की बात कहती है, लेकिन हकीकत इससे दूर है। पिछले साल मक्का 800-900 रुपये के बीच बिका है। धान को खुले मार्केट में बेचने का विकल्प होता है, लेकिन मक्का तो बहुत मुश्किल से बिकता है।
भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी कहते है, धान की खेती मजबूरी है। दूसरी फसलों से किसानों को फायदा नहीं होता है, अगर धान नहीं लगाएंगे तो किसानों को भूखे मरने की नौबत आ जाएगी। पानी किसान की प्राथमिकता है, लेकिन सरकारी नीति की दिशा सही नहीं है। हरियाणा के 19 ब्लॉक ऐसे है, जो डार्क जोन में है, उसमें 11 ब्लॉक में धान की खेती नहीं होती है। केवल धान को जल संकट के लिए जिम्मेवार ठहराना सही नहीं है। कानून बनाकर सरकार केवल किसानों को परेशान कर रही है।
सरकार द्वारा रकबा घटाने का असर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर होने वाली खरीद पर पड़ेगा। रकबा घटने के कारण वर्ष 2021-22 में करीब दो लाख मीट्रिक टन सरकार धान कम खरीदेगी। अधिक पैदावार होने के बाद भी किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि निर्धारित लक्ष्य तक खरीददारी होने के बाद सरकार एमएसपी पर खरीददारी बंद कर देगी। 2018-19 में सरकार ने 58.82 लाख मीट्रिक टन की खरीद की थी, 2019-20 में 64.71 लाख मीट्रिक टन की खरीद की थी। 2020-21 में 56.07 लाख मीट्रिक टन की खरीद थी। जबकि इस साल पैदावार भी अधिक हुई थी।