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कृषि

बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आईसीएआर के साथ समझौता-ज्ञापनों से निगमीकरण की ओर तो नहीं बढ़ रही भारतीय खेती

इन करारों से निजी कंपनियों को तो आईसीएआर के विस्तृत नेटवर्क का फायदा मिलेगा जबकि इससे उसके द्वारा दी जाने वाली सेवाओं की प्रकृति और खेती को बढ़ावा देने वाले अधिकारियों के काम पर फर्क पड़ेगा

Shagun

खेती में शोध को बढ़ावा देने वाले देश के प्रमुख वैज्ञानिक संगठन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने जलवायु-अनुकूल खेती और ट्रेनिंग कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए अपने स्थापना दिवस यानी 15 जुलाई को सिंजेटा फाउंडेशन इंडिया (एसएफआई) और सिंजेटा इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक समझौता-पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं।

हालांकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ आईसीएआर का यह पहला एमओयू नहीं है।

आईसीएआर, कृषि-व्यापार करने वाली अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों, जैसे बायर और अमेजॉन के साथ इस तरह के एमओयू पर आगे बढ़ रही है। इनका मकसद, खेती में फसलों की अलग- अलग किस्मों, प्रयोगों, तकनीकों आदि के बारे में किसानों को जानकारी देना और इसमें आने वाली समस्याओं को ‘हल‘ निकालना है।

आईसीएआर के बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ इन एमओयू को लेकर किसान समूहों, कृषि-वैज्ञानिकों और सिविल सोसाइटी संगठनों ने गंभीर चिंताएं जाहिर की हैं। उनकी चिंताओं में कई सवाल शामिल हैं, जिसमें सबसे बड़ा सवाल एमओयू करने वाले दोनों पक्षों के हितों में अंतर्विरोधों का है।

आईसीएआर के आधिकारिक वक्तव्य में यह स्पष्ट नहीं है कि निजी कंपनियां, एमओयू के हिसाब से काम करने के दौरान खुद को अपने मार्केटिंग एजेंडे, उत्पादों और सेवाओं को आगे बढ़ाने से कैसे रोकेंगी। उदाहरण के लिए, वे किसानों को सबसे बेहतर विकल्प देने की बजाय अपने कृषि- रसायनों और बीजों को बढ़ावा देने का प्रयास तो नहीं करेंगी?

ये एमओयू, कृषि और उसके विस्तार की गतिविधियों में वैज्ञानिक अनुसंधान के व्यावसायीकरण का भी संकेत देते हैं, जो आईसीएआर, सार्वजनिक कृषि विस्तार विभागों और कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) का भी उद्देश्य है।

इन एमओयू की प्रति आम जन के लिए उपलब्ध नहीं कराई गई है, जिससे पता चल सके कि आईसीएआर ने किस चयन -प्रक्रिया के आधार पर इन निजी कंपनियों को मौका दिया। हालांकि उसने अपनी वेबसाइट पर इन एमओयू से संबंधित वक्तव्य जरूर जारी किए हैं। इनमें से कुछ ऐसे हैं -

- आठ जून 2023 को आईसीएआर ने ‘अधिकतम उपज और आय के लिए विभिन्न फसलों की वैज्ञानिक खेती पर किसानों का मार्गदर्शन करने के लिए’ अमेजॉन किसान के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए। आधिकारिक बयान के अनुसार, इस एमओयू का उद्देश्य अमेजॉन फ्रेश सहित पूरे भारत में उच्च गुणवत्ता वाली ताजा उपज की उपभोक्ताओं तक पहुंच सुनिश्चित करना है।

- 27 जून 2023 को आईसीएआर- इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ स्पाइसेस रिसर्च ने जैन इरिगेशन सिस्टम्स के साथ काली मिर्च, अदरक और हल्दी को लेकर संयुक्त शोध के लिए एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए। जैन इरिगेशन सिस्टम्स, एक बहुराष्ट्रीय माइक्रो इरिगेशन फर्म है।

- एक सितंबर 2023 को आईसीएआर ने बायर (बहुराष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल और क्रॉप साइंस कंपनी) के साथ फसलों के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के समाधानों, उनकी सुरक्षा, बीजों और मशीनीकरण के विकास के लिए एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद जारी आधिकारिक वक्तवय में बताया गया कि यह साझेदारी कृषि-स्थिरता कार्यक्रम के प्रयासों पर एक साथ काम करने, कृषि संबंधी सलाह के साथ छोटे किसानों को सशक्त बनाने और कार्बन क्रेडिट बाजार विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करेगी।

- इस साल 19 मार्च को आईसीएआर ने कृषि-रसायन निर्माता कंपनी, धानुका एग्रीटेक लिमिटेड के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। इसका मकसद प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (अटारी) और कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के साथ जोड़कर उन्हें कृषि उत्पादन से संबंधित सलाह और प्रशिक्षण प्रदान करना है।

- 13 जून 2024 को फर्टिलाइजर निर्माता और फसलों को नुकसान से बचाने के केमिकल बनाने वाली कोरोमंडल इंटरनेशनल लिमिटेड ने आईसीएआर - नेशनल ब्यूरो ऑफ सॉइल सर्वे एंड लैंड यूज प्लानिंग (एनबीएसएस और एलयूपी ), नागपुर के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए। इसक उद्देश्य महाराष्ट्र, विशेष रूप से विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्रों में किसानों के लिए ‘बेहतर मिट्टी परीक्षण-आधारित फसल पोषण प्रबंधन’ का प्रसार बढ़ाना है। इसके मुताबिक, एनबीएसएस और एलयूपी द्वारा तैयार किए गए मृदा-परीक्षण आधारित डेटासेट के आधार पर, कोरोमंडल ‘बेहतर मिट्टी के स्वास्थ्य और फसल उत्पादकता में सुधार के लिए पोषण प्रबंधन समाधान प्रदान करेगी’।

- 15 जुलाई को आईसीएआर ने किसानों और ग्रामीण युवाओं को बेहतर ट्रेनिंग और कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए सिंजेंटा फाउंडेशन इंडिया (एसएफआई) और सिंजेटा इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं। इसमें जलवायु-लचीली कृषि पद्वतियों और कृषि कौशल प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

विशेषज्ञों ने इतने एमओयू के औचित्य पर सवाल उठाए हैं।

अलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा), बेंगलुरु की सह-संयोजक, कविता कुरुगंती ने कहा, ‘ आईसीएआर उन उद्देश्यों को हासिल करने के लए निजी कंपनियों के साथ करार रहा है, जो खुद उसके हैं जबकि करदाताओं का धन ऐसा करने के लिए राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (एनएआरएस) में जा रहा है।’

उदाहरण के लिए अमेजॉन किसान के साथ एमओयू में कहा गया है कि किसानों की आजीविका और फसल बढ़ाने के लिए उन्हें तकनीकी मदद दिलाने के लिए आईसीएआर, अमेजॉन किसान की मदद लेगा। ऐसे ही सिंजेंटा के साथ एमओयू में बताया गया है कि दोनों पक्ष मिलकर जलवायु अनुकूल खेती को बढ़ावा देने, फसलों को बचाने के लिए रसायनों के सुरक्षित उपयोग की दिशा में काम करेंगे और इसमें वे ड्रोन और एआई आधारित तकनीक की मदद भी लेंगे।

कुरुगंती का सवाल है - ‘क्या इस बयान का यह मतलब नहीं है कि आईसीएआर अपने मकसद को हासिल करने में नाकाम हो रहा है? क्या आईसीएआर यह कह रहा है कि भारत का कृषि-विस्तार का तंत्र विफल हो रहा है? क्या एमओयू के बारे में राज्यों के कृषि-विस्तार से जुड़े विभागों की राय ली गई, क्योंकि हमारे संविधान के मुताबिक तो खेती राज्यों का विषय है?’

गौरतलब है कि आईसीएआर, दुनिया के सबसे बड़े सार्वजनिक कृषि अनुसंधान निकायों में से एक है। इस संगठन के पास 113 फसल-विशेष अनुसंधान संस्थानों का एक विस्तृत नेटवर्क है।

जबकि कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) देश में एक कृषि विस्तार केंद्र है। देश के हर जिले में मौजूद, केवीके के पास एक विशाल नेटवर्क है, जो कृषि प्रौद्योगिकियों की स्थान-विशिष्टता का आकलन करने और खेतों में प्रौद्योगिकियों की उत्पादन क्षमता स्थापित करने का काम करता है।

जब निजी कंपनियां आईसीएआर और केवीके के इस नेटवर्क का इस्तेमाल करेंगी तो इससे देश में आईसीएआर द्वारा की जा रही कृषि के विस्तार से संबंधित इकाइयों और उसके अधिकारियों पर असर पड़ेगा।

उदाहरण के लिए, आईसीएआर के अनेक संस्थान मिलकर किसानों के सामने आने वाली विभिन्न समस्याओं जैसे - नई जलवायु-लचीली फसल किस्मों, कृषि संबंधी प्रयासों से लेकर बीमारियों और कीटों से सुरक्षा तक का समाधान विकसित करते हैं।

आईसीएआर की पूर्व प्रधान वैज्ञानिक और फसल जीनोमिक्स की प्रमुख, सोमा मारला के मुताबिक, ‘कृषि-व्यापार की वैश्विक कंपनियों के हित दूसरे हैं। उदाहरण के लिए, बायर कीटनाशकों से लेकर संकर और आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) बीजों तक के उत्पादों की मार्केटिंग को बढ़ावा देने वाले शोध में शामिल है।’

बायर के साथ एमओयू पर आईसीएआर के बयान में कहा गया है कि दोनों के बीच साझेदारी से डायरेक्ट सीडेड राइस (डीएसआर) जैसे उपायों से धान की खेती में मदद मिलेगी, खासकर छोटे किसानों को। सोमा के मुताबिक, ‘डीएसआर में चावल की नर्सरी उगाने और रोपाई की दिक्कतों के बगैर तैयार धान के खेतों में चावल की सीधी बुआई शामिल है। लेकिन इस तरीके से काम करने में धान के खेतों में खर-पतवार बहुत बढ़ जाता है। बायर की दिलचस्पी इसमें रहेगी कि इस फसल बढ़ने के दौरान खर-पतवार को हटाने के लिए बार-बार केमिकल का छिड़काव किया जाए।’

यह स्पष्ट नहीं है कि किसानों को ऐसी सलाह दी जाएगी, जो कंपनी के अपने हितों से प्रेरित न हो। कुरुगंती सवाल उठाती हैं कि क्या आईसीएआर यह मानता है कि बायर किसानों को ऐसे परामर्श देगी, जो उसके व्यापार के हितों को आगे बढ़ाने वाले नहीं होंगे, और फिर क्या ऐसे परामर्श आईसीएआर और केवीके जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के द्वारा नहीं दिए जा सकते।

ये एमओयू 2021 में कृषि, सहयोग और किसान कल्याण विभाग द्वारा माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पाेरेशन और पतंजलि जैसे संगठनों के साथ किए गए करार जैसे ही हैं। इनके तहत संबंधित विभाग ने निजी कंपनियों के साथ समझौता किया कि वह जमीन की नापजोख और रिमोट सेंसिंग की मदद से फसल का अनुमान जैसे आंकड़ें उनके साथ शेयर करेगा। इसके चलते सूचना के गलत इस्तेमाल, डाटा प्राइवेसी, किसानों के प्रोफाइल, जमीन के रिकॉर्डों के गलत प्रबंधन और ख्ेाती के निगमीकरण जैसी चिंताओं ने जन्म लिया है।

आईसीएआर के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर करने वाली कुछ कंपनियां पहले स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले उत्पादों की मार्केटिंग के लिए जांच के दायरे में आ चुकी हैं। उदाहरण के लिए, बायर द्वारा विकसित शाकनाशी, ग्लाइफोसेट का उपयोग भारत में मनुष्यों और जानवरों के स्वास्थ्य संबंधी खतरों के कारण प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसी तरह सिंजेंटा द्वारा तैयार किए गए कीटनाशक, पोलो के कारण 2017-18 में महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में मौतें हुईं थीं। 15 जिलों में इन कीटनाशकों के जहर के कारण कुल 63 किसानों की मौत हो गई। यही नहीं, छह साल बाद भी इस जहर के वहां के लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव देखा जा रहा है, जो पहले से कहीं ज्यादा है।

यही वजह है कि विभिन्न किसान और सिविल सोसाइटी संगठन, कृषि वैज्ञानिक और नागरिक आईसीएआर को एक पत्र लिखेंगे, जिसमें उसे हस्ताक्षरित एमओयू के कार्यान्वयन को निलंबित करने, एमओयू प्रतियों सहित सभी विवरण सार्वजनिक डोमेन में साझा करने और ऐसे किसी भी अन्य एमओयू पर बिना बहस के हस्ताक्षर करने से रोकने के लिए कहा जाएगा। इस पत्र में यह भी पूछा जाएगा कि क्या आईसीएआर, किसान- संगठनों के साथ किसी एमओयू पर हस्ताक्षर करने पर विचार कर रहा है। पत्र में आईसीएआर द्वारा बायर को कार्बन क्रेडिट मार्केट में मदद देने पर भी सवाल किया जाएगा।