कृषि

कितने काम की है बेमौसमी गर्मी से जूझते किसानों को 'अतिरिक्त सिंचाई' की सलाह?

Raju Sajwan

फरवरी माह में पड़ रही अप्रत्याशित गर्मी को देखते कृषि वैज्ञानिक किसानों को एक अतिरिक्त सिंचाई की सलाह दे रहे हैं। इससे जहां भूजल स्तर को लेकर चिंता जताई जा रही है, वहीं वे किसान अधिक परेशान हैं, जहां सिंचाई के इंतजाम हैं ही नहीं।

डाउन टू अर्थ ने पंजाब और मध्य प्रदेश के कुछ किसानों से बात की। पंजाब के जालंधर जिले के किसान दो दिन से पड़ रही गर्मी के कारण किसान बेहद चिंतित हैं। किसानों का कहना है कि उन्होंने नवंबर में गेहूं की बिजाई की थी।  उसमें दाने आने लगे हैं, अभी गर्मी का असर पूरी तरह नहीं दिख रहा है। लेकिन यदि इसी तरह गर्मी का सिलसिला चला तो गेहूं की फसल को नुकसान होना तय है।

जालंधर जिले के किसान गुरप्रीत अटवाल बताते हैं कि उन्होंने इस बार 25 एकड़ में गेहूं लगाया है। उनके इलाके में जब बारिश होती है तो गेहूं को पानी (सिंचाई) लगाने की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन जब बारिश सही ढंग से नहीं होती है तो दो बार पानी लगाने की जरूरत पड़ती है। इस बार दिसंबर-जनवरी में बारिश नहीं हुई, इसलिए दो बार पानी लगाया जा चुका है, लेकिन अगर गर्मी ऐसे ही रही तो नमी के लिए तीसरी बार पानी लगाना पड़ेगा।

अटवाल कहते हैं कि जिन इलाकों में मिट्टी सख्त नहीं है, वहां अमूमन तीन बार पानी लगाना पड़ता है, वहां भी एक बार और पानी लगाना पड़ेगा। जब उनसे पूछा गया कि क्या अतिरिक्त पानी लगाने से फसल की लागत पर असर पड़ेगा, तो उन्होंने कहा कि पंजाब में किसानों को बिजली मुफ्त दी जाती है, इसलिए लागत तो नहीं आएगी, लेकिन पंजाब में भूजल स्तर गिरता जा रहा है, इसकी चिंता की जानी चाहिए।

तेजी से गिर रहा है भूजल स्तर
केंद्रीय भूजल बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक सुशील गुप्ता का पंजाब के भूजल प्रबंधन पर किया गया एक अध्ययन बताता हैं कि राज्य के बड़े हिस्से में भूजल स्तर का दायरा 10 से 20 मीटर है। हालांकि जालंधर, लुधियाना, पटियाला, अमृतसर और संगरूर जैसे प्रमुख शहरों के आसपास जल स्तर 20 से 40 मीटर नीचे है। लंबे समय तक जल स्तर में उतार-चढ़ाव के आंकड़े बताते हैं कि राज्य के प्रमुख हिस्सों में जल स्तर में भारी गिरावट आई है।

अध्ययन में किए गए भूजल मूल्यांकन के अनुसार, पंजाब राज्य के शुद्ध गतिशील भूजल संसाधन (नेट डायनामिक ग्राउंड रिसोर्स) 21.443 एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर) हैं, जबकि शुद्ध ड्राफ्ट (निकासी) 31.162 एमसीएम है। यानी कि राज्य में 9.719 एमसीएम भूजल की कमी है। राज्य के 50,362 वर्ग किमी क्षेत्र में से, 39,000 वर्ग किमी क्षेत्र (78%) जल स्तर में गिरावट दर्ज की गई है। और पिछले कुछ दशकों का आकलन किया जाए तो भूजल स्तर में औसतन हर दशक में 2 से 4 मीटर से अधिक की गिरावट आ रही है।

इस अध्ययन के मुताबिक पंजाब में गेहूं धान की खेती की वजह से सिंचाई के लिए पानी की बहुत ज्यादा जरूरत रहती है। यही वजह है कि राज्य में जहां 1970 में 1.92 लाख ट्यूबवेल थे, उनकी संख्या बढ़ कर 10 लाख से अधिक हो गई है।

अच्छी बात यह है कि पंजाब में गिरते भूजल स्तर को लेकर किसान भी चिंतित हैं, लेकिन उनका कहना है कि उनके पास खेती के अलावा कोई काम नहीं है और अगर धान-गेहूं के अलावा कोई खेती करते हैं तो उन्हें नुकसान झेलना पड़ता है। अटवाल कहते हैं कि अगर एक बार और सिंचाई करनी पड़ी तो 1 एकड़ में 4 इंच के पाइप से नंबर 8 घंटे तक पानी मोटर चलानी पड़ेगी फिर भी यह सुनिश्चित नहीं है कि गेहूं बच पाएगा या नहीं।

क्या है सलाह
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स विभाग से जुड़े हरी राम डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि किसानों की चिंता यह भी है कि इन दिनों तेज हवाएं चलने लगती हैं, ऐसे में यदि खेतों में पानी होगा तो गेहूं का पौधा गिर कर खराब हो सकता है। इसलिए किसानों को सलाह दी जा रही है कि वह शाम के समय हवा की गति को देखते हुए हल्की सिंचाई करें और खेतों को छोटे-छोटे टुकड़ों (प्लॉटों) में बांट देना चाहिए। गेहूं को गर्मी से बचाने के लिए अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत है। वहीं, किसान इस समय पोटेशियम नाइट्रेट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। 

मक्की का क्या होगा?
पंजाब के किसानों की समस्या मक्के की खेती को लेकर भी है। इन दिनों मक्के की बुआई हो रही है। किसान बताते हैं कि मक्के में हर आठ से दस दिन के भीतर पानी लगाना पड़ता है, लेकिन अगर गर्मी हुई तो मक्के की फसल को भी अतिरिक्त पानी की जरूरत पड़ेगी।

अटवाल कहते हैं, "मेरे खेत में हर 10 दिन में मक्के को पानी लगाना होता है। 90 दिन की फसल पर 9 से 10 बार सिंचाई करनी होती है, लेकिन इस बार लग रहा है कि गर्मी की वजह से हर तीसरे या चौथे दिन सिंचाई करनी पड़ेगी। इससे भी पानी की खपत बढ़ जाएगी।" 

दोहरी मार झेल रहे मध्य प्रदेश के किसान

बेशक पंजाब में ट्यूबवेल है और सिंचाई के लिए बिजली भी मुफ्त भी मिलती है, लेकिन ऐसा सब जगह नहीं है। मध्य प्रदेश के किसानों के लिए यह सीजन दोहरी मार कर रहा है। नहरें न होने के कारण लोग सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर रहते हैं, लेकिन न तो पिछले साल नवंबर-दिसंबर में बारिश हुई और ना ही इस साल जनवरी-फरवरी में, इसकी वजह जहां रबी की फसलों को नुकसान हुआ, वहीं जिन इलाकों में किसान ट्यूबवेल पर निर्भर रहते हैं, वहां भी ट्यूबवेल जल्दी सूख गए।

मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के ब्लॉक के किसान बताते हैं कि वह खेतों में लगे ट्यूबवेल के पानी से खेती करते हैं, जो हर सीजन में मार्च महीने में सूख जाता है। उनके गांव में भूजल स्तर 350 फुट पर है। मॉनसून में जब बारिश होती है तो उनके ट्यूबवेल में पानी आता है, तब वे उस पानी से रबी की फसल बोते हैं, लेकिन इस बार उनका ट्यूबवेल जनवरी में ही सूख गया। उन्होंने अपने खेतों में गेहूं लगाया था, गेहूं की सिंचाई तो कर दी थी, लेकिन फरवरी में पड़ रही गर्मी की वजह से नमी सूख गई है।

अभी गेहूं के दाने विकसित नहीं हुए हैं, इसलिए गेहूं पर भी असर नहीं दिख रहा है, लेकिन अगर ऐसा ही मौसम रहा तो गेहूं का दाना सूख कर छोटा जाएगा। क्योंकि उनके यहां अब सिंचाई का कोई साधन नहीं है। वह साफ तौर पर कहते हैं कि इस बार गेहूं का नुकसान होना तय है। जो गेहूं बच भी जाएगा, वह सही दामों में बिक नहीं पाएगा।

बाबू बताते हैं कि उनके यहां सिंचाई का साधन न होने के कारण गेहूं की कटाई के बाद खेत खाली रहते हैं, जब मॉनसून की बारिश होती है, तब वे लोग सोयाबीन बोते हैं। पिछले साल तो सोयाबीन की कीमत भी सही नहीं मिली, जिस वजह से उनको नुकसान उठा पड़ा था। सोचा था कि गेहूं की कीमत सही चल रही है, इसलिए उम्मीद थी कि गेहूं अच्छे दाम में बिक जाएगा तो उनका नुकसान पूरा हो जाएगा, लेकिन पहले बारिश और अब गर्मी ने पूरा खेल ही बिगाड़ दिया।

42 प्रतिशत हिस्से में होती है सिंचाई
देश के सबसे बड़े राज्यों में से एक मध्य प्रदेश में किसान सिंचाई के पानी की कमी झेलते हैं। इसके कुल भौगोलिक क्षेत्र 307.74 लाख हेक्टेयर में से शुद्ध बोया गया क्षेत्र केवल 150.74 लाख हेक्टेयर है। राज्य में सभी स्रोतों से शुद्ध सिंचित क्षेत्र 64.18 लाख हेक्टेयर है, जो कुल खेती योग्य भूमि का केवल 42.57 प्रतिशत है। राज्य में औसत वार्षिक वर्षा 857.70 मिमी है और अनुमानित 60 प्रतिशत बारिश का पानी बेकार बर्बाद हो जाता है।

राज्य में कुल सिंचित क्षेत्र में, नहरों का योगदान 10.51 प्रतिशत, कुओं और नलकूपों का 42.56 प्रतिशत, अन्य स्रोतों का 9.73 प्रतिशत और तालाबों का योगदान मात्र 1.38 प्रतिशत है। इस प्रकार बड़े-बड़े सिंचाई बांध बनाकर सिंचित क्षेत्र बढ़ाने के तमाम प्रयासों के बावजूद अभी तक केवल 10.51 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को ही बांधों और नहरों से सिंचाई के दायरे में लाया जा सका है।

इसके अलावा, बांध केवल नहरों के माध्यम से बांध के नीचे की ओर विशिष्ट क्षेत्रों में भूमि की सिंचाई कर सकते हैं। ऐसे में, दूर-दराज के क्षेत्र जहां कोई नदी नहीं बहती है, सिंचाई की सुविधाएं नहीं हैं।

ऐसी स्थिति में कम बारिश और बढ़ती गर्मी की वजह से मुसीबतों का सामना कर रहे किसानों को अतिरिक्त सिंचाई की सलाह काम नहीं आने वाली है।