प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2015 को सॉयल हेल्थ कार्ड लॉन्च किया था। फाइल फोटो साभार: pmindia.gov.in  
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खास रिपोर्ट: कितने काम के हैं मिट्टी की सेहत बताने वाले सरकारी कार्ड?

सरकार ने फरवरी 2015 में स्यॉल हेल्थ कार्ड स्कीम शुरू की थी। लगभग 10 साल बाद इस स्कीम से किसानों को क्या फायदा हुआ?

Mahesh Bhadana

तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है

मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी हैं

अदम गोंडवी की ये पंक्तियां साध राम साहू पर फिट बैठती हैं।  

एक सरकारी रिपोर्ट बताती है, “छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के किसान साधराम साहू की आमदनी बढ़ गई है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाने के बाद उनके खेतों में धान का उत्पादन 500 किलोग्राम एकड़ बढ़ गया है और आमदनी 4500 रुपए प्रति एकड़ बढ़ गई है”। लेकिन जब डाउन टू अर्थ ने साहू से बात की तो उन्होने बताया कि उनके खेतों की मिट्टी की कभी जांच ही नहीं की गई।

साहू का नाम उन किसानों में शामिल हैं, जिन्हें केंद्र सरकार की आधिकारिक वेबसाइट "सॉयल हेल्थ" में सफल किसान बताया गया है। मतलब- सॉयल हेल्थ कार्ड (मृदा स्वास्थ्य कार्ड) बनाने के बाद इन किसानों की तकदीर बदल गई।

साहू ने डाउन टू अर्थ को बताया, “मेरे खेत से आज तक मिट्टी का नमूना ही नहीं लिया गया,  लेकिन छह साल पहले विश्व मृदा दिवस (5 दिसम्बर) के मौके पर हमारी ग्राम पंचायत में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में गांव के कुछ और किसानों के साथ-साथ मेरा एक फोटो खींचा गया। उस समय मेरे हाथों में एक कार्ड थमा दिया गया। मुझे बताया गया कि यह मेरे खेत की मिट्टी की जांच रिपोर्ट है।”

19 फरवरी 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राजस्थान के गंगानगर जिले में सूरतगढ़ तहसील से मृदा स्वास्थ्य कार्ड की शुरआत की गई। जिसका मुख्य उ्देश्य मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करना व खेती किसानी को नई दिशा देना था। इस योजना के तहत किसानों को 25 करोड़ से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्ड (सॉइल हैल्थ कार्ड) वितरित किए जा चुके हैं।

अगस्त 2025 में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार की ओर से बताया गया कि इस योजना के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 1706.18 करोड़ रुपए जारी किए गए, जबकि देश भर में 8,272 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित की गईं। इनमें 1,068 स्थिर प्रयोगशालाएं, 163 मोबाइल प्रयोगशालाएं, 6,376 लघु प्रयोगशालाएं और 665 ग्राम-स्तरीय प्रयोगशालाएं शामिल हैं।

गंगानगर के पदमपुर निवासी हरविंदर सिंह बरार जो कि प्रगतिशील किसान उत्पाद संस्था के निदेशक व किसान है, के अनुसार "जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने हमारे जिले में इस योजना की शुरुआत की तब मैं भी उस कार्यक्रम का हिस्सा था और हम सभी को आशा थी कि यह योजना मृदा की उर्वकता को सुधारने व किसान की आय की बढ़ोतरी में महत्वपूर्ण साबित होगी। लेकिन हमें अभी तक कुछ भी फायदा नहीं हुआ है। प्रायोगिक तौर पर कृषि विज्ञान केन्द्र (के.वी.के) पदमपुर जो कि किसान हितेषी का मुख्य केंद्र होता है, उसमें कृषि अनुसंधान व वैज्ञानिकों का अभाव है व मृदा परीक्षण के उपकरणों की उपलब्धता नहीं है। इसके अलावा आज गंगानगर जिले में मृदा स्वास्थ्य प्रयोगशाला की कमी के कारण मिट्टी के स्वास्थ्य की जानकारी कृषि वैज्ञानिकों से नहीं मिल पाती है।

गंगानगर जिले के अन्य किसानों से बात करने पर उन्होंने बताया कि कृषि विभाग के कर्मचारी (कृषि पर्यवेक्षक) मृदा स्वास्थ्य कार्ड बना तो देते हैं लेकिन मिट्टी में कौनसे पोषक तत्व की कमी है या फिर कैसे सुधार करना है, ऐसी जानकारी नहीं देते हैं। जब उनसे कार्ड के बारे में जानकारी लेते हैं तो यह कह देते है कि आप कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि अनुसंधान अधिकारी व सहायक कृषि अधिकारी से संपर्क कीजिए।

दरअसल सरकार की वेबसाइट पर तीन अलग-अलग पीडीएफ फाइल में 58 किसानों की सफल कहानियां है। यह सफल कहानियां उन किसानों की है जिन्होंने मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनवाया और उसके बाद उनकी कृषि आय व उत्पादन में वृद्धि हुई। डाउन टू अर्थ ने तीनों पीडीएफ में दर्ज मोबाइल नंबर से किसानों से बात करने की कोशिश की। कुल 58 संपर्क में 10 से अधिक एक पीडीएफ़ से दूसरी पीडीएफ़ में सामान्य थे। 8 किसानों के मोबाईल नबर दर्ज नहीं थे।

कुल 18 नंबर पर कॉल लगाए गए जिनमें कि 4 किसानों ने कॉल का उत्तर नहीं दिया। 6 किसानों से बात हुई व 6 किसानों के नंबर अवैध व 2 के बन्द थे।

जिन किसानों से बात हो पाई, उनमें महाराष्ट्र के जलगांव जिले की रहने वाली किसान मीनाबाई शालिक पाटील के पति शामिल थे। उन्होंने बताया कि कृषि विभाग से मिट्टी का नमूना लेने के लिए कोई भी कर्मचारी नहीं आया। वे स्वयं नमूना लेकर प्रयोगशाला गए और उनको मृदा कार्ड दे दिया गया। व कृषि विभाग के किसी भी अधिकारी ने यह नहीं बताया कि इस रिपोर्ट के तर्ज पर उनके खेत में कौन से पोषक तत्व की कमी या अधिकता है या किस तरह की खेती की तैयारी करनी चाहिए।

वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक किसान मीनाबाई के मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाने के बाद फसल उत्पादन में 160 किलोग्राम/एकड़ बढ़ोतरी हुई है व 8000 रुपए प्रति एकड़ आय बढ़ी है। उनके पति ने इससे इंकार करते हुए कहा कि उनकी आमदनी में कोई इजाफा नहीं हुआ है।

सरकार के मृदा स्वास्थ्य कार्ड के सफल किसानों कि कहानियों में झारखंड के धनबाद जिले के निवासी किसान निरापदो गोराई से बात हुई। जिनका सरकारी आंकड़ों के अनुसार मिट्टी जांच करवाने के बाद 720 रुपए प्रति एकड़ फायदा हुआ व 320 किलोग्राम प्रति एकड़ उत्पादन अधिक हुआ है।

गोराई ने बताया कि उनके खेत से सामान्य रूप से मिट्टी का नमूना लेकर कृषि विभाग के कर्मचारी को सौप दिया। व दो महीने बाद कृषि कर्मचारी से मृदा कार्ड प्राप्त हो गया। व कर्मचारी के कहने पर अपने खेत में मृदा कार्ड के साथ तस्वीर की गई, लेकिन कृषि विभाग के कृषि मित्र द्वारा मृदा रिपोर्ट कार्ड के बारे में महत्वपूर्ण बात नहीं हुई।

बिहार के पूर्णिया के रहने वाले किसान कमलेश्वरी दास से बात हुई तो उन्होंने भी रिपोर्ट कार्ड के जानकारी न मिलने की बात कही और कार्ड के साथ इनका नाम भी सफल किसान की सूची में दर्ज है। वहीं, महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के किसान सर्जेराओ उत्तमराओ से बात हुई। यह एक प्रगतिशील किसान है और “जय भवानी किसान स्वय सहायता समूह” चलाते है जिसमें 11 किसान जुड़े हुए है। उन्होंने बताया कि वे मिट्टी की जांच करवाते है, अभी दो महीने पहले मृदा की जांच के लिए नमूना दिया था, लेकिन अभी तक रिपोर्ट नहीं मिली है। विलंब की वजह पूछने पर बताया कि जिन कृषि विभाग के कर्मचारी से वो जुड़े हुए है, वो अभी बीमार है। मिट्टी की जांच करवाने के बाद फायदे के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र से उन्हे सहयोग मिला है।

विशेषज्ञों ने उठाए सवाल

कृषि विश्वविधालय बीकानेर से रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. रामपाल जागिड़ के अनुसार “किसान के सॉइल कार्ड तो बन रहे है लेकिन कार्ड मे दर्ज रिपोर्ट की जानकारी किसान के साथ साझा नहीं हो रही है जिससे रिपोर्ट महज एक कागज बनकर रह जाता है। किसान को मृदा के प्रति जागरूक करने की जरूरत है।

इसके अलावा डॉक्टर जागिड़ ने कहा कि किसान के खेत की मिट्टी की जांच के साथ पानी की भी जांच होनी चाहिए जिससे पानी के हाइड्रोजन आयन (पी.अच), पोषक तत्व व लवण्यता के बारे में जानकारी मिल सके। पानी की जांच इसलिए भी जरूरी है कि हर साल भु:जल का स्तर नीचे की और जा रहा है, जिससे पानी का गुण व स्वभाव भी बदलता रहता है। अगर इस बारे में किसान को जानकारी हो तो किसान उसी स्वभाव की फसल प्रणाली का उपयोग कर सकता है। जिससे किसान को वास्तविक लाभ होगा व मिट्टी की भी गुणवता बनी रहेगी।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड के बारे में डॉ. वीरेन्द्र सिह लाठर, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली कहते है कि इस योजना की पूरे देश में व्यापक स्तर पर लागू करने की जरूरत नही थी, जो विशेष परिस्थितियो में समस्याग्रस्त मृदाएँ के लिए ही सीमित स्तर पर लागू होनी चाहिए थी, और जिस संख्या में सरकार आंकड़े बता रही है वो सब संदेहास्पद है क्यों कि देश में मौजूदा मृदा जांच व स्वास्थ्य कार्ड बनाने वाली तकनीकी प्रयोगशाला की संख्या के हिसाब से 25 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाए जाने की संख्या संभव नहीं, बल्कि अतिशयोक्ति ही प्रतीत होती है। देश की कुल 40 करोड एकड़ कृषि योग्य भूमि में से लगभग दो तिहाई 25 करोड एकड भूमि के सायल हेल्थ कार्ड जारी करना अतिशयोक्तिपूर्ण और हास्यास्पद है। मृदा प्रयोगशाला में उपकरण व कर्मचारी का भारी अभाव है व मृदा परीक्षण का एक विशेष तकनीकी मानकीकृत तरीका होता है जिसमें समुचित समय और संसाधन चाहिए।

कर्मचारियों की कमी

मृदा की जांच करने वाली प्रयोगशाला के कार्य प्रणाली व कर्मचारियों की उपलब्धता को जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने प्रयोगशाला में काम करने वाले कृषि अनुसंधान अधिकारी व अन्य कर्मचारियों से बात की। गंगानगर व जोधपुर जिले के ब्लॉक स्तर पर मृदा प्रयोगशाला में काम करने वाले कृषि अनुसंधान अधिकारियों ने बताया कि स्टाफ के अभाव के कारण कार्य का भार अधिक रहता है जिसके कारण किसानों के साथ कृषि परामर्श नहीं हो पाता है। अनुसंधान अधिकारी का काम ऑफिस का न होकर फील्ड का होता है लेकिन मिट्टी के नमूनों की जांच के कारण पूरे दिन प्रयोगशाला में व्यस्तता रहती है।

ब्लॉक स्तर की प्रयोगशालाओ में स्टाफ के रूप में तीन लोग कार्य करते है जिनमे एक कृषि अनुसंधान अधिकारी होता है बाकी 2 संविधा या टेन्डर पर काम करने वाले कर्मचारी होते है। मृदा के कार्ड बनाने, प्रयोगशाला में तकनीकी सहायक का कार्य करने व अन्य पदों के लिए राज्य सरकार टेन्डर निकालती है या संविदा पर कार्य करवाती है।

सरकारी टेन्डर एक साल का रहता है या इससे अधिक भी हो सकता है। डाउन टू अर्थ ने इस से जुड़े हुए व कार्य करने वाले कर्मचारियों से बात की। जिससे मालूम हुआ कि टेन्डर के तहत मृदा प्रयोगशाला में कार्य करने वाले प्रशिक्षित नहीं होते है और न ही उनकी पृष्ठभूमि मृदा रसायन से जुड़ी होती है। इस कारण मृदा के नमूने की जांच सही तरीके से हो रही है या नहीं, इस पर सवाल उठता है। टेन्डर में कार्य करने वालों को उनके ठेकेदार द्वारा तनख्वाह मिलती है जो कि बहुत कम होती है या सरकार द्वारा मृदा नमूने के अनुसार रुपये दिए जाते है।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविधालय समस्तीपुर, बिहार के मृदा विभाग में सहायक आचार्य डॉ. सिया राम मीणा ने बताया कि जब मृदा का परीक्षण करवाया जाता है तो एक रिपोर्ट कार्ड बनकर आती है जिसमें मुख्य 12 पैरामीटर होते हैं।

जैसे: कार्ड में मिट्टी में मौजूद स्थूल पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैसियम व सल्फर की जानकारी होती है। व इसी प्रकार पांच सूक्ष्म तत्व की जानकारी होती है। इसके अलावा मिट्टी की पी.एच यानी मिट्टी की अम्लता या क्षारीयता की जानकारी होती है। साथ ही मिट्टी में जैविक कार्बन की उपलब्धता के बारे में जानकारी लिखी होती हैं।

डॉ. मीणा के अनुसार मृदा स्वास्थ्य रिपोर्ट कार्ड के बारे में किसान को समझाने के लिए कृषि वैज्ञानिक या अनुसंधान अधिकारी की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं अथवा कृषि संकाय से स्नातक हुआ व्यक्ति जरूरी है, जो मिट्टी के प्रोफाइल व आवश्यक पोषक तत्व की महत्वता की जानकारी किसान को आसान भाषा में साझा कर सके।

2023 में शुरू हुई नई योजना

अगस्त 2023 में सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के घटक “मृदा स्वास्थ्य व उर्वकता” में शामिल करके नई मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की शुरुआत की। जिसमे मृदा स्वास्थय पोर्टल को नए सिरे से बनाया गया व इसमें भोगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस), मिट्टी के नमूने व परीक्षण को जोड़ने के लिए क्यूआर कोड शामिल किया।

इस योजना में ग्रामीण स्तरीय मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं वीएलएसटीएल की शुरुआत की। वीएलएसटीएल की स्थापना या चलाने का कार्य कोई भी व्यक्तिगत स्तर पर कर सकता है, अन्यथा सामुदायिक स्तर पर जैसे: स्वयं सहायता समूह, किसान समहू, स्कूल व कृषि विश्वविद्यालय आदि द्वारा की जा सकती है।

सरकार द्वारा जारी आकड़ों के अनुसार, देश में मार्च 2025 तक 665 ग्रामीण स्तरीय मृदा परीक्षण प्रयोगशाला बन चुकी है। बिहार राज्य में 72 प्रयोगशाला बन चुकी है व राज्य सरकार ने जून 2025 मे घोषणा कि है बिहार के हर ब्लॉक यानि 470 नई ग्रामीण स्तरीय मृदा परीक्षण प्रयोगशाला खोली जाएगी।

जब डाउन टू अर्थ ने केंद्र सरकार के बताए गए 72 मृदा प्रयोगशाला के बारे में बिहार कृषि विभाग से जुड़े हुए कर्मचारियों व अन्य कृषि जानकारों बात की तो उन्होंने बताया कि कुछ जिलों में ग्रामीण स्तर पर मृदा प्रयोगशाला बन गई लेकिन शुरुआत नहीं हुई है और जिस जगह शुरू हो गई है, उन्मे कुछ उपकरण व सुविधा के अभाव में पूर्णतया नहीं चल रही है।

इसके अलावा उन्होंने जिला स्तरीय मृदा प्रयोगशाला के बारे में भी बताया। उनके अनुसार, प्रयोगशाला में लक्ष्य के आधार पर विभिन्न गांवों से आने वाले मृदा नमूनों का परीक्षण किया जाता है लेकिन प्रयोगशाला मे कर्मचारियों के अभाव व मृदा नमूनों का लक्ष्य पूरा करने के लिए एक गाँव से आए हुए अनेकों नमूनों में से कुछ का परीक्षण करके बाकी के मृदा कार्ड बना दिए जाते है। और यह काफी जगह हो रहा है।

यह हालात जिला स्तरीय मृदा प्रयोगशाला के है जिनकी अवधारणा काफी वर्ष पुरानी है, दो वर्ष पहले शुरू हुई ग्रामीण स्तरीय मृदा प्रयोगशाला के वर्तमान हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है।

सरकार ने नई मृदा योजना में भोगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) की शुरुआत की तो इसका मुख्य कारण किसान के खेत से लिए जाने वाले मृदा नमूना के जगह की जानकारी व इसके बारे में पूरी जानकारी मृदा एप पर साझा की जा सके। लेकिन राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश व अन्य कुछ राज्यों में कृषि से जुड़े हुए लोगों से बात करने के बाद पता चला है कि कुछ राज्यों के जिलों में यह 2023 तक शुरू हो गया था व कुछ जगह पिछले कुछ महीनों में शुरू हुआ है। लेकिन अभी तक भी पूर्णतया लागू नहीं हुआ है जिससे किसान व उसके खेत से जुड़े हुए आंकड़े एप पर पुराने या गलत साझा किए जाते है। कुछ जगह नेटवर्क की समस्या बता कर मृदा नमूना लेते हुए के आंकड़े जारी नहीं किए जाते है।

बहरहाल एक बेहतरीन योजना के बावजूद किसानों को कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है। मिट्टी की जांच सही व व्यवस्थित तरीके से नहीं हो रही है। जिस कारण मिट्टी की प्रोफाइल व पोषक तत्व के बारे में पता नहीं चल रहा। किसान को मृदा स्वास्थ्य कार्ड मिलने के बाद रिपोर्ट के बारे में बात नहीं हो रही है। जिससे किसानों को मिट्टी की जांच करवाने का महत्व पता नहीं चल रहा है। बस सरकार आकड़ों के बलबूते योजना को शानदार बनाने की जद्दोजहद कर रही है।