कृषि

सेब कारोबार को बचाने के लिए नेपाल से मजदूर लाएगी हिमाचल सरकार

सेब तोड़ने से लेकर पैकिंग, ग्रेडिंग और ढुलाई के लिए नेपाल से लगभग सवा लाख मजदूरों को लाया जा सकता है

Rohit Prashar

कोरोनावायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन का सबसे बुरा असर मजदूरों पर पड़ा और साथ ही इन मजदूरों से जुड़ी अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह से प्रभावित हुई। पड़ोसी देश नेपाल में भी लॉकडाउन की वजह से वहां से आने वाले लाखों मजदूर भारत नहीं आ पा रहे हैं। इसका खामियाजा हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देने वाली सेब बागवानी को भुगतना पड़ सकता है। 

यही वजह है कि अब हिमाचल सरकार ने पड़ोसी देश नेपाल से करीब सवा लाख मजदूरों को लाने का निर्णय है। प्रदेश की जीडीपी में 3.5 फीसदी योगदान रखने वाली सेब बागवानी का हर साल 4500 करोड़ रुपए का कारोबार होता है। इस कारोबार में नेपाल से आने वाले दो लाख से अधिक नेपाली मजदूरों का अहम योगदान रहता है। जिनमें से 80 से 90 हजार मजदूर फिलहाल तो प्रदेश के विभिन्न जिलों में मौजूद हैं, लेकिन मजदूरी करने के लिए हर साल हिमाचल आने वाले सवा लाख के करीब मजदूर कोरोना संक्रमण से लगी पाबंदियों की वजह से नेपाल में अपने घरों में फंसे हुए।

इस बार वैसे ही खराब मौसम और भारी ओले व कोरोना संक्रमण के कारण सही से बगीचों की देखभाल न होने के चलते सेब की फसल कम रहने का अनुमान है। ऐसे में सेब तोड़ने, पैकिंग, ग्रेडिंग और ढुलाई के काम पूरी तरह से नेपाली मजदूरों पर निर्भर रहता है, इसलिए बागवान और आढ़ती सरकार से नेपाली मजदूरों को लाने के लिए सरकार पर लगातार दबाव बना रहे थे। जिसे देखते हुए सरकार ने नेपाली मजदूरों को सरकारी खर्चे में प्रदेश के विभिन्न जिलों तक पहुंचाने की घोषणा की है।

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि सेब सीजन चरम पर आने से पहले नेपाल से हर साल आने वाले मजदूरों को हिमाचल लाया जाएगा। इसके लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा है। नेपाली मजदूरों को हिमाचल लाने का खर्च सरकार वहन करेगी। हिमाचल में सेब का सीजन हर साल जून के आखिरी सप्ताह से लेकर अक्टूबर माह तक चलता है। इसलिए नेपाली मजदूर नेपाल से जून के तीसरे सप्ताह के बाद हिमाचल की ओर आना शुरू कर देते हैं और अक्टूबर के अंत तक काम पूरा करने के बाद अपने देश नेपाल वापसी कर देते हैं।

नेपाली मजदूर क्यों जरूरी
नेपाली मजदूर सेब बागवानी के लिए इसलिए जरूरी हैं क्योंकि पिछले कई दशकों से हिमाचल में सेब के काम देख रहे हैं। नेपाली मजदूरों के ज्यादातर परिवार ऐसे हैं जो हर साल एक ही बागवान के पास काम के लिए आते हैं और काम पूरा होने के बाद अपने देश वापस लौट जाते हैं। सेब बागवान सुशांत कपरेट ने डाउन टू अर्थ को बताया कि सेब के पौधे बहुत नाजूक होते हैं और सेब तुड़ान के दौरान पौधों को नुकसान न पहुंचे इसके लिए कुशल मजदूरों की जरूरत रहती है। क्योंकि नेपाली मजदूर वर्षाें से सेब का काम कर रहे हैं इसलिए उन्हें इसकी महारत हो चुकी होती है। इसके अलावा मजदूरों का पैसा फंस न जाए इसके लिए वे बार-बार एक ही भरोसे के बागवान के पास काम के लिए लौटते हैं।

1.13 लाख हैक्टेयर में सेब  बागवानी
फलों की टोकरी कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश में 1 लाख 13 हजार 154 हैक्टेयर क्षेत्र में 3 लाख 68 हजार 603 मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है। सेब का सेबसे अधिक उत्पादन जिला शिमला में होता है इसके अलावा ,किन्नौर, मंडी, कुल्लू, चंबा, लाहौल-स्पीति में सेब बागवानी होती है। अकेले शिमला जिले में सेब के कुल उत्पादन का 60 से 65 प्रतिशत सेब उत्पादन होता है। प्रदेश में सेब की 100 से अधिक वेरायटी का सेब उगाया जा रहा है और गर्म और कम उंचाई वाले इलाकों के लिए सेब की नई वेरायटी के आने से प्रदेश के सभी जिलों में सेब बागवानी शुरू हो गई है। बागवानी विभाग के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल 3.20 करोड़ सेब पेटियों का उत्पादन हुआ था। इसलिए इस बागवानी के क्षेत्र के बचाने के लिए सरकार ने बागवानों की मजदूरों की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं।