बेमौसमी बरसात से बिहार के किसानों को बड़ा नुकसान हुआ है। फोटो: राहुल कुमार गौरव 
कृषि

चक्रवाती तूफान 'मोंथा' के कारण बिहार में भारी बारिश, किसानों की समस्याएं बढ़ीं

बिहार में बेमौसम बारिश से किसानों की फसलें बर्बाद, गेहूं की बुवाई में देरी की आशंका

Rahul Kumar Gaurav

  • बिहार में चक्रवाती तूफान 'मोंथा' के कारण भारी बारिश से किसानों की फसलें बर्बाद हो गई हैं।

  • धान की फसलें कटने से पहले ही नष्ट हो गईं, जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ है।

  • मौसम विज्ञानियों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और मौसमी परिघटनाओं के कारण यह बेमौसम बारिश हुई है।

  • चुनाव में यह मुद्दा बनने से किसान निराश हैं

“बारिश ने किसानों को नुकसान के अलावा कुछ नहीं दिया है। फसल 20 दिनों के बाद कटने वाला था लेकिन बेमौसम बारिश ने सारे फसल को बर्बाद कर दिया। ऐसा लगा कि हम लोगों के सामने का आहार लूट लिया गया है। अब गेहूं के बुवाई में भी लेट होगा।” रोहतास जिला स्थित सासाराम के रहने वाले 28 वर्षीय सौरभ दुबे बताते है। सौरभ लगभग तीन बीघा जमीन पर धान की खेती किए हैं। सौरभ के मुताबिक उनका 25% धान बर्बाद हो चुका है।

“भारत माला परियोजना के चलते सड़क निर्माण के लिए धान की फसल को पहले ही रौंद दिया गया था। बची धान की फसल लगातार बारिश से खराब हो गयी। वर्षा के साथ हवा के कारण कई किसानों के धान की फसल खेतों में ही गिर गयी है। इस बार अच्छी पैदावार की उम्मीद की जा रही थी लेकिन पिछले तीन दिन लगातार बारिश से किसानों का काफी नुकसान हुआ है।” रोहतास जिले के ही चेनारी प्रखंड स्थित बीरनगर गांव के रहने वाले सौरभ कुमार बताते है। 

1 नवंबर से 3 नवंबर के बीच बिहार में भारी बारिश और तेज हवाओं के कारण धान की फसलें बुरी तरह से बर्बाद हो गई है। किसानों के मुताबिक इससे न केवल धान की फसलें बल्कि गेंहू की फसल और सब्जियों के बाजार भी प्रभावित हुए हैं।

राज्य में एक अक्टूबर से 06 नवंबर के बीच सामान्य से काफी ज्यादा वर्षा हुई है। इस दौरान 179 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई। जबकि सिर्फ 58 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए।

मौसम विज्ञान केंद्र के मुताबिक बंगाल की खाड़ी में बने चक्रवाती तूफान 'मोंथा' के कारण बिहार के मौसम में बड़ा बदलाव आया था। बिहार में दक्षिण पूर्वी दिशा से तेज ठंडी हवाएं चलीं साथ ही कई इलाकों में रुक-रुककर बारिश भी हुई। इस वजह से दिन के तापमान में 4 से 6 डिग्री तक की गिरावट दर्ज की गई थी। 

डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर में कार्यरत कृषि वैज्ञानिक शंकर झा बताते हैं कि,"कई वजहों से बैमोसम बारिश होती है। जिसमें मुख्य जलवायु परिवर्तन है। इसके अलावा अल नीनो एवं ला नीना जैसे मौसमी परिघटना और वायुमंडलीय अस्थिरता के कारण बेमौसम बारिश हो सकती है। इस बार मौसमी परिघटना की वजह से बेमौसम बारिश हुई है।"

बिहार के पूरे चुनाव में कृषि और आपदा कोई मुद्दा नहीं

सुपौल जिला स्थित वीना पंचायत के अमित चौधरी किसानों और छात्रों के लिए काम करते हैं। वह बताते हैं कि, “नेता और अधिकारी इस आपदा के समय चुनावी गतिविधियों में व्यस्त होने की वजह से पूरी तरह से नदारद है। किसानों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पूरे बिहार का चुनाव अभियान को देखिए,

पूरे चुनाव में कृषि और आपदा कोई मुद्दा नहीं है। मुद्दा सिर्फ जाति है। अधिकांश बटाईदार किसान ऐसी स्थिति में बर्बाद होते हैं जो कर्ज लेकर खेती किए होते है। यह हर साल की खबर है। किसानों का भविष्य अधर में लटका हुआ है। इतनी बड़ी तबाही के बावजूद कोई मुद्दा नहीं है।”

वीना पंचायत के ही रहने वाले पूर्व कृषि पदाधिकारी और किसान अरुण कुमार झा बताते हैं कि, “दलहन और तिलहन की बुवाई का समय भी अभी ही है। जलजमाव की वजह से जो अब नहीं हो पाएगा। आने वाले दिनों में गेहूं की बुवाई शुरू होनी थी, लेकिन बारिश के कारण खेतों में जलजमाव हो गया है और रबी की बुवाई भी इससे प्रभावित होगी। सरकार को इस पर स्पष्टीकरण देना चाहिए या स्थानीय अधिकारी स्वयं जिम्मेदारी लेकर किसानों की मदद करें। अगर अभी भी धूप अच्छे से हो तो गिरा हुआ फसल पुनः खड़ी हो सकती है। 

मिट्टी  की जांच कराते हो या फसल बीमा कराते हो?

मधुबनी के रहने वाले किसान राज झा रेडियो मधुबनी के फाउंडर और लेखक हैं। वह कहते हैं कि, “मैं जब भी किसान से मिलता हूं तो यह बात पूछता हूँ कि मिट्टी  की जाँच कराते हो या फसल बीमा कराते हो? जवाब ना ही आता है। अब जो बीमा कराये होते तो खड़ी फसल बर्बाद होने पर कुछ तो मिलता। बारिश की वजह से खेत के खेत डूब गए हैं। किसानों को सरकारी योजना संबंधित सुचनाओं को लेकर जागरूक होना बहुत जरूरी है। ” बोआई से लेकर कटाई तक फसलों के नुकसान के आधार पर उन्हीं किसानों को क्षतिपूर्ति मिलती है, जिन्होंने पहले से फसलों का बीमा करा लिया है।

मिट्टी की जांच और फसल बीमा के जवाब में मधुबनी के फुलपरास के रहने वाले ललित कुमार बताते हैं कि,”मिट्टी की जाँच आसानी से नहीं होती और बीमा के लिए ज़मीन के काग़ज़ चाहिए होते हैं। बटाईदार किसान कहां से कागज लाएंगे। बिहार के अधिकांश किसान को इस बात की जानकारी भी नहीं है। सरकार के द्वारा प्रचार प्रसार भी नहीं कराया जाता है।” 

मधुबनी के रहने वाले मुरारी कुमार बताते हैं कि“बिहार सरकार सहकारिता के माध्यम से यह काम करती है। किन्तु क्षतिपूर्ति के समय खेत के उपज डाटा को लेकर उसका 33% क्षति का आकलन कर किसान के साथ अन्याय करती है। जिसमें जिला के क़ृषि पदाधिकारी  का बहुमूल्य योगदान होता है। भुगतान प्रक्रिया में सबसे बड़ी रुकावट सर्वे में लेटलतीफी है।”

कृषि विभाग के मुताबिक जिला स्थित कृषि विभाग के अधिकारी कृषि समन्वयकों को आदेश दिया गया है कि वे फील्ड सर्वे करें और अगर क्षति हुई तो फिर नुकसान का रिपोर्ट जिला कृषि कार्यालय को भेजें फिर मुआवजा या जैसा भी होगा सरकार के निर्देश पर होगा। अभी तक किसी भी जिला की रिपोर्ट सबमिट होने की सूचना नहीं है।