हरियाणा में धान की फसल लगाने का काम शुरू हो चुका है, लेकिन धान किसान परेशान हैं। एक तरफ हरियाणा सरकार की नई राइस सूट नीति से नाराजगी है तो दूसरी तरफ लॉकडाउन के बाद उपजे स्थिति के कारण लागत बढ़ गई है। किसानों का कहना है कि इस बार प्रति एकड़ 9000 से दस हजार रुपए (करीब 15 फीसदी) अधिक लागत आएगी। लॉकडाउन की वजह से प्रवासी मजदूर अपने प्रदेश लौट चुके है। स्थानीय मजदूर प्रति एकड़ 4,500 से 5,000 रुपए मजदूरी मांग रहे हैं, जबकि पिछले साल ये दर 2,200 से 2,700 रुपए प्रति एकड़ थी। यूरिया, बीज, डीजल और नहरी पानी के दाम बढ़ने से खेती अब घाटे का सौदा लगने लगा है।
हिसार स्थित चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (एचएयू) के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. मंगतराम कहते है, ढाई एकड़ में धान रोपाई के लिए 20 मजदूरों की जरूरत होती है। करीब डेढ़ माह तक चलने वाले रोपाई सीजन के लिए रोज आठ लाख मजदूरों की जरूरत होगी, लेकिन फील्ड रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में करीब चार लाख मजदूरों की कमी है।
हरियाणा में करनाल, कैथल, जींद, कुरुक्षेत्र, अंबाला, यमुनानगर व सोनीपत में धान (सामान्य व बासमती) की खेती होती है। बीते वर्ष प्रदेश में 38.5 लाख एकड़ पर धान की खेती हुई थी। इस बार हरियाणा सरकार ने 8.5 लाख एकड़ धान के रकबे में कटौती कर दी है। केवल 30 लाख एकड़ भूमि पर ही धान की खेती होगी। रकबा घटाने के बाद सरकार पिछले साल के मुकाबले कम धान खरीदेगी। पिछले साल हरियाणा सरकार ने 54 लाख टन धान की खरीददारी की थी, इस बार करीब 20 फीसदी कम खरीददारी करने की संभावना है। ऐसे में किसानों को कम कीमत पर खुले बाजार में बेचने को मजबूर होना पड़ेगा।
पट्टे पर जमीन लेकर खेती करने वाले यमुनानगर के हरीपुर जटान गांव के किसान मनदीप सांगवान अब धान की खेती में मुनाफा नहीं मानते हैं, लेकिन उन्हें दूसरा विकल्प भी नहीं सूझ रहा है। उनका कहना है, पट्टे पर मिलने वाली खेती की जमीन इस साल 10 हजार रुपए अधिक कीमत पर मिली है। मजदूरी में 2000 रुपये, डीएपी खाद में 250 प्रति बैग, यूरिया में 40 रुपये, खरपतवार के कीटनाशक में 170 रुपए, डीजल और नहरी पानी के महंगे होने के कारण कुल मिलाकर इस बार 36,000 रुपए प्रति एकड़ लागत आएगी, जबकि पिछले साल तक 26 से 27 हजार रुपए थी। वहीं, कैथल के गांव फरल में बासमती चावल की खेती करने वाले किसान गुणी प्रकाश बताते है कि बासमती चावल की कटाई हाथ से होती है। मजदूरी बढ़ने की वजह से लागत बढ़ना तय है। मजदूर अधिक मजदूरी लेने के साथ खाना, पीना और मोबाइल तक मांग रहे हैं।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने एक जून को जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया था कि धान (सामान्य) की प्रस्तावित लागत 1245 रुपए होगी। इसी आधार पर इस वर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य 1868 रुपए तय किया गया है। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गुरणाम सिंह चढूणी कहते है, हरियाणा में औसतन 25 कुंतल प्रति एकड़ पैदावार होती है। इस हिसाब से प्रति कुंतल 1440 रुपए लागत होती है। किसान अपनी पूरी फसल भी बेच दें तो महज 10 से 11 हजार रुपये प्रति एकड़ मुनाफा होगा। इस बार एमएसपी तय करते हुए परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रखा गया। चार महीने की मेहनत के बाद दस हजार रुपये का मुनाफा किसानों को खेती छोड़ने पर मजबूर करेगा। लॉकडाउन के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार से मांग नहीं होने के कारण बासमती चावल के किसानों को नुकसान होने की संभावना है।
एचएयू के प्लांट पैथोलॉजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. एमपी श्रीवास्तव कहते हैं कि किसान 100 से 120 दिन में धान की फसल पा लेते हैं। जबकि मक्के की फसल को जानवरों से बचाना पड़ता है और कपास में कीड़े लगने की आशंका होती है। इन फसलों का एमएसपी भी नहीं मिलता है। जबकि धान की खेती फायदेमंद रही है। उच्च नस्ल की बीजों के कारण प्रति एकड़ 22-30 कुंतल तक धान पैदा करते हैं। बड़े किसानों को प्रति एकड़ 20 से 30 हजार रुपए फायदा हो जाता है। बासमती चावल को खुले बाजार में बेचने पर ज्यादा मुनाफा हो जाता है, जबकि इस मौसम में होने वाली अन्य दूसरी फसलों के साथ ऐसा नहीं है।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजीव कौशल का कहना है, सरकार किसानों को स्वेच्छा से धान की खेती छोड़ने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। अभी जिस तरह से प्रदेश में मजदूरों की कमी है, उसे देखते हुए किसानों को डीएसआर यानी धान के सीधे बीज से बिजाई पर जोर दे रही है। इससे पानी और श्रम दोनों की बचत होगी। किसानों को लाभ होगा।