कृषि

एमएसपी पर खरीद शुरू होने के 18 दिन बाद भी हरियाणा की सरकारी एजेंसी नहीं खरीद पाई सरसों का एक दाना

हरियाणा में इस बार 1.13 लाख किसानों ने एमएसपी पर सरसों बेचने के लिए हरियाणा सरकार के पोर्टल मेरी फसल मेरा ब् यौरा पर रजिस् ट्रेशन भी कराया, इसके बावजूद वह एजेंसियों को नहीं बेच रहे।

Shahnawaz Alam

हरियाणा सरकार ने एक अप्रैल से प्रदेश में सरसों की खरीद न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) 4650 रुपये पर शुरू की थी, लेकिन 18 दिन बीत जाने के बाद भी प्रदेश सरकार की एजेंसियां एक दाना भी सरसो खरीद नहीं कर पाई है। जबकि सरकार ने सात लाख कुंतल सरसों खरीदने का लक्ष्‍य रखा था। किसान भी मंडी में अब सरसों लेकर नहीं आए है। इसकी बड़ी वजह खुले बाजार में किसानों को सरसों की कीमत एमएसपी से अधिक मिल रही है। हरियाणा आढ़ती एसोसिएशन का कहना है कि प्रदेश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसान सरसों लेकर मंडी तक नहीं पहुंचा है। किसानों ने सीधे खेत ही सरसों बेच दिए है या कुछ अब तक सरसों को जमा करके रखे हुए है, ता‍कि और दाम बढ़ने पर बेचा जा सके।

दरअसल, हरियाणा में इस बार 9.15 लाख हेक्‍टेयर में सरसों की खेती हुई है। इस बार 1.13 लाख किसानों ने एमएसपी पर सरसों बेचने के लिए हरियाणा सरकार के पोर्टल मेरी फसल मेरा ब्‍यौरा पर रजिस्‍ट्रेशन भी कराया था, लेकिन इसके बावजूद वह बेचने नहीं आ रहे है। 18 अप्रैल के आंकड़े के मौजूद हरियाणा के चरखी दादरी में सरसों की बिक्री 5800 रुपये से लेकर 6421 रुपये और भिवानी में 5100 रुपये से लेकर 5540 रुपये प्रति कुंतल की बिक्री हुई है। इसी तरह अन्‍य जिलों में औसतन 5000 रुपये प्रति कुंतल की बिक्री हुई है।

नूंह जिले के फिरोजपुर खंड के किसान मोहम्‍मद राशिद बताते है, उन्‍होंने चार एकड़ का फसल पोर्टल पर रजिस्‍ट्रर्ड कराया था। मार्च के अंतिम सप्‍ताह में कटाई के वक्‍त ही दिल्‍ली से आए दो व्‍यापारियों ने 5500 रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से खरीदने का सौदा तय किया था और साथ ही एडवांस पैसे दे दिए। पांच अप्रैल को उनकी गाड़ी आई और वह लोड करके ले गए।

राशिद का कहना है कि पहले तो उन्‍हें एमएसपी से अधिक कीमत मिल गई और सरकारी झंझट से मुक्ति के साथ लाने-ले जाने, आढ़त शुल्‍क देने और मजदूरी का खर्च भी बच गया। सरसों गाड़ी में लोड करने के साथ पैसे अकाउंट में मिल गया था।

5250 रुपये प्रति कुंतल सरसों बेचने वाले बादली के किसान विरेंद्र डागर कहते है, पहली बार किसानों ने सरसों बेचकर मुनाफा कमाया है। एक हेक्‍टेयर में लगी फसल सीधे तेल मिल को बेचकर उन्‍हें 1.18 लाख रुपये मिले है, जबकि पहले 70-80 हजार रुपये ही मिलते थे। किसान आंदोलन से जुड़े सवाल पर कहा कि खुले बाजार में बेचने की छूट पहले भी थी और आज भी है। किसान न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य की मांग इसलिए कर रहा है कि यदि प्राइवेट कंपनियां कम दाम दे तो सरकार एमएसपी पर खरीद कर भरपाई कर लें।

उन्‍होंने बताया कि प्रति हेक्‍टेयर (ढाई एकड़) सरसों की खेती में लागत तकरीबन 58 हजार रुपये और मेहनत है। न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य की गारंटी पर बेचने पर प्रति हेक्‍टेयर 90-92 हजार रुपये मिल जाते है, मगर इस बार बाजार में अधिक कीमत मिल रही है, इसलिए किसान बाजार में बेच रहा है।

कृषि मामलों के जानकार देविंद्र शर्मा कहते है सरसों की मांग बढ़ने के पीछे राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय दो प्रमुख कारण है। भारत में रिफाइंड तेल में पाम ऑयल की बड़ी हिस्‍सेदारी है। जनवरी 2020 में मलेशिया से पाम ऑयल के आयात पर पाबंदी लगने के बाद से सरसों की मांग में बढ़ोतरी हुई है। रिफाइंड तेल बनाने वाली कंपनियां भी सरसों का अधिक प्रयोग कर रही है। शुद्ध सरसों तेल की मांग भी बढ़ना एक प्रमुख कारण है।

अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर देखें तो तिलहन के दाम बढ़े हुए है। इससे आयात महंगा हो गया है तो देसी कंपनियां सीधे तौर पर खरीद करने लगी है। कनाडा में कनोला (सरसों का एक प्रकार) के स्टॉक 24 फीसदी कम हो गई है। ब्राजील और अर्जेंटीना में ला निना इफेक्ट के चलते सोयाबीन, रूस और यूक्रेन में सूरजमुखी और यूरोप में सूखे के चलते सरसों की बुवाई प्रभावित हुई। इससे आयात चक्र प्रभावित हुआ है और इसका फायदा किसानों को मिल रहा है।

हैफेड के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि हरियाणा में इस समय तेल की 256 मिले है, जो सीधे तौर पर किसानों से खरीद कर रही है। इस बार प्रदेश में सूरजमुखी की पैदावार कम हुई थी, जिसके कारण सरसों के दाम में तेजी है। मौजूदा स्थिति का आंकलन करें तो आने वाले वक्‍त में यह दाम 7000 रुपये प्रति कुंतल तक पहुंच जाएगा।