वर्षा सिंह
इस अप्रैल के तीसरे हफ्ते में हुई बारिश और बर्फ़बारी ने उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के खेतों-बगीचों में कहर ढा दिया है। बागवान और किसान रुआंसे हो गए हैं। कहते हैं कि प्रकृति की बुरी मार पड़ी है। जनवरी से मार्च तक सूखा झेल रहे थे। जब बारिश की जरूरत थी, एक बूंद नहीं गिरी और अब सब कुछ नष्ट कर गई।
उत्तराखंड में पिछले एक हफ्ते से बारिश-बर्फ़बारी हो रही है। उत्तरकाशी के हर्षिल सेब पट्टी के सुखी टॉप गांव के बागवान मोहन सिंह कहते हैं “हमारे सेब सौ प्रतिशत खत्म हो गये। 17 अप्रैल को बारिश हुई थी लेकिन थोड़ी देर के लिए धूप खिल गई। जिससे अधिक नुकसान नहीं हुआ। 21 अप्रैल को ओलावृष्टि हुई। उससे बहुत ज्यादा नुकसान हुआ। उसके तुरंत बाद बर्फ़ गिरने लगी। 21 अप्रैल को ही करीब 3-4 इंच बर्फ़बारी हुई। 22 अप्रैल को दिन भर बारिश रही और आज 23 अप्रैल को उजाला होने के साथ ही बर्फ़ गिरनी शुरू हो गई। अब तक 6 इंच से अधिक बर्फ़ गिर चुकी है”।
इस समय सेब के पेड़ों पर फूल खिल चुके थे और फलों के बनने का समय आ गया था। मोहन सिंह कहते हैं “इस बार गर्मी अधिक पड़ने की वजह से मार्च के आखिरी हफ्ते में ही सेब के पेड़ों पर फूल खिलने लग गए थे। जो कि सामान्य तौर पर अप्रैल के दूसरे हफ्ते में खिलते हैं। बर्फ़ और ओले गिरने से सारे फूल झड़ गए। परागण नहीं हो सका। फलों को तो नुकसान पहुंचा ही है। टहनियां भी टूट रही हैं। हम टहनियों से बर्फ़ हटाने की कोशिश कर रहे हैं तो वापस बर्फ जम जाती है। अब हमारे पेड़ों के टूटने का खतरा है। इसमें हमारी बरसों की मेहनत लगी है”।
सेब उत्पादन के लिए उत्तराखंड में मशहूर पूरे हर्षिल बेल्ट की इस समय यही स्थिति है। मोहन सिंह कहते हैं “अप्रैल के आखिरी हफ्ते में हमने इस तरह की बर्फ़ गिरती नहीं देखी। ऐसी बर्फ़ तो जनवरी में गिरती है। इस साल पूरे मौसम में इतनी बर्फ़ नहीं गिरी जितनी एक दिन में गिरी है”।
उत्तरकाशी से थोड़ा नीचे टिहरी-मसूरी में भी यही हाल है। टिहरी के सकलाना पट्टी के मझगांव के किसान भागचंद रमोला रुआंसी आवाज़ में बताते हैं कि हमारा उगाया सब कुछ खत्म हो गया। पिछले दो दिनों की बारिश और ओले गिरने से ज़मीन पर कम से कम ढाई-तीन इंच मोटी ओले की चादर बिछ गई। पूरी ज़मीन बर्फ़ जैसी हो गई। हमारी खेती सौ प्रतिशत खत्म हो गई। सेब, आड़ू, नाशपाती, अखरोट, खुमानी, सब पर फूल खिले हुए थे। फल के छोटे छोटे दाने बनने लगे थे। जो ओलों की चोट से झर गए। मैंने मूली, पत्तागोभी, लेटुस, सलाइस की नर्सरी लगा दी थी। मटर की फसल पूरी खत्म हो गई। 21-22 अप्रैल की बारिश हमारा सब कुछ नष्ट कर गई है। अब चाहे बारिश हो या न हो, कुछ फर्क नहीं पड़ता।
उत्तरकाशी के मुख्य उद्यान अधिकारी डॉ रजनीश (सरनेम नहीं लगाते) भी मानते हैं “किसानों और बागवानों को भारी नुकसान हुआ है। वह कहते हैं “काफी अधिक आर्थिक नुकसान हुआ है। जिन किसानों ने फसल बीमा कराया था उन्हें कुछ राहत मिलेगी। 2019 में जिले के तकरीबन 3 हज़ार किसानों ने फसल बीमा कराया था। लेकिन 2020 में 5 हज़ार से अधिक किसानों ने फसल बीमा कराया है। इससे फसल नुकसान की भरपायी तो नहीं हो सकती लेकिन कुछ राहत जरूर मिलेगी”।
पेड़ों को ओले से बचाने के लिए एंटी-हेल(ओले) नेट का इस्तेमाल बी किया जाता है। डॉ रजनीश बताते हैं कि इस वर्ष 7 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र के लिए हमने एंटी-हेल नेट उपलब्ध कराए। लेकिन ये काफी नहीं है।
उत्तरकाशी में करीब 52 हज़ार किसान हैं। जबकि 11,419 बागवान हैं जो सिर्फ उद्यान क्षेत्र में हैं। वर्ष 2020 में उत्तरकाशी में 20191.50 मीट्रिक टन सेब का उत्पादन हुआ था।
देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र में मौसम विज्ञानी रोहित थपलियाल बताते हैं कि राज्य के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में वेदर स्टेशन नहीं होने की वजह से बर्फ़बारी का आकलन नहीं किया जा सकता। राज्य में मुक्तेश्वर में सर्वाधिक ऊंचाई पर वेदर स्टेशन है जहां सिर्फ बारिश दर्ज की गई है। रोहित बताते हैं कि बारिश की मात्रा के लिहाज से हम बर्फ़बारी का अनुमान लगाते हैं। उत्तरकाशी में मध्यम बारिश दर्ज की गई है तो उसी तर्ज पर मध्यम बर्फ़बारी का अनुमान लगाया गया है।
मौसम विज्ञानी रोहित थपलियाल के मुताबिक पश्चिमी विक्षोभ के चलते ये बारिश हुई है। इसे बेमौसमी नहीं कह सकते। अप्रैल में सामान्य तौर पर बारिश मिलती है। 24 अप्रैल के बाद बारिश-बर्फ़बारी कम होगी।
जंगल की आग और सूख रहे जल स्रोतों के लिए तो ये बारिश वरदान बनकर आई है। लेकिन किसानों- बागवानों की मेहनत पर पूरा पानी फिर गया।