चौधरी चरण सिंह
हमारे साहित्य में एक दृष्टांत आया है कि एक शेर का बच्चा गलती से भेड़ और बकरियों के झुंड में पड़ गया। एक शेर आया तो भेड़ और बकरियों की तरह शेर के बच्चे ने भी भागना शुरू किया। शेर इस बच्चे को पकड़ कर एक कुएं के पास ले गया और यह कहा कि देखो, “मैं और तुम एक हैं। तुम भेड़ या बकरी नहीं हो। अपनी ताकत को पहचानो। तुम भी शेर के बच्चे हो। तुम भेड़ और बकरियों की तरह भागना बंद करो।” मेरा कहने का अर्थ यह है कि किसान इस देश का मालिक है लेकिन अपने स्वरूप को भूला हुआ है और अपने आपको गीदड़ और भेड़ समझकर भाग रहा है।
अंग्रेजों के जमाने में कांग्रेस ने एक किसान सभा कायम की थी और जैसे ही देश आजाद हो गया, तो मेरी राय यह थी कि किसान सभा की जरूरत नहीं है, क्योंकि उनको अंग्रेजों से लड़ना था। स्वराज हासिल हो गया तो जिम्मेदारी खत्म हो गई। मेरे कहने पर उत्तर प्रदेश की कांग्रेस कमेटी ने किसान सभा को उस समय बंद कर दिया था। मेरा खयाल यह था कि देश की जनता का बड़ा भारी अंश किसान है। कोई भी राजनीतिक दल उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता। वह किसी भी राजनीतिक दल में जाए, उस दल के मालिक होंगे और हिन्दुस्तान के मालिक अंत में किसान ही होंगे, इसलिए किसानों को संगठन की जरूरत नहीं है। लेकिन 15 साल के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि मैंने गलती की। यह बात ठीक है कि किसानों की संख्या सबसे ज्यादा है लेकिन वे असंगठित हैं।
गांधी जी कहते थे कि असली भारत गांव में रहता है। शहर में पैदा हुए जो लीडर हैं, जो नेता है, वे कितने ही गंभीर हों, कितने ही नेकनीयत हों, कितने ही ईमानदार हों, उनको आपकी तकलीफों का पता नहीं है। उन्हें आपके मनोविज्ञान का पता नहीं। आपकी कठिनाइयों का पता नहीं। उनको यह नहीं मालूम कि सिंचाई से क्या फायदा होगा। उनको भैंस और गाय में ही फर्क मालूम नहीं।
मैं अगर गांव वालों की बात करता हूं तो इसलिए कि मैं खुद एक किसान के घर पैदा हुआ हूं। मैं छप्पर छवाये मकान में पैदा हुआ, जो छप्पर कच्ची दीवार पर रखा हुआ था। वह खानदान किसानों का था और वे अपने जमीन के मालिक नहीं थे, काश्तकार थे। हमारे घर के सामने कच्चा कुआं था। खेतों के लिए भी और पीने के लिए भी उसी कुएं से पानी लिया जाता था। आदमी के संस्कार का असर उसके विचारों पर पड़ता है, शिक्षा का नहीं। मेरा बेटा किसान का बेटा नहीं है। उसे आपकी समस्याओं के बारे में नहीं पता।… इंजीनियरिंग पास करके चाहता था कि मैं उसे नौकरी दिलवाऊं। मैंने उससे कहा था, “चार सौ रुपए की नौकरी मिलती है। सरकार में जगह खाली है, उसे ले ले। लेकिन वह कहता था, “मुझसे पीछे रहने वाले लोगों को आज 800 रुपए की नौकरी मिल गई है। उन्हें सेठों की सिफारिश से नौकरी मिली है।” अब उसने मुझसे कहा कि उसे बाहर पढ़ने के लिए भेज दें। यूपी सरकार बाहर तकनीकी शिक्षा हासिल करने वाले लड़कों को दस हजार रुपए का कर्जा देती थी। मैंने वो कर्जा लेकर उसे दिया और वह चला गया, नौकर हो गया। अगर कल को वह प्रधानमंत्री हो जाए तो ठीक वही करेगा, जो जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा ने किया है।
मैं आपकी बात करता हूं। कोई परोपकार की बात नहीं करता। मेरी आत्मा का तकाजा है, मेरे संस्कारों का तकाजा है कि आपकी और गरीबों की बातों को जानूं और ये लीडर आपकी बातों को जानें। किसानों को अपनी ताकत पहचान लेनी चाहिए। हिन्दुस्तान तब तक नहीं उठेगा, जब तक किसानों की हालत अच्छी नहीं होगी। किसान की आमदनी का जरिया है खेती। खेती की पैदावार जितनी बढ़ेगी, उतने ही दूसरे धंधे बढ़ेंगे और देश मालदार होगा। जिस देश में किसानों की तादाद ज्यादा है वो देश गरीब हैं। दूसरे पेशा करने वाले लोगों की तादाद जब ज्यादा होती है तो वह देश मालदार होता है। इसीलिए अमेरिका सबसे मालदार देश है। 100 में से चार आदमी खेती करते हैं और 96 आदमी दूसरा पेशा करते हैं।
हमारे देश में जब अंग्रेज आए तो 100 में से 60 आदमी खेती करते थे और 25 आदमी उद्योग-धंधे में लगे हुए थे। अब 100 में 72 आदमी खेती करते हैं और 9 या 10 आदमी उद्योग-धंधे में लगे हुए हैं। तो जब अंग्रेज आए, हमारा देश मालदार था, अब देश गरीब है।
मैं जो बात कह रहा था वह बात बीच में रह गई। मैंने किसान सभा को बर्खास्त करवा दिया था। लेकिन 15 साल के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि किसानों को संगठन की जरूरत है। आखिर क्यों? जितने छोटे-छोटे वर्ग वाले लोग हैं, वे बहुत आगे बढ़ रहे हैं और गांव के लोग, आमतौर पर किसान, सबसे पीछे रह गए। जब अंग्रेजों के जमाने में हम उनकी खिलाफत करते थे, व्याख्यान देते थे, तो एक बात हमारे कहने की यह थी, हमारा यह तर्क था कि शहर में बड़े-बड़े सेठ बढ़ गए, मालदार आदमी बहुत बढ़ गए और गांव के लोग जो हैं वे कमजोर और गरीब हो गए। उन दोनों की आमदनी का फर्क बढ़ गया। हमने सोचा था कि स्वराज होगा तो हम इस अंतर को कम करेंगे लेकिन आपको सुनकर अचरज होगा कि बात उल्टी हो गई। सन 1950-1951 में अगर किसान की आमदनी 100 रुपए थी, तो शहर में रहने वाले गैर किसानों की आमदनी 175 रुपए थी। 1976-77 में क्या हुआ? 26 साल के स्वराज के बाद क्या किसान की आमदनी बढ़ी? जब अंग्रेज गए तो आम किसान की आमदनी 175-350 रुपए थी। तीस साल के स्वराज्य के बाद भी आमदनी 350 रुपए तक क्यों है?
रेलवे के लोग हड़ताल करते हैं, तो सरकार झुकती है। जो लोग जहाजों को लादते हैं या उससे सामान उतारते हैं, वे हड़ताल करते हैं तो सरकार झुकती है। जो लोग बिजली में काम करते हैं, वे हड़ताल करते हैं तो सरकार झुकती है। जो लोग बैंकों में काम कर रहे हैं, वे क्लर्क 1,700 रुपए पाते हैं... और तीन बजे क्लर्क रजिस्टर उठाकर रख देता है। उसे लगता है कि आज का मेरा काम खत्म हो गया। अगर दो घंटे और काम करते हैं तो बाइस रुपए घंटा ओवर टाइम मिलता है। क्लर्क 1,700 तनख्वाह की जगह चार-चार हजार रुपए पा रहे हैं। हमारे पास हवाई जहाजों का मेला है। उसके ड्राइवर को 1,350-1,400 रुपए महीने मिलता है। हवाई जहाज में जो लड़कियां रहती हैं, चाय आदि देने के लिए उन्हें 700 रुपए तनख्वाह मिलती है और 1,500 रुपए महंगाई भत्ता अलग से पाती हैं। वे कुल 2,200 रुपए पाती हैं। फिर भी हड़ताल होती है और सरकार झुकती चली जाती है।
किसान हड़ताल नहीं कर सकते। और न मैं चाहता हूं कि वे हड़ताल करें। लेकिन किसानों को अपना संगठन बनाना चाहिए। दुनिया में आज कोई किसी को संगठन के बिना पूछता नहीं है, चाहे उनकी मांग कितनी ही वाजिब क्यों न हो।
किसानों को कर्जा देने के लिए एक अलग बैंक होना चाहिए। अपने जितने बैंक हैं, सरकार की तरफ से वे दूसरे लोगों को कर्जा देते हैं। कायदे-कानून के मुताबिक, उनको किसानों को भी कर्जा देना चाहिए। लेकिन किसान चक्कर काटते रहते हैं। मान लो अन्य लोगों को बैंकों से 10 करोड़ रुपए नौ फीसदी ब्याज पर कर्जा मिलता है, तो एक करोड़ रुपए किसानों को भी कर्जा मिलना चाहिए। खेती करने वालों की तादाद 72 फीसदी है। इतने लोग जिस पेशे में लगे हुए हैं तो उस पेशे के विकास के लिए एक करोड़ रुपए और बाकी 28 फीसदी लोगों के लिए नौ करोड़ रुपए। इसमें किसी सरकार का कसूर नहीं है। आप शहर के बड़े आदमी को लीडर बना देंगे तो आपका सांसद और विधायक वहां जाकर कुछ नहीं करेगा। वह शहर के लोगों के पक्ष में खड़ा होगा।
समस्याएं अनेक हैं। उन समस्याओं का हल एकदम नहीं कर सकते। गांवों में सड़कों, स्कूलों, अस्पतालों, बिजली आदि की कमी है। भ्रष्टाचार तब तक नहीं मिटेगा जब तक गांव के रहने वाले लड़के दिल्ली और कर्नाटक में जाकर राजसत्ता छीन नहीं लेंगे। बिना इसके चलने वाला नहीं। मैं कहना चाहता हूं कि उठो और जागो। अपनी ताकत को पहचानो। तुम्हें बहुत दिन हो गए सोते हुए। यह हिन्दुस्तान तुम्हारा है। केवल शहरों और पूंजीपतियों का नहीं।
(पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह द्वारा 4 नवंबर 1979 को हुबली में किसान सम्मेलन में दिए गए भाषण के संपादित अंश)