प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 19 फरवरी 2020 को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आरडब्ल्यूबीसीआईएस) को स्वैच्छिक करने का निर्णय लिया गया।
लेकिन इन बदलावों के बीच एक बड़ी घोषणा की ओर ध्यान नहीं दिया गया। यह है कि जल संकट से जूझ रहे जिलों के किसानों की सहायता के लिए नई योजना लाई जाएगी।
इस निर्णय से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से अनियमित और बेमौसमी घटनाओं के कारण फसल को हो रहे नुकसान झेल किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और आरडब्ल्यूबीसीआईएस में परिवर्तन कैसे प्रभावित करेगा।
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को स्वैच्छिक करने का निर्णय लिया गया है, जबकि अब तक उन किसानों के लिए इस योजना में शामिल होना अनिवार्य था, जिन्होंने लोन लिया हुआ है। देश में ऐसे किसानों की संख्या 58 फीसदी है। जबकि जिन किसानों ने लोन नहीं लिया हुआ था, उनके लिए फसल बीमा लेने की शर्त अनिवार्य नहीं थी, वे स्वैच्छिक तौर पर फसल बीमा कवर ले सकते थे। हालांकि ज्यादातर ऐसे किसानों ने बीमा कवर नहीं लिया है।
फसल बीमा योजना 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉन्च की थी। इस योजना के तहत किसानों को रबी फसल के लिए 1.5 प्रतिशत और खरीफ फसल के लिए 2 प्रतिशत प्रीमियम जमा कराना होता है। प्रीमियम की शेष राशि राज्य व केंद्र सरकार बराबर-बराबर मिल कर देती है।
योजना के लॉन्च होने के बाद किसानों ने देश भर में जगह-जगज प्रदर्शन किए, क्योंकि बीमा कंपनियां नुकसान का भुगतान करने में देरी कर रही थी या भुगतान नहीं कर ही रही थी।
यहां तक कि कई फसल बीमा कंपनियों ने योजना को छोड़ने का निर्णय ले लिया है, क्योंकि फसल नुकसान बढ़ रहा है और लगातार अधिक भुगतान करना पड़ रहा है।
जिन किसानों के लिए बीमा योजना में शामिल होना अनिवार्य था, उनका अनुभव भी कटु रहा, क्योंकि उन्हें नुकसान का समय पर भुगतान नहीं मिल रहा था। तक केंद्र सरकार को सितंबर 2018 में अपने नियमों में बदलाव करना पड़ा, जिसमें कहा गया कि अगर किसानों को उनके नुकसान की भरपाई समय पर नहीं होती है तो बीमा कंपनियों को 12 फीसदी ब्याज दर का भुगतान करना होगा।
लेकिन अब इस योजना को स्वैच्छिक बनाने के बाद एक तरह से किसानों को सुरक्षित क्षेत्र से बाहर निकाल दिया गया है। हालांकि, लोन न लेने वाले किसान पहले ही फसल बीमा योजना में शामिल नहीं हो रहे थे। जबकि लोन ले चुके किसान इस योजना का विरोध इसलिए कर रहे थे, क्योंकि उन्हें उनके नुकसान का भुगतान नहीं किया जा रहा था।
वर्तमान में यह नहीं कहा जा सकता कि क्या किसान अब बीमा योजना में शामिल होंगे, क्योंकि अब तक का उनका अनुभव अच्छा नहीं रहा है।
मंत्रिमंडल ने एक और महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जो बीमा के प्रीमियम पर बड़ा असर डाल सकता है। केंद्र सरकार ने अपने हिस्से की प्रीमियम सब्सिडी घटा दी है। अब तक केंद्र सरकार 50 फीसदी सब्सिडी देती थी, लेकिन इसे अब गैर सिंचित क्षेत्र के लिए 30 फीसदी और सिंचित क्षेत्र के लिए 25 फीसदी कर दिया गया है। इसका मतलब यह है कि अब प्रीमियम पर पड़ने वाले अतिरिक्त बोझ का भुगतान राज्य सरकारों को करना पड़ेगा। हालांकि ज्यादातर राज्य इस स्थिति में नहीं हैं कि आर्थिक बोझ झेल सकें।
यकीनन, सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर अपने निर्णयों के प्रभाव से अवगत है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में फैसलों की घोषणा करते समय यह स्पष्ट देखने को आया कि सरकार हजारों किसानों पर नकारात्मक प्रभाव के बारे में जानती है।
इसलिए जल संकट से जूझ रहे जिलों, जहां सबसे गरीब किसान रहते हैं के लिए एक और योजना तैयार करने का निर्णय लिया गया।"चूंकि इस योजना को स्वैच्छिक बनाया जा रहा है, इसलिए 151 जिलों, खासकर 29 सबसे अधिक जल संकट वाले जिलों में वित्तीय सहायता और जोखिम से बचने के उपकरण प्रदान करने की योजना तैयार की जाएगी। इन जिलों में किसानों को अन्य जिलों के मुकाबले दोगुना जोखिम झेलना पड़ता है”।
लेकिन सवाल यह है कि नई योजना कब शुरू होगी और उसे पूरा करने के लिए कितना समय दिया जाएगा। वर्ष 2020-21 का अनुमानित बजट संसद के पास अनुमोदन के लिए है। हो सकता है कि इस योजना को लेकर आवश्यक वित्तीय आवंटन बाद में जोड़ दिया जाए।