कृषि

कोयला प्रदूषण के कारण धान काली होने पर सरकारी खरीद केंद्रों का खरीदने से इंकार

किसानों ने धान वाशरी प्लांट स्थापित करने की मांग की ताकि इससे धान धोकर-सुखाकर खरीद केंद्रों को बिक्री की जा सके

Anil Ashwani Sharma

अभी तक देश में दिल्ली-एनसीआर के वायु प्रदूषण से ही लोगों के दम घुटने की खबरें सुनने और पढ़ने को मिल रहीं थीं लेकिन अब एक और भयावह तथ्य सामने आया है कि कोयले के प्रदूषण के कारण छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के दर्जनों गांवों के किसानों की धान की फसल काली हो गई है।

ऐसे में जब किसान अपनी धान सरकारी समर्थन मूल्य के खरीद केंद्र पर बिक्री के लिए जा रहे हैं तो खरीद केद्र उनकी धान के काली होने के कारण खरीदने से इंकार कर रहे हैं। यह सिलसिला पिछले दो हफ्ते से लगातार चल रहा है।

आखिरकार परेशान होकर दर्जनों किसानों ने जिला कलेक्टर को इस बात का एक ज्ञापन सौंपा और मांग की है कि कोल वाशरी की तर्ज पर “धान वाशरी प्लांट” भी हमारें गांवों में स्थापित किया जाए। ध्यान रहे कि कोल वाशरी का मतलब होता है कि खदानों से निकले कोयले को पहले कोल वाशरी प्लांट में धोया जाता है और इसके बाद उसे इस्पात कारखाने और थर्मल पॉवर स्टेशनों में भेजा जाता है।

इससे कोयले में राख निकलने की मात्रा कम हो जाती है। इसी तर्ज पर अब पहली बार क्षेत्र के किसानों ने मांग की है कि हमारे गांवों के पास भी धान वाशरी प्लांट स्थापित किया जाए ताकि हम अपने खेतों में कोयले के प्रदूषण से काली हुई धान को धो-पोंछ कर खरीद योग्य बना सकें ताकि खरीद केंद्र हमारी धान खरीद केंद्र लेने से इंकार न करें। मिली जानकारी के अनुसार पहली बार किसानों ने धान वाशरी प्लांट की मांग की है।

किसानों के अनुसार खेतों में लगी फसलों पर खदानों व थर्मल पॉवर प्लांट से निकलने वाली कोयले की डस्ट की एक मोटी परत जम जाती है। इससे धान का रंग काला पड़ जाता है। ऐसे में इस प्रकार की धान को सरकारी खरीद केंद्र लेने से इंकार कर रहे हैं।

ध्यान रहे कि इलाके में स्थापित बिजली कारखानों से कोयले की राख लगभग 47 लाख टन प्रतिदिन निकलती है। खदानों से निकलने वाली डस्ट और थर्मल पॉवर स्टेशन से निकलने वाली राख के कारण ही धान का रंग काला हो रहा है। स्थानीय किसानों का कहना है कि यह कोई पहली बार नहीं हुआ है।

यह सिलसिला पिछले कई सालों से चला आ रहा है लेकिन किसानों की अब तक इस संबंध में कोई सुनवाई नहीं हुई थी लेकिन इस बार किसानों ने मिलकर अपनी बात कलेक्टर को ज्ञापन सौंप कर बताई है।

ध्यान रहे कि गत एक नवंबर से समर्थन मूल्य पर छत्तीसगढ़ में धान खरीदी चालू है। ऐसे में रायगढ़ जिले के तमनार क्षेत्र के दर्जन भर से अधिक गांव में किसानों ने धान की फसल तो काट ली है लेकिन कोयला खदानों से निकलने वाले प्रदूषण के कारण उनकी धान काली हो गई।

जिले में सबसे अधिक कोयले से प्रदूषित होने वाले गांव गारे, सराईटोला, पाता, मूडागांव, बजरमूडा, करवाही, डोलेसरा, कोडकेल, बांधापाली, कुंजेमुरा व सारसमाल आदि हैं।

तमनार के गारे गांव के किसान हरिहर प्रसाद पटेल ने कलेक्टर को सौंपे ज्ञापन में मांग की है कि खरीद केंद्रों में धान वाशरी के साथ सुखाने के लिए भी जगह उपलब्ध कराई जाए ताकि किसान फसल कटाई करने के बाद वाशरी केंद्रों में लाकर उसे वॉश कराएंगे और फिर सूखने के बाद जब नमी खत्म हो जाएगी तो उसको विक्रय केंद्र पर ले जाएंगे।

ज्ञापन में बताया गया है कि क्षेत्र में दिन प्रति दिन लगातार बढ़ते उद्योग और कोयला खदान के कारण क्षेत्र में लगी और भी फसलें काली हो रही हैं। किसानों ने जिले के पर्यावरण विभाग को भी पत्र लिख कर इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई की मांग की है।

कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों के हक के लिए लगातार सक्रीय रहने वाले स्थानीय संगठन जन चेतना के समन्वयक राजेश त्रिपाठी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के कोयला प्रभावित तमनार क्षेत्र में जहां छह कोयला खदानों से कोयले का उत्पादन किया जा रहा है और लगभग इतने ही थर्मल पॉवर स्टेशनों से निकलने वाली राख के कारण क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर कोयले की डस्ट खेतों में लगी फसलों पर एक एक परत के रूप में जम जाती है।

यह समस्या बहुत विकराल है लेकिन हमने इस संबंध में कई बार प्रशासन का ध्यान दिलाया लेकिन उन्होंने अब तक इस संबंध में किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की है। ऐसे में किसानों का सीधे जिला कलेक्टर के पास जाकर ज्ञापन सौंपना इस बात की ओर इंगित करता है कि किसान अब इस प्रदूषण से त्रस्त हो गए हैं और हर हाल में इसका हल चाहते हैं।

प्रदूषण फैलाने के मामले में छत्तीसगढ़ के दो शहर कोरबा और रायगढ़ को दुनिया के उन टॉप 50 शहरों में शहरों में शामिल किया गया है, जो सबसे ज्यादा प्रदूषण फैला रहे हैं। ग्रीनपीस के अनुसार सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले विश्वभर के शहरों में कोरबा 17वें और रायगढ़ को 48वें नंबर पर रखा गया है।

इन शहरों से निकलने वाले प्रदूषण का असर वास्तव में पूरे छत्तीसगढ़ पर पड़ रहा है। ग्रीनपीस के एनओ-2 उपग्रह डेटा के विश्लेषण में दावा किया गया है कि परिवहन और औद्योगिक क्लस्टर देश के सबसे खराब नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) हॉट स्पॉट के हालात पैदा कर रहे हैं। इसमें मध्य प्रदेश में सिंगरौली, उत्तर प्रदेश में सोनभद्र, छत्तीसगढ़ में कोरबा, ओडिशा में तलचर, महाराष्ट्र में चंद्रपुर, गुजरात में मुंद्रा और पश्चिम बंगाल में दुर्गापुर शामिल हैं।

ग्रीनपीस की रिपोर्ट के मुताबिक कोयला आधारित बिजली संयंत्र इस तरह के प्रदूषण के लिए सबसे अधिक जिम्मेवार हैं। ग्रीनपीस द्वारा जारी एयर पॉल्यूशन ग्लोबल सिटीज रैंकिंग में पाया गया है कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 15 भारत में हैं। इसमें छत्तीसगढ़ का कोरबा भी शामिल है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की 91 फिसदी आबादी ऐसे स्थानों पर रहती है, जहां बाहरी वायु प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देश और तय मानकों से अधिक है।