कृषि

किसानों को जिला स्तर पर मौसम की सलाह देने वाली 199 इकाइयों को बंद कर रही है सरकार

जलवायु परिवर्तन के इस दौर में बढ़ती बेमौसमी चुनौतियों को देखते हुए जिला कृषि मौसम इकाइयों का बड़ा महत्व है

Shagun

किसानों को जिला व खंड स्तर पर मौसम की जानकारी देने वाली 199 जिला कृषि मौसम इकाइयों (डीएएमयू) को बंद किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने इस आशय के निर्देश जारी किए हैं। 

केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के तहत भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) और कृषि मंत्रालय के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) द्वारा स्थापित ये इकाइयां जिले के किसानों को प्रत्येक मंगलवार और शुक्रवार को महत्वपूर्ण कृषि-मौसम संबंधी सलाह देती हैं। 

हाल के समय में ये सलाह बहुत महत्व रखती हैं, क्योंकि दिनोंदिन  जलवायु परिवर्तन और बढ़ रही बेमौसमी घटनाएं किसानों के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही हैं।  

आईएमडी वैज्ञानिक एससी भान ने डाउन टू अर्थ से पुष्टि की कि केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुसार मार्च से सेवाएं बंद कर दी जाएंगी। भान कृषि मौसम परामर्श सेवा (एग्रोमेट) के उप महाप्रबंधक हैं।

17 जनवरी, 2024 को जारी यह कार्यालय ज्ञापन चौंकाने वाला है, क्योंकि सरकार ने जिला कृषि मौसम इकाइयों की संख्या को चरणबद्ध तरीके से 530 तक बढ़ाने की मंजूरी दे दी थी। इसका मकसद पूरे देश में ऐसी इकाइयों का जाल फैलाना था। 

सूत्रों ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इस कार्यक्रम को वित्तीय और प्रशासनिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, भान ने कहा कि कार्यक्रम प्रोजेक्ट मोड में था। सरकार ने इसके आगे विस्तार को मंजूरी नहीं दी है।

जिला कृषि मौसम इकाइयों का महत्व

विभिन्न राज्यों में कृषि सलाह से जुड़े वैज्ञानिकों ने कहा कि डीएएमयू जिला या ब्लॉक स्तर पर ऐसी सलाह देने वाली एकमात्र इकाई है। परियोजना को रोकने से उन किसानों को नुकसान हो सकता है जो अपने दैनिक कृषि कार्यों को पूरा करने के लिए सलाह पर बहुत अधिक निर्भर हैं।

ग्रामीण कृषि मौसम सेवा (जीकेएमएस) योजना के तहत आईसीएआर और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के परिसर में 2018-19 में डीएएमयू स्थापित किए गए थे। डीएएमयू ने फसल विशिष्ट मौसम सलाहकार संदेशों के साथ अगले पांच दिनों के लिए मौसम पूर्वानुमान की जानकारी प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

2022 में आईएमडी से सेवानिवृत्त हुए केके सिंह ने कहा,  “मान लीजिए कि जिले के एक कोने में बारिश हुई है और दूसरे में नहीं। कृषि कार्यों के संदर्भ में विभिन्न क्षेत्रों में मौसम में बदलाव होता है। डीएएमयू के कर्मचारी रिमोट सेंसिंग डेटा की मदद से इन पूर्वानुमानों को जिले के विभिन्न कोनों के लिए सलाह जारी करते थे।

ये इकाइयां फसल मौसम कैलेंडर के हिसाब से सलाह देती हैं। उदाहरण के लिए फसल के अंकुरण से लेकर दाने बनने, बालियां निकलने या पकने के दौरान अलग-अलग सलाह दी जाती है। किसानों को मौसम की वजह से कीट और बीमारी की चेतावनी भी दी जाती है।

पूर्वानुमान आठ मौसम मापदंडों पर आधारित होते हैं, जिनमें अधिकतम तापमान, न्यूनतम तापमान, वर्षा, बादल आवरण, हवा की गति, हवा की दिशा, सुबह की सापेक्ष आर्द्रता और शाम की सापेक्ष आर्द्रता शामिल हैं।

ये संदेश अंग्रेजी और क्षेत्रीय दोनों भाषाओं में कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिकों की मदद से तैयार किए जाते हैं और व्हाट्सएप समूहों, एसएमएस और राज्य कृषि विभाग नेटवर्क जैसे संचार के विभिन्न माध्यमों के माध्यम से एक विशेष ब्लॉक और जिले में किसानों तक प्रसारित किए जाते हैं।

इन इकाइयों के माध्यम से निर्धारित दिनों के अलावा आवश्यकता पड़ने पर चरम मौसम की घटनाओं पर मौसम की चेतावनी दी जाती है।

आईसीएआर के एक वैज्ञानिक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “यह किसानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती हैं, क्योंकि किसान इन सलाह के आधार पर तय करते हैं कि कौन सी फसल चुननी है, कब बोना है, सिंचाई के लिए आदर्श समय क्या है। इसके कोई अन्य कृषि मौसम सलाहकार सेवा कार्यक्रम नहीं है जो इस स्तर की सटीकता और महत्व से मेल खाता हो। कुछ निजी संस्थान हैं, लेकिन वे कम और बिखरे हुए हैं और कोई व्यवस्थित और संरचित संगठन नहीं है। इस कार्यक्रम को बंद करना किसानों के हित में नहीं होगा, खासकर मौसम की बढ़ती परिवर्तनशीलता के समय में।" 

यहां यह बात ध्यान रखने वाली है कि नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) नामक संस्था ने 2020 में मौसम पूर्वानुमान-आधारित सलाह को बारिश पर निर्भर किसानों के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए कहा था कि इस तरह की सलाहों से गरीब किसानों को 12,500 रुपये प्रति परिवार अतिरिक्त आमदनी होती है।

इस अध्ययन में कहा गया था कि सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर जिलों में कृषि सलाहों की वजह से लगभग 13,331 करोड़ रुपये सालाना अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। 

इस अध्ययन का हवाला केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने अप्रैल 2023 में लोकसभा में भी दिया गया था।  

सर्वेक्षण में शामिल लगभग 98 प्रतिशत किसानों (भारत के 11 राज्यों के 121 जिलों के 3,965 किसानों) ने मौसम संबंधी सलाह के आधार पर नौ प्रथाओं में से कम से कम एक में संशोधन किया। सर्वेक्षण में कहा गया कि किसान परिवारों की औसत वार्षिक आय 1.98 लाख रुपये (जिसमें कोई संशोधन नहीं अपनाया गया) से बढ़कर 3.02 लाख रुपये (जिसमें सभी नौ प्रथाओं को अपनाया गया) हो गई। 

इसमें कहा गया कि 1,000 करोड़ रुपये के निवेश से पांच साल की अवधि में लगभग 50,000 करोड़ रुपये का आर्थिक लाभ मिलेगा। 

जिला कटक स्थित आईसीटी एग्रोमेट यूनिट ने फैसले पर चिंता व्यक्त की है और कृषि मंत्रालय को लिखा है। पत्र में कहा गया है, "ग्रामीण कृषि-मौसम सेवा के तहत डीएएमयू को जारी रखने से अगले पांच वर्षों में अनुमानित अतिरिक्त लाभ लगभग 48,056 करोड़ रुपये है।"

अब डीएएमयू को बंद करने के लिए कहा गया है, किसानों को केवल मौजूदा 130 एग्रोमेट फील्ड यूनिट्स (एएमएफयू) से सलाह मिलेगी। एएमएफयू भी इसी तरह की सलाह जारी करते हैं, लेकिन कमी यह है कि डीएएमयू की तुलना में इनकी क्षमता कम होती है।

एक एएमएफयू औसतन चार से पांच जिलों को कवर करता है और ब्लॉक स्तर की जानकारी प्रदान करने में सक्षम नहीं होगा। दोनों सेवाएं संयुक्त रूप से लगभग 25 लाख किसानों को कवर करती हैं।

आईसीएआर वैज्ञानिक ने कहा, “हमें ब्लॉक स्तर से ग्राम स्तर तक जाना चाहिए था। लेकिन इसके बजाय, हम अब चार-पांच जिलों को कवर करने वाले एक एएमएफयू की ओर बढ़ रहे हैं।”

वित्तीय संकट?

पिछले कुछ वर्षों से डीएएमयू के कर्मचारियों को वेतन मिलने में दिक्कतें आ रही हैं। इसके चलते कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन और शिकायतें भी की। 

घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा कि फंडिंग एजेंसी पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय या आईएमडी है, लेकिन पिछले कुछ समय से वित्तीय वितरण में अनियमितता आई है। समय पर वेतन नहीं मिल रहा था और बकाया बढ़ताजा रहा था।

कर्मचारियों ने आईसीएआर और आईएमडी के अलावा मंत्रालय और यहां तक कि पीएमओ पोर्टल पर भी शिकायत की थी। फिर, जब यह मुद्दा उठाया गया, तो यह निर्णय लिया गया कि नोडल मंत्रालय कृषि मंत्रालय होना चाहिए और इसे आईसीएआर द्वारा चलाया जाना चाहिए, न कि आईएमडी द्वारा। इसलिए सुझाव यह था कि आईएमडी को इस परियोजना में अपना परिचालन बंद कर देना चाहिए और कृषि मंत्रालय को इसे अपने हाथ में लेना चाहिए। 

लेकिन एक अन्य सूत्र ने कहा कि आईसीएआर के लिए यह एक बड़ा और चुनौतीपूर्ण कार्य होगा, क्योंकि इसमें सालाना निवेश लगभग 6,200 करोड़ रुपये है। उन्होंने कहा, "आईसीएआर पहले से ही कृषि विज्ञान केंद्र और अन्य परियोजनाओं के वित्त पोषण को लेकर दबाव में है।"