कृषि

अलविदा 2023: खेती-किसानी के लिए एक और चुनौतीपूर्ण साल बीता

साल 2023 में किसानों में मौसम की मार झेली तो कभी सरकारी फैसलों से मुसीबत और कभी कीट-पतंगों की वजह से नुकसान

Raju Sajwan, Vivek Mishra, Lalit Maurya

एक और साल किसानों पर भारी बीता। किसानों ने मौसम की मार झेली। कभी सरकारी फैसलों की वजह से मुसीबत झेली तो कभी खरपतवार-कीट पतंगों की वजह से नुकसान झेला। डाउन टू अर्थ उनकी मुसीबतों की लगातार रिपोर्ट करता रहा। ऐसे में, जब साल 2023 को अलविदा कहने का समय आ गया तो ऐसी कुछ रिपोर्ट्स आप पढ़ सकते हैं जो आने वाले सालों में भी 2023 की याद दिलाएंंगी।  

साल 2024 में आम चुनाव होने हैं, लेकिन उससे पहले यानी 2023 में खाने पीने की चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। खाद्य मुद्रास्फीति कम होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। ऐसे में सरकार लगातार कोशिश कर रहे हैं कि महंगाई न बढ़े, इन प्रयासों का शिकार हो रहे हैं किसान। सरकार खाद्य वस्तुओं का आयात आसान कर रही है, जबकि निर्यात के नियम कड़े करती जा रही है। अक्टूबर 2023 में डाउन टू अर्थ ने एक रिपोर्ट की, जिसमें बासमती उगाने वाले किसानों की नाराजगी बयां की गई। रिपोर्ट देखिए :  सात राज्यों में निर्यातकों ने बंद की बासमती धान खरीद, किसानों पर दोहरी मार

कपास की खेती करने वाले किसानों के लिए गुलाबी सुंडी नाम का कीड़ा एक बड़ी मुसीबत बन गया है। किसानों को नुकसान इतना ज्यादा हो रहा है कि कई किसान आत्महत्या तक करने को मजबूर हैं। खास बात यह है कि जिन किसानों की फसल को नुकसान हुआ है, उन्होंने बीटी कॉटन लगाया था। यानी कि ऐसा बीज, जिसे सरकार ने यह कहकर अपनाने की सलाह दी थी कि इस बीज को लगाने से कीटों का हमला नहीं होगा। डाउन टू अर्थ ने एक बड़ी रिपोर्ट इस मुद्दे पर की। 

डाउन टू अर्थ की एक खास रिपोर्ट सितंबर 2023 में प्रकाशित हुई। दरअसल, पंजाब और हरियाणा के किसानों ने एक ऐसी मिसाल पेश की, जो काफी कम देखने को मिलती है। पंजाब और हरियाणा के कुछ जिलों में जुलाई माह में अप्रत्याशित बाढ़ आ गई। बाढ़ का रूप इतना विकराल था कि खेतों में लगी धान की फसल बह गई। तब वहां से सैकड़ों कोस दूर के किसानों ने अपने खेतों व नर्सरी में लगी धान की पौध उखाड़ कर बाढ़ प्रभावित किसानों के खेतों में जाकर लगा दी। पूरी रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं- किसान आंदोलन में जगी अलख अब भी आ रही है काम, किसान बने एक-दूसरे का सहारा 

डाउन टू अर्थ ने एक और खास रिपोर्ट जुलाई 2023 में की। यह रिपोर्ट थी, सरकार द्वारा शुरू किए गए नैनो यूरिया की। यूरिया के विकल्प के तौर पर सरकार द्वारा प्रोत्साहित किए जा रहे नैनो यूरिया के फौरी परिणाम किसानों के हित के नहीं हैं। बावजूद इसके, किसानों को लगभग जबरदस्ती नैनो यूरिया बेचा जा रहा है। रिपोर्ट इस प्रकार थी: खास रिपोर्ट: खाद सब्सिडी से बचने के लिए आया नैनो यूरिया, किसान हुए परेशान

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के एक अध्ययन में पाया गया कि खेत की मिट्टी की सेहत लगातार खराब हो रही है। इससे हर साल कृषि उपज को 3,654 रुपए प्रति हेक्टेयर का नुकसान हो रहा है। इस अध्ययन में यह भी कहा गया कि उत्तर प्रदेश के किसानों को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है, जो हर साल लगभग 15,212 रुपए प्रति हेक्टेयर है। 

28 सितंबर 2023 को कृषि जगत के लिए एक दुखद खबर आई। जब सुबह सुबह 11.15 बजे  प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन के देहांत की जानकारी मिली। स्वामीनाथन न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में जाने जाते थे। उन्हें भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है। उनके देहांत पर डाउन टू अर्थ की यह रिपोर्ट पढ़िए : नहीं रहे हरित क्रांति के जनक मशहूर कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन

ऐसा नहीं है कि बदलती जलवायु और भूक्षरण की वजह से भारत का ही किसान पीड़ित है। अक्टूबर 2023 में एक रिपोर्ट आई कि दुनिया भर में हर साल औसतन 36 लाख हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि खाली छोड़ दी जाती है। यानी कि, ऐसी जमीन, जिस पर खेती की जा सकती थी, लेकिन विभिन्न कारणों के चलते उसपर खेती नहीं की जा रही। नतीजन धीरे-धीरे इस जमीन की गुणवत्ता में कमी आने लगती है। पूरी रिपोर्ट ऐसी थी:  खाली पड़े हैं 10.1 करोड़ हेक्टेयर में फैले खेत, करोड़ों लोगों का पेट भर सकता है उचित प्रबंधन

पिछले कुछ सालों का मॉनसून का मिजाज ही बदल गया है। खासकर भारत के कुछ राज्यों में लगातार सूखे के हालात रहते हैं। साल 2023 भी इन राज्यों के किसानों के लिए भारी बीते। डाउन टू अर्थ ने सितंबर 2023 में रिपोर्ट की कि देश के कुल 718 जिलों में से 500 से अधिक जिले  वर्तमान में मौसम संबंधी सूखे की स्थिति का सामना कर रहे हैं। इन 500 जिलों मे हल्के शुष्क से लेकर अत्यधिक शुष्क तक की स्थितियां हैं। पूरी रिपोर्ट इस प्रकार थी: 70 फीसदी से अधिक जिलों में सूखे की स्थिति, फसल की उपज हो सकती है प्रभावित  

मौसम में आते बदलाव का एक और नया असर इस साल देखने को मिला। हुआ यूं कि हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में अप्रैल में हुई अप्रत्याशित बारिश की वजह से मधुमक्खियां मारी गई और सेबों के साथ-साथ अन्य फलों का परागण नहीं हो पाया। सेब बागवान ये मधुमक्खियां केवल परागण के लिए किराए पर लेते हैं। इससे बागवानों को बड़ा नुकसान हुआ। क्या थी यह रिपोर्ट, पढ़ें :  बदलते मौसम का शिकार हुई मधुमक्खियां, हिमाचल-कश्मीर के बागवानों की आर्थिकी पर संकट