कश्मीर के सेबों की फसल इस साल फफूंद का शिकार हो सकती है। लगातार खराब मौसमी परिस्थितियों के चलते ऐसा हुआ है। हालांकि इसके बावजूद सेब खाने योग्य रहेंगे, लेकिन फफूंद के संक्रमण वाली जगह पर निशान रह जायेगा, जिसकी वजह से किसानों को उसका अच्छा दाम मिलना आसान नहीं होगा।
सोपोर में फलों के थोक बाजार में फल विक्रेताओं के लीडर फ़याज़ अहमद मलिक ने बताया कि, घाटी के सभी सेब उत्पादक किसान वेंटूरिआ इनएक्वालिस नाम की फंगस से परेशान हैं।
बांदीपोरा ज़िले के सेब किसान अब्दुल जब्बार ने कहा कि, "फंगल इन्फेक्शन होना असामान्य बात नहीं है, लेकिन मैंने अपने 35 साल के व्यापार के दौरान इसकी इतनी व्यापकता और गंभीरता नहीं देखी। उन्होंने बताया कि उनकी फसल इस साल सिर्फ 30 पेटी हुई है, जबकि 150 से 250 पेटी फसल आमतौर पर होती है। हाजी खाजीर मोहम्मद ने बताया कि अपने पांच एकड़ के बगीचे से हर साल उन्हें 5000 पेटी सेब मिलते थे, जबकि इस साल उन्हें सिर्फ 40 पेटी ही मिले।
जलवायु परिवर्तन का है दोष
विशेषज्ञों का मानना है कि सेबों पर फंगल हमले के पीछे कई सारे कारण हैं: नवंबर 2019 में भारी बर्फबारी हुई (जिससे फसल प्रभावित होती है), इसके बाद इस साल मानसून में अत्यधिक बारिश होने के कारण फंगस तेजी से फैला। कीटनाशकों की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं।
शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान व तकनीक यूनिवर्सिटी में पौधरोग विषय की असिस्टेंट प्रोफेसर आशा नबी ने कहा कि, हो सकता है मार्च-अप्रैल में तेज बरसात के चलते किसान सेब के पेड़ों में कीटनाशकों का प्रयोग न पाए हों।
किसानों के एक धड़े का कहना है कि मौसम विभाग बार-बार अपनी भविष्यवाणियों से भटकता रहा। फरवरी की शुरुआत से नवंबर में सेब की फसल तैयार होने तक फंगस रोकने वाली दवा का स्प्रे किया जाना जरूरी है। इस दौरान किसान कीटनाशकों का छिड़काव भी करते हैं।
आशा नबी ने कहा कि बेमौसम बर्फबारी होने से कई किसान अपने बागानों में समय से दवा का छिड़काव नहीं कर पाए।
नबी ने घाटी में मौसम में हो रहे परिवर्तन की तरफ इशारा किया और बागानों की सफाई पर भी जोर दिया, जिसमें पतझड़ में गिरे सूखे पत्तों को जलाना शामिल है।
शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान व तकनीक यूनिवर्सिटी के एंटोमोलॉजी ड्राईलैंड एग्रीकल्चरल स्टेशन में असिस्टेंट प्रोफेसर शफीक अहमद ने भी इस संक्रमण के पीछे भारी बारिश को बड़ा कारण बताया। उन्होंने यह भी कहा कि खराब कीटनाशकों का प्रयोग होने की वजह से संक्रमण नहीं रुका होगा। मलिक का कहना है कि जम्मू- कश्मीर का बागबानी विभाग कीटनाशकों की गुणवत्ता की जांच करने में विफल रहा, जिसकी वजह से फसल में इस स्तर का इन्फेक्शन हो फैल गया। मोहम्मद समेत और भी कई किसानों ने कहा कि बाजार में मिलने वाले कीटनाशक खराब गुणवत्ता के थे।
संक्रमण अकेली परेशानी नहीं
बागबानी विभाग के योजना व विपणन खंड के उप निदेशक मंजूर अहमद मीर ने बताया कि सेब जल्दी खराब हो जाने वाला फल है और इसकी खेती में नुकसान की संभावना काफी ज्यादा है। सरकार लम्बे समय से कोशिश कर रही है कि सेब के बागानों का बीमा करने के लिए निजी कंपनियां आगे आएं, लेकिन अभी तक किसी कंपनी ने इसमें रुचि नहीं दिखाई है।
सेब उद्योग कश्मीर की 47 फीसद आबादी को रोजगार मुहैया करता है। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े सेब उत्पादक देश अमेरिका से ज्यादा जमीन पर कश्मीर में सेब के बागान फैले हैं। विभाग के मुताबिक कश्मीर से सालाना 8,000 करोड़ रुपए की लागत के 20 लाख टन सेब निर्यात किए जाते हैं। देश के तकरीबन 70 फीसद सेब कश्मीर से आते हैं। 2017-18 में 1,940,236 टन; 2018-19 में 2,093,386 टन और 2019-20 में 1,950,600 टन।
कोरोनावायरस महामारी के चलते भी चीजें खराब हुई हैं। किसान खराब गुणवत्ता वाले कीटनाशकों के साथ इस महामारी को भी संक्रमण के लिए ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। कश्मीर के बागबानी विभाग के निदेशक ऐजाज अहमद भट ने कहा कि महामारी के चलते लॉकडाउन लगने से किसान खाद नहीं ले पाए। बाद में दुकानें खुलीं भी लेकिन कई किसान खाद पानी देने और कीटनाशक छिड़कने से चूक गए।
पिछले साल अनुच्छेद 370 हटने के बाद घाटी में लैंडलाइन, मोबाइल और इंटरनेट सेवा ठप्प पड़ने से भी व्यापारी आसानी से व्यापार नहीं कर पाए थे। मलिक के मुताबिक पिछले साल व्यापारियों को 8,000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था।