नैनो यूरिया की हकीकत टटोलती इस रिपोर्ट का पहला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें
उपज न बढ़ने के साथ खेती में लागत बढ़ा जाने का का मुद्दा भी किसानों के सामने चुनौती है। सोनीपत में भटगांव के 60 वर्षीय आजाद फौजी कहते हैं कि नैनो यूरिया का स्प्रे कराना किसानों को काफी महंगा पड़ रहा है। नैनो यूरिया मिश्रित पानी की एक 25 लीटर की टंकी का छिड़काव कराने के लिए प्रति बीघा में कम से कम 40 रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। जबकि पारंपरिक यूरिया कुछ ही घंटों में हाथों से आसानी से किसान खुद छोड़ देता है।
नैनो यूरिया की 2 से 4 एमएल बूंद एक लीटर पानी में मिलाने की हिदायत दी जाती है। किसान 4 एमएल नैनो तरल यूरिया को एक लीटर में मिला रहे हैं। इस आधार पर हरियाणा में 5 बीघा जमीन यानी एक एकड़ में एक बोतल नैनो यूरिया की खपत होती है साथ ही इसे छिड़कने के लिए प्रति बीघा एक टंकी यानी 40 रुपए देने पड़ते हैं।
भटगांव के ही 19 वर्षीय किसान पवन बताते हैं कि स्प्रे के बोझ के चलते पारंपरिक यूरिया और नैनो यूरिया की कीमत में बड़ा अंतर आ जाता है। वह बताते हैं कि पारंपरिक यूरिया के 45 किलो वाले एक कट्टे की कीमत करीब 250 रुपए है और नैनो तरल यूरिया की भी कीमत करीब 240 रुपए है। (बाद में इसमें 15 रुपए घटाए गए) कीमत में फर्क तब आता है जब नैनो यूरिया को स्प्रे करने के लिए प्रति टंकी 40 रुपए देनी पड़ती है। 500 एमएल नैनो तरल यूरिया की एक बोतल का इस्तेमाल 5 बीघे (एक किल्ले) में किया जाता है, जिसमें कुल 5 टंकी लगती है। अगर एक बोतल में 5 टंकी स्प्रे का मजदूरी खर्च अगर जोड़ दें तो नैनो तरल यूरिया की एक बोतल स्प्रे की मजदूरी के साथ हमें करीब 440 रुपए की पड़ती है। यह पारंपरिक यूरिया से दोगुनी महंगी पड़ जाती है।
बीते रबी सीजन में कई किसानों ने इफको के नैनो तरल यूरिया के 500 एमएल की बोतल को 240 रुपए में खरीदा था हालांकि, नवंबर, 2022 के शुरुआत में ही 500 एमएल के एक बोतल की कीमत 15 रुपए घटा दी गई थी, जिसके बाद नैनो तरल यूरिया की कीमत 225 रुपए बोतल हो गई है। 15 रुपए घटाने के बाद भी 40 रुपए प्रत्येक टंकी स्प्रे की लागत नैनो तरल यूरिया को सब्सिडी वाले पारंपरिक खाद की तुलना में महंगा बना देती है।
असमय वर्षा ने पहले ही किसानों को 30 फीसदी तक नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है। वहीं नैनो के बाद खेती में और लागत बढ़ी है। मिसाल के तौर पर हरियाणा के भटगांव में पवन ने अपने 5 बीघे (एक एकड़ खेत)में गेहूं के बीज से बुआई और कटाई तक करीब 11925 रुपए की लागत लगाई थी। प्रति बीघे 40 रुपए की दर से उसे पांच बीघे में 200 रुपए तक नैनो तरल यूरिया के स्प्रे का अतिरिक्त खर्च करना पड़ा। पवन का कहना है कि जो बीज खेती में लगाया जा रहा है उसकी उपज 5 क्विंतल प्रति बीघे तक बताई जा रही है। हालांकि उसे 3.5 कुंतल गेहूं ही प्रति बीघा हासिल हुआ। 2022 में उसे 4 कुंतल प्रति बीघा गेहूं मिला था।
यदि किसान को प्रति बीघे बिना किसी नुकसान के 5 कुंतल गेहूं हासिल होते तो वह 2100 रुपए प्रति क्वितंल की दर से 52,500 रुपए हासिल करता। जबकि अभी वह 3.5 क्विंतल प्रति बीघे की दर से औसत 36,750 रुपए ही हासिल कर पाया। नैनो यूरिया का इस्तेमाल करने के बाद भी उसकी उपज नहीं बढ़ी। पवन के मुताबिक कटाई के समय असमय बारिश ने 2022 की तुलना में इस वर्ष 0.5 क्विंतल का प्रत्येक बीघे में नुकसान किया। पवन को लागत निकालने के बाद 24825 रुपए कुल 5 बीघे के गेहूं की कीमत मिली। यानी करीब 5 हजार रुपए करीब प्रत्येक बीघे पर मिले। 5 बीघे यानी एक एकड़ का किसान एक सीजन यानी 6 महीने में करीब 25 हजार रुपए ही कमा रहा है जो कि सालाना करीब 50 हजार यानी 5 हजार रुपए महीना और 150 रुपए प्रतिदिन है। (नीेचे देखें : नैनो यूरिया के बाद खेती में अतिरिक्त बोझ)
उत्तर प्रदेश में बागपत के बली गांव के 60 वर्षीय किसान सत्यवीर कहते हैं कि सहकारी समितियों से जो भी सब्सिडी वाली यूरिया दी जाती है उसके साथ अनिवार्य तौर पर न्यूनतम एक बोतल इफको की नैनो यूरिया की बोतल दी जाती है। वह कहते हैं कि यदि जबरदस्ती उन्हें यह बोतल न दी जाए तो वह इसकी जगह पारंपरिक यूरिया ही इस्तेमाल करें। उन्होंने भी अनुभव किया कि नैनो यूरिया का कोई खास अंतर नहीं पड़ रहा है।
इफको ने अपने जवाब में कहा कि हमने सहकारी समितियों से कोई करार नहीं किया है। हमारी ऐसी कोई नीति नहीं है न ही हम इसकी बिक्री जबरदस्ती कर रहे हैं। हम नैनो यूरिया के ज्यादा इस्तेमाल के लिए अपने स्टाफ और सोसाइटी को इंसेटिव देते हैं।
हालांकि, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश सभी जगह सहकारी समितियों के जरिए सब्सिडी वाला पारंपरिक यूरिया लेने के साथ ही किसानों को नैनो यूरिया की बोतल दी जा रही है।
वहीं, नैनो यूरिया के मामले में पार्लियामेंट की स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट में प्रधानमंत्री के हवाले से कहा गया है कि केमिकल फर्टिलाइजर उपभोग में खासतौर से यूरिया में 50 फीसदी की कमी लाना है। सब्सिडी वाले पारंपरिक यूरिया उपभोग कम करने की घोषणा पर हरियाणा में सोनीपत के किसान विज्ञान केंद्र से सेवानिवृत्त प्रिंसिपल साइंटिस्ट जेके नंदाल डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि नैनो तरल यूरिया कभी पारंपरिक यूरिया को पूरी तरह से समाप्त नहीं कर पाएगी। नैनो तरल यूरिया बहुत हद तक कुल यूरिया में अपनी हिस्सेदारी 15 से 20 फीसदी तक ही हिस्सेदारी कर पाएगी। वह इसके प्रभाव को लेकर कहते हैं कि किसान इसे किस स्टेज पर प्रयोग करता है यह भी महत्वपूर्ण है। इसकी एक सीमा है यह तभी इस्तेमाल किया जा सकता है जब पत्ते आ जाएं। यह एक सीमित विकल्प के तौर पर मौजूद रहेगा। इसके उपज बढाने के दावे पर वह भी कुछ स्पष्ट नहीं कहते। नंदाल बताते हैं कि नैनो तरल यूरिया को लाने में थोड़ी जल्दी दिखाई गई है।
नैनो यूरिया के बाद अतिरिक्त बोझ (अनुमान – 5 बीघा – एक एकड़ क्षेत्र के लिए, हरियाणा, सोनीपत के किसान के जानकारी पर आधारित)
1600 रुपए एक कट्टा बीज (45 किलो)
2000 रुपए खेत तैयार करने के लिए (ट्रक्टर और डीजल का खर्चा)
2000 रुपए बुआई
1350 डीएपी
2000 रुपए सिंचाई के लिए ( ट्रैक्टर-डीजल-मजदूरी)
750 रुपए यूरिया खाद (तीन कट्टा – एक कट्टा 250 रुपए)
225 रुपए नैनो तरल यूरिया (500 एमएल की एक बोतल)
1800 रुपए मशीन से गेहूं की कटाई
200 रुपए कुल तरल यूरिया स्प्रे का अतिरिक्त खर्च बोझ
11925 रुपए गेहूं का बुआई से कटाई तक कुल लागत खर्च ( 40 रुपए प्रति टंकी के हिसाब से पांच बीघे में 200 रुपए तरल यूरिया स्प्रे का बोझ बढ़ा)
5 कुंतल प्रति बीघा पैदावार की उम्मीद थी (5 बीघे में कुल 25 क्विंतल, 2100 की दर से 52500 रुपए कीमत मिलती )
3.5 कुंतल प्रति बीघा पैदा हुआ गेहूं (5 बीघे में 17.5 क्विंतल, 2100 की दर से 36750 रुपए का गेहूं, कुल 15 फीसदी नुकसान - असमय वर्षा भी रही कारण)
1.5 क्विंतल का प्रत्येक बीघे में नुकसान
24825 रुपए कुल 5 बीघे का गेहूं बेचकर मिला (लागत निकालने के बाद)
5 हजार रुपए करीब प्रत्येक बीघे पर किसान को मिला एक सीजन में
5 हजार रुपए करीब महीना अर्जित करता है किसान
150 रुपए प्रतिदिन अर्जित करता है किसान
आगे पढ़ें: नैनौ यूरिया ट्रायल से खेत तक, भाग 3 : वैज्ञानिकों के पास एक भी फसल का तीन सीजन का आंकड़ा उपलब्ध नहीं