कृषि

खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन: किसानों को समर्थन देने से सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करना मुश्किल

Richard Mahapatra

23 सितंबर 2021 को होने वाले खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन (फूड सिस्टम्स समिट) से पहले संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने वैश्विक स्तर पर किसानों को दिए जाने वाले समर्थन की समीक्षा का आह्वान किया है, जिसके कारण न केवल हमारी पृथ्वी गर्म हो रही है, बल्कि यह हमें 2030 तक हासिल किए जाने वाले सतत विकास लक्ष्यों से भी दूर ले जा रहा है।

14 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र की तीन एजेंसियों खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने ‘मल्टी बिलियन डॉलर ऑपर्चयूनिटी: रिपर्पजिंग एग्रीकल्चरल सपोर्ट टू ट्रांसफॉर्म फूड सिस्टम्स’ नामक रिपोर्ट जारी की।

इस रिपोर्ट में दुनिया भर में सरकारों द्वारा किसानों को दिए जाने वाले समर्थन और उसके खाद्य पदार्थों के दामों पर विपरीत प्रभावों, पर्यावरण, ग्लोबल वाॅर्मिंग आदि का किसानों खासकर छोटे किसानों पर पड़ने वाले असर का विश्लेषण किया गया है।

गौरतलब है कि किसानों को दिया जाने वाला समर्थन, विश्व व्यापार संगठन के लिए एक विवाद का मुद्दा रहा है, जिसे लेकर विकसित और विकासशील देश एक-दूसरे के विपरीत खड़े होते रहे हैं। ग्रीनहाउस गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन के चलते मौजूदा खाद्य प्रणाली हमेशा एक चिंता का विषय बनी रही है।

आम लोगों के हितों के लिए औद्योगिक खाद्य उत्पादन के उभार और उनका उपभोग दो मुख्य बिंदु हैं, जो गैर-संक्रामक बीमारियों और महामारी को परिभाषित करते हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट इसके लिए किसानों को दी जाने वाले उस समर्थन- प्रणाली को जिम्मेदार ठहराती है, जिसे दुनिया ने अपनाया है।

रिपोर्ट में किसानों को दिए जाने वाले समर्थन के विश्लेषण के तीन निष्कर्ष निकाले गए हैं: पहला - ज्यादातर समर्थन केवल कुछ खास उत्पादों के लिए है और इसका मकसद सभी किसानों का भला करना नहीं है। दूसरा - समर्थन गन्ने और गोमांस उत्पादन जैसे सेक्टरों के लिए है, जिनसे उत्सर्जन ज्यादा होता है और तीसरा - किसानों को समर्थन उनसे ज्यादा काॅरपोरेट को मदद पहुंचा रहा है।

फिलहाल सरकारें किसानों के समर्थन के नाम पर सालाना 540 अरब डॉलर खर्च करती हैं। इस राशि के 2030 तक तीन गुना बढ़कर 1.759 ट्रिलियन डाॅलर होने की उम्मीद है।

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘इसके बावजूद इस समर्थन राशि का लगभग 87 फीसद यानी 470 अरब डॉलर दामों से छेड़छाड़ करने में खर्च होता है और जो पर्यावरण और समाज के लिहाज से हानिकारक है।’

कुल समर्थन राशि में 294 अरब डाॅलर किसानों को प्रोत्साहन के तौर पर जबकि 245 अरब डाॅलर सब्सिडी के तौर पर खर्च किए गये। ज्यादातर समर्थन और प्रोत्साहन किसी विशेष उत्पाद के लिए ही दिया गया।

रिपोर्ट बताती है कि इस तरह की प्रणाली न सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करती है बल्कि पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह है। यह छोटे किसानों, जिनमें बड़ी तादाद में महिलाएं  शामिल हैं, के लिए नहीं, कृषि का व्यापार करने वाले बड़े काॅरपोरेट के लिए है।

किसानों को दिए जाने वाले सालाना समर्थन राशि में से आधारभूत संरचना, शोध और खाद्य व कृषि क्षेत्र के विकास पर केवल 110 अरब डॅालर खर्च किए गए।

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘किसानों को प्रोत्साहन राशि और आर्थिक सब्सिडी के रूप में दिया जाने वाला समर्थन खाद्य प्रणाली पर नकारात्मक असर डाल सकता है क्योंकि ये उत्पादन की प्रकिया और व्यवहार को प्रोत्साहित करते हैं। हालांकि समर्थन का यह रूप स्वास्थ्य, सतत विकास, समानता और खाद्य प्रणाली के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।’

रिपोर्ट यह नहीं कहती कि किसानों को दिया जाने वाला समर्थन बंद कर दिया जाए, बल्कि उसका कहना यह है कि इसे इस तरह से लागू किया जाए कि इसके नकारात्मक असर खत्म किए जा सकें।

अंतरराष्ट्रीय खाद्य-नीति शोध संस्थान के सीनियर रिसर्च फेलो जोसेफ ग्लाबर के मुताबिक, ‘ज्यादातर समर्थन उत्सर्जन बढ़ाने वाले और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले सेक्टर में दिया जा रहा है। जैसे कि गोमांस सेक्टर को बहुत ज्यादा समर्थन मिलता है जबकि इससे उतनी ही ज्यादा मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। इस समर्थन को कम करने और समर्थन प्रणाली को पुनः निर्धारित करने की जरूरत है।’

उदाहरण के लिए, पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उच्च आय वाले देशों को अपना समर्थन मांस और डेयरी उद्योग पर कम करने की जरूरत है, क्योंकि ये उद्योग वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 14.5 फीसद योगदान देते हैं।

इसी तरह कम आय वाले देशों के लिए रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि उनकी सरकारों को रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों पर दिए जाने वाले समर्थन के बारे में पुनः विचार करना चाहिए और एकल कृषि को हतोत्साहित करना चाहिए।

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘दुनिया भर में कृषि उत्पादकों यानी किसानों को दिया जाने वाला मौजूदा समर्थन संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों, पेरिस समझौते के लक्ष्यों और हमारे साझे भविष्य के खिलाफ काम करने वाला है। यह समर्थन पक्षपातपूर्ण है और प्रकृति, पर्यावरण, पोषण और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यह महिलाओं और छोटे किसानों के हित में भी नहीं है।’

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) में कृषि-खाद्य आर्थिकी के उपनिदेशक मार्को वी सांचेज ने पिछले सप्ताह एक बातचीत में कहा, ‘समर्थन प्रणाली किसानों को उस तरह मदद नहीं पहुंचा रही, जैसे उसे पहुंचाना चाहिए। इससे भी आगे बढ़कर यह सतत विकास के लक्ष्यों और पेरिस समझौते के लक्ष्यों से हमें दूर ले जा रही है।’

उनके मुताबिक, ‘किसान हमारे प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करते हैं, वे यह तय करते हैं कि हम क्या खाएं, इस तरह यह हमारे स्वास्थ्य का बहुत महत्वपूर्ण पहलू है। इसलिए उन्हें दिए जाने वाले समर्थन को पुनः व्यवस्थित किए जाने की जरूरत है, जिससे किसान बेहतर तरीके से अपना काम कर सकें और हम स्वस्थ रह सकें।’

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन के मुताबिक, ‘सरकारों के पास मौका है कि वे खेती का मानवता की भलाई में प्रमुख कारक के तौर पर इस्तेमाल कर सकें और जलवायु परिवर्तन के मौजूदा खतरे से निपटने और पर्यावरण को बचाने में उसका सहयोग लें। प्रकृति के लिए सकारात्मक, समान और बेहतर कृषि समर्थन प्रणाली से ’ हम न सिर्फ लोगों का जीवन सुधार सकते हैं बल्कि उत्सर्जन कम करके अपने पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा कर सकते हैं और कृषि-रसायनों का उपयोग कम कर सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम में प्रकृति, पारिस्थितिकी तंत्र और जैव-विविधता की समन्वयक काव्या वर्मा के मुताबिक, ‘इस रिपोर्ट का मकसद देशों को सूचना देना और उन्हें मौजूदा समर्थन प्रणाली पर बहस शुरू करने के लिए कहना है, और इसकी तत्काल जरूरत है।’

प्रक्रिया का पुनः निर्धारण करने के लिए यह रिपोर्ट छह चरणों की सिफारिश करती है। इसके मुताबिक इसमें, दिए जाने वाले समर्थन की गणना करना, उसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों को समझना, पुनः निर्धारण के विकल्पों की पहचान करना, उनके प्रभावों का पूर्वानुमान लगाना, प्रस्तावति रणनीति का परिष्करण करना और इसकी कार्य - योजनाकी विस्तृत व्याख्या करना और अंततः प्रस्तावित रणनीति की देखरेख करना शामिल है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के व्यवस्थापक अचिम स्टेनर कहते हैं, ‘कृषि समर्थन को एक हरित, ज्यादा सतत दिशा वाली कृषि-खाद्य प्रणाली में तब्दील करना जिससे खेती को ज्यादा बेहतर, ज्यादा जलवायु-कें्िरदत बनाया जा सके, न सिर्फ उत्पादकता को बढ़ाएगा बल्कि इससे हमारा पर्यावरण भी बेहतर होगा।’