कृषि

मोदी सरकार के लिए पहला सबक, लोकतंत्र में अपनी अंतरात्मा की बजाय जनता की सुनना ज्यादा जरूरी

तीनों विवादित कृषि कानून वापस लेगी केंद्र सरकार, गुरु पर्व पर अपने संदेश में प्रधानमंत्री ने किया ऐलान

Richard Mahapatra

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को एक टेलीविजन संदेश में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। 

किसान पिछले लगभग एक साल से इन कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे थे और उनके खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे। इसी साल मार्च में केंद्र सरकार ने संसद में घोषणा की थी कि अगले आदेश तक इन कानूनों को लागू नहीं किया जाएगा। 

तीनों कृषि कानूनों पर मोदी सरकार लगातार किसानों से टकराव पर अड़ी हुई थी और अब तक वह यही दिखा रही थी कि वह इन कानूनों को वापस नहीं लेगी क्योंकि इन्हें हटाने की मांग और विरोध-प्रदर्शन करने वाले लोग सही मायनों में किसानों का प्रतिनिधित्व ही नहीं करते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी का यह नाटकीय ऐलान उनके चरित्र के अनुकूल है और वह नीतिगत फैसलों में ऐसे कदम उठाकर लोगों को पहले भी चौंकाते रहे हैं। इस फैसले के लिए भी उन्होंने गुरु पर्व का दिन चुना, जबकि एक दिन पहले तक उनकी सरकार कृषि कानूनों को लागू करने पर अड़ी हुई थी।

प्रधानमंत्री का आज का फैसला और सरकार का पलटना कई सवाल खड़े करता है। फैसले के लिए गुरु पर्व यानी सिखों के लिए एक बड़े उत्सव का दिन चुनना साफ तौर से समझ में आता है। इन कानूनों के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन में पंजाब के किसानों की आवाज सबसे बुलंद रही है। यह फैसला उन किसानों को बांटने के लिए भी हो सकता है।

गौरतलब है कि पंजाब में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं। हाल ही में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के पूर्व नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गृहमंत्री से मुलाकात कर उनसे कृषि कानूनों को वापस लेने की जोरदार मांग की थी। अमरिंदर सिंह ने हाल ही में नई पार्टी बनाई है और माना जा रहा है कि वह राज्य के चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन करेंगे। कई लोगों को लगेगा कि इस फैसले से पंजाब में नए राजनीतिक गठबंधन के लिए ठोस जमीन तैयार करने का प्रयास किया गया है।

हालांकि इस फैसले के कुछ तत्कालिक निहितार्थ भी हैं। 17 नवंबर को ही किसान संगठनों ने अपने आंदोलन का एक साल पूरा होने के मौके पर बड़ा प्रदर्शन और संसद मार्च करने का ऐलान किया था। 26 नवंबर को किसान आंदोलन का एक साल पूरा होगा, जबकि संसद का शीतकालीन सत्र 29 नंवबर से शुरू होने जा रहा है।

दूसरे राजनीतिक तौर पर देश सबसे महत्वूपर्ण माने जाने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भी अगले साल चुनाव हैं, जहां के किसान भी कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन में आगे हैं। राज्य में उभर रहे नए सामाजिक गठबंधन भी भाजपा के हित में नहीं हैं।

फिर भी चौंकाने वाले इस फैसले के पीछे तमाम हिचक के बावजूद मोदी सरकार के लिए पहला सबक छिपा है। कृषि कानून कोरोना महामारी के बीच अध्यादेश के तौर पर लाए गए थे। इसे इस तरह लाने के पीछे कोई इमरजेंसी नहीं थी, जबकि यह फैसला कई दूसरी नीतियों पर असर डालने वाला था।

जल्द ही सरकार ने इसे संसद में बिना बहस और किसी संवाद के पास भी करा लिया। हालांकि बाद में उसने संसद के बाहर किसानों से बात जरूर की, लेकिन उनकी असहमति के बावजूद सरकार इस फैसले को वापस लेने पर तैयार नहीं हुई।

मोदी के लिए यह पहला मौका है, जब उन्होंने कोई फैसला वापस लिया है। इसमें यह सबक भी है कि महत्वपूर्ण कानूनों को कैसे अमली जामा पहनाया जाना चाहिए। कृषि कानूनों को लागू करने से पहले किसानों की न कोई राय ली गई और न उनसे संवाद किया गया। इसके बजाय उन्हें डरा-धमकाकर इन कानूनों को मानने के लिए बाध्य किया गया। यह कहा गया कि जो किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं, वे अपने कुछ निजी स्वार्थों के लिए ऐसा कर रहे हैं।

चाहे वह जीएसटी लागू करने का फैसला हो या फिर नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), मोदी की पहचान कानूनों को लागू कराने के लिए ऐसे प्रधानमंत्री की बन गई थी, जो एक तो जनता की राय नहीं लेते, दूसरे संसदीय बहस में भरोसा नहीं करते।

यही वजह है कि कई कानून अध्यादेश के रूप में लाए गए और बाद में उन्हें ससंद में बहुमत से पारित करा लिया गया। सरकार ने इन कानूनों पर जनता की छानबीन को देशद्रोह के तौर पर लिया।

शुक्रवार को अपने टीवी सदेश में मोदी ने कहा, ‘हो सकता है कि हमारी तपस्या में कुछ कमी रह गई हो, जो हम इन कानूनों को लेकर किसानों को संतुष्ट नही कर पाए। हालांकि आज प्रकाश पर्व है और यह समय किसी को दोष देने का नहीं है।’

प्रधानमंत्री को समझना चाहिए कि संवैधानिक तपस्या को समावेशी होना चाहिए और उसमें उन लोगों की बात सुनने का अभ्यास भी होना चाहिए, जिन्हें उस कानून से फायदा मिलेगा, जिनके लिए वे तैयार किए गए हैं।

संवैधानिक फैसला, वैराग्य में ध्यान की तरह नहीं लिया जाना चाहिए और इसे किसी दैवीय आदेश की तरह लागू नहीं करना चाहिए। अगले कुछ महीनों में ऐसे कई कानून पारित किए जाने हैं, उदाहरण के लिए, वन संरक्षण कानून। मोदी को सरकार का यह पहला सबक, अब सभी कानूनों पर लागू करना चाहिए।