फल राज्य हिमाचल प्रदेश में इन दिनों रसायनिक खाद की भारी कमी देखी जा रही है। खाद की यह कमी ऐसे समय में देखी जा रही है जब प्रदेश के दो लाख से अधिक सेब बागवानों की इसकी सबसे अधिक जरूरत है।
प्रदेश में सरकार हिमफेड के माध्यम से किसान-बागवानों तक खाद पहुंचाने का काम करती है। हिमफेड के आंकड़ों के अनुसार जहां पिछले साल प्रदेश में 74,604 मीट्रिक टन खाद पूरे साल में किसानों को वितरित की गई थी। जबकि अभी साल खत्म होने में केवल एक माह बचा है और प्रदेश में अभी पिछले साल के मुकाबले 22,598 मीट्रिक टन खाद की बिक्री हुई है।
बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हार्वेस्ट के बाद अगली फसल लेने से पहले सेब के पौधों को पोषक तत्वों की जरूरत रहती है। आजकल सेब के पौधों को खाद के माध्यम से पोषक तत्व उपलब्ध करवाने का सही समय है। यदि सही समय पर पौधों को खादें नहीं मिली तो इसका असर कम फ्लावरिंग, कम उत्पादन और निम्न गुणवत्ता के सेब के रूप में देखने को मिलेगा। इसलिए सरकार को चाहिए कि किसान-बागवानों का सही समय मेें खाद उपलब्ध करवाए ताकि उन्हें नुकसान से बचाया जा सके।
किसान संघर्ष समिति के संयोजक संजय चौहान ने डाउन टू अर्थ को बताया कि सरकार किसानों को समय पर खाद उपलब्ध करवाने में नाकाम रही है। जनवरी व फरवरी माह में हुई बेहतर बर्फबारी के पश्चात बागवानों को अपने बगीचे में प्राथमिकता से खाद डालने के कार्य करना है। परन्तु आज जिन खादों की आवश्यकता है सरकार इन्हें उपलब्ध नहीं करवा रही है और खुले बाजार में खादों की कीमतों में गत वर्ष की तुलना में भारी वृद्धि की गई है।
आजकल बगीचों में पोटाश,12:32:16 NPK 15:15:15 डालने का समय आ गया है, परन्तु कहीं पर भी यह खादें उपलब्ध नहीं है और अब मजबूरन बागवानों को खुले बाजार से निम्न गुणवत्ता वाली खादें जोकि कृषि व बागवानी विश्वविद्यालय या बागवानी विभाग द्वारा अनुमोदित नहीं है उन्हें खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
इससे भविष्य में सेब के उत्पादन व उत्पादकता में कमी आएगी जिससे बागवानी का संकट और अधिक गहरा होगा और सेब की आर्थिकी की बर्बादी से प्रदेश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित होगा।