क्या आप जानते हैं कि वैश्विक स्तर पर हर साल औसतन 36 लाख हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि को खाली छोड़ दिया जाता है। मतलब की यह वो जमीन है, जिस पर खेती की जा सकती थी, लेकिन विभिन्न कारणों के चलते उसपर खेती नहीं की जा रही। नतीजन धीरे-धीरे इस जमीन की गुणवत्ता में कमी आने लगती है।
देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर जिस तेजी से आबादी और खाद्य उत्पादों मांग बढ़ रही है, उसके चलते कृषि क्षेत्रों और उत्पादन में तेजी से वृद्धि करने की जरूरत है। ऊपर से जलवायु में आता बदलाव इस समस्या को कहीं ज्यादा गंभीर बना रहा है। वैश्विक स्तर पर किए जा रहे अनगिनत प्रयासों के बावजूद 2021 में दुनिया की 9.8 फीसदी आबादी कुपोषित और खाने की कमी से जूझ रही थी। मतलब अभी भी करीब 82.8 करोड़ लोगों के लिए पर्याप्त भोजन की व्यवस्था नहीं है।
अनुमान है कि इस गैप को भरने के लिए कृषि क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर इजाफा करने की जरूरत है। इसके लिए अगले तीन दशकों में कृषि क्षेत्रों में करीब 22.6 करोड़ हेक्टेयर तक कृषि भूमि में वृद्धि करने की जरूरत पड़ सकती है। जो पर्यावरण और जैवविविधता पर गंभीर असर डालेगी। इतना है नहीं कृषि क्षेत्र में बढ़ता उत्सर्जन भी अपने आप में एक बड़ी समस्या बन चुका है।
ऐसे में रिसर्च का कहना है कि यदि इस नजरअंदाज कर दी गई जमीन को दोबारा मौका दिया जाए तो वो जलवायु परिवर्तन और भोजन की कमी के दोहरे वैश्विक संकट से निबटने में काफी मददगार साबित हो सकता है। भू-स्थानिक आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि वैश्विक स्तर 1992 से 2020 के बीच कुल 10.1 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि को ऐसे ही छोड़ दिया गया, जो आकार में 1992 की कुल कृषि भूमि के करीब सात फीसदी के बराबर है। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के सहयोग से अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुए हैं।
रिसर्च के अनुसार इसमें से सबसे ज्यादा कृषि भूमि एशिया में छोड़ी गई है, जो करीब 3.3 करोड़ हेक्टेयर है। इसके बाद यूरोप में 2.2 करोड़ हेक्टेयर, अफ्रीका में 1.9 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि को छोड़ दिया गया है। यदि देशों के लिहाज से देखें 1.24 करोड़ हेक्टेयर के साथ रूस सबसे ऊपर है। वहीं चीन में 87 लाख और ब्राजील में 84 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर अब खेती नहीं की जा रही।
वैज्ञानिकों ने इस कृषि भूमि को छोड़े जाने के लिए जमीन की गुणवत्ता में आती गिरावट, सामाजिक बदलाव, आपदा, संघर्ष और शहरीकरण जैसे कारकों को जिम्मेवार माना है। हालांकि रिसर्च में यह भी सामने आया है कि इस छोड़ी गई फसल भूमि में से 6.1 करोड़ हेक्टेयर जमीन को खेती के लिए दोबारा उपयोग किया जा सकता है। मतलब की इस जमीन पर दोबारा खेती करके हर वर्ष 363 पेटा-कैलोरी की अतिरिक्त खाद्य आपूर्ति की जा सकती है, जो हर वर्ष 47.6 करोड़ लोगों का पेट भर सकती है।
रिसर्च के मुताबिक इस जमीन में से 11 फीसदी ऐसी है जिसपर केवल कृषि की जा सकती है, जबकि 33 फीसदी ऐसी जमीन है जो केवल वन क्षेत्रों के विकास के लिए उपयुक्त है। वहीं सात फीसदी वो जमीन है जो दोनों में से किसी भी उपयोग के लायक नहीं है।
छोड़ी हुई 8.3 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि पर की जा सकती है जंगलों की बहाली
इतना ही नहीं यह पर्यावरण पर बढ़ते दबाव को भी कम करने में मददगार होगा, क्योंकि इसकी वजह से लाखों करोड़ों लोगों का पेट भरने के लिए जो जंगलों का विनाश करके कृषि क्षेत्रों का विस्तार किया जा रहा है, उसमें कमी आएगी। इससे न केवल वनों को बचाया जा सकेगा, साथ ही इसके सकारात्मक प्रभाव जैवविविधता और पर्यावरण पर भी पड़ेंगें।
हालांकि साथ ही शोधकर्ताओं ने इस बात की भी पुष्टि की है कि इस खाली छोड़ी गई जमीन पर दोबारा खेती करने के लिए मौजूदा वनस्पति को साफ करना पड़ेगा, जो उत्सर्जन में बढ़ोतरी कर सकता है।
इसके अलावा, शोध में यह भी पता चला है कि दुनिया भर में छोड़ी गई करीब 8.3 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि का उपयोग पेड़ों की बहाली के लिए किया जा सकता है। नतीजे दर्शाते हैं कि यदि इस सारी जमीन पर पेड़ लगाए जाएं तो वो जंगल सालाना करीब 106.6 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर सकते हैं, जो जापान के कुल वार्षिक उत्सर्जन के बराबर है। ऐसे में यह जलवायु में आते बदलावों और बढ़ते तापमान की रोकथाम के दृष्टिकोण से भी फायदेमंद होगा।
शोध के मुताबिक इस छोड़ी गई कृषि भूमि का करीब आधा हिस्सा कृषि कार्यों और जंगलों की बहाली दोनों के लिए उपयुक्त हैं। ऐसे में दोनों विकल्पों में से किसी एक का चुनाव करते समय नीति निर्माताओं को अपने देश की स्थानीय परिस्थितियों, प्राथमिकताओं और विभिन्न कारकों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही स्थानीय नीतियां, बाजार तक पहुंच और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार भी इन विकल्पों को प्रभावित कर सकता है।
इसके बावजूद अध्ययन इस बात पर जोर देता है कि छोड़ी गई जमीन जिसे अतीत में अक्सर नजरअंदाज कर दिया गया था वो जलवायु परिवर्तन से निपटने और खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद करने की क्षमता रखती है। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर भूमि उपयोग संबंधी योजनाएं बनाते समय इन पर भी विचार किया जाना चाहिए।