कृषि

एक बार फिर से दिल्ली कूच करेंगे किसान, क्या हैं उनकी मांगें?

किसानों की महापंचायत में 13 फरवरी को किसानों और मजदूरों द्वारा दिल्ली कूच करने का फैसला लिया गया है

पंजाब के अमृतसर जिले के जंडियाला गुरु कस्बे में बीती 2 जनवरी को उत्तर भारत के 18 किसान-मजदूर संगठनों और संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) के संयुक्त आह्वान पर किसानों की महापंचायत आयोजित की गई, जिसमें 13 फरवरी को दिल्ली कूच करने का फैसला लिया गया। कड़ाके की ठंड के बावजूद जंडियाला गुरु की दाना मंडी में सुबह से ही किसान जुटने लगे थे और दोपहर तक सारी दानामंडी किसानों से खचाखच भर गई थी।

महापंचायत को संबोधित करने वाले किसान नेताओं ने केन्द्र सरकार के साथ-साथ पिछली सरकारों पर आरोप लगाया कि अब तक जितनी भी केन्द्र में सरकारें रही हैं, उन्होंने देश के सभी प्रकार के संसाधनों को देशी-विदेशी कॉरपोरेट घरानों को बेचने की नीति के तहत काम किया है, लेकिन वर्तमान ने इस काम को सबसे तेजी से आगे बढ़ाया है।

इस महापंचायत में शामिल हुए किसान दलीप सिंह ने बताया, “सरकार देश की खेतीबाड़ी और जमीनों को कॉरपोरेट घरानों को सौंपने की नीति पर चल रही है। हमारे गांव और खेती पहले ही संकट से गुजर रहे हैं, अगर सरकार ऐसे ही करती रही तो हम बिल्कुल तबाह हो जाएंगे।

महापंचायत में माझे इलाके के अलावा पंजाब के मालवा और हरियाणा के किसान भी शामिल हुए। हरियाणा के अम्बाला से आए किसान तेजबीर सिंह ने बताया, “2014 से पहले भाजपा ने स्वामीनाथन की रिपोर्ट लागू करने और लागत पर डेढ गुणा दाम देने की बात कही थी, लेकिन आज दस साल हो गए हैं, किसी भी वायदे को सिरे नहीं चढ़ाया। पिछली बार हुए आंदोलन में लखीमपुर खीरी के किसानों की मौत का इंसाफ भी किसानों को अभी तक नहीं मिला है। 2020-21 का आंदोलन हमने सरकार के साथ जिन शर्तों पर खत्म किया था वे शर्तें आज तक पूरी नहीं हुईं। न तो एमएसपी का कानून बना और न ही बिजली बिल वापिस लिए गए।”

भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) के अध्यक्ष बलदेव सिंह जीरा ने बताया, “हमने किसानों की मांगों को लेकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में केंद्र सरकार के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी है। आपको वैसा ही आंदोलन देखने को मिलेगा जैसा 2020-21 में देखने को मिला था।”

किसानों की इस महापंचायत में केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकार को नशे पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने, पीड़ित युवाओं का इलाज करवाने और खेतीबाड़ी उत्पादों और सभी प्रकार के व्यापारों के लिए वाघा और अटारी बॉर्डर खोलने की अपील की।

इसके अलावा पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की गन्ना मिलों के मुद्दे भी उठाए गए। महापंचायत में ड्राइवरों की हड़ताल का भी समर्थन करते हुए कानून पर पुनर्विचार किए जाने अपील की गई। 

इस किसान महापंचायत का फैसला बीती 10 दिसम्बर को उत्तर भारत के 18 किसान संगठनों और संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनैतिक) ने संयुक्त मोर्चा बनाकर लिया था। ऐसी ही एक महापंचायत आने वाली 6 जनवरी को पंजाब के बरनाला में भी की जाएगी, जिसमें पंजाब के मालवा इलाके के किसानों का जमावड़ा रहेगा।

इन महापंचायतों के आयोजनकर्ताओं में से एक किसान नेता सरवण पंधेर ने बताया, “पिछले आंदोलन को सभी किसान संगठनों ने एक संयुक्त मोर्चा बनाकर मिलकर लड़ा था। इस बार भी हमारी कोशिश है कि दोबारा सभी किसान संगठन एकसाथ आकर फरवरी में बड़ा आंदोलन लड़ें। कुछ किसान संगठन बचे हुए हैं, उनको भी एक छतरी के नीचे लाने के लिए एक कमेटी बना दी गई है जो लगातार उनसे संपर्क कर रही है। 20 जनवरी तक सभी किसान संगठनों का एक संयुक्त मोर्चा दोबारा बनकर तैयार हो जाएगा।”

पिछले कई महीनों से किसान संगठन पंजाब में गांव-गांव जाकर किसानों को लामबंद करने में लगे हुए हैं। किसानों द्वारा किए गए दिल्ली कूच की मुख्य मांगें इस प्रकार हैं - 

  •  सभी फसलों की खरीद के लिए एमएसपी गारंटी का कानून बनाया जाए
  •  स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार फसल बीमा योजना लागू की जाए
  •  किसानों व खेत मजदूरों की संपूर्ण कर्ज मुक्ति हो
  •  2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में 2015 में किए गए संशोधनों को निरस्त कर प्रथम स्वरूप में लागू किया जाए
  • भारत द्वारा विश्व व्यापार संगठन के साथ किए गए समझौतों को रद्द किया जाए
  • 58 वर्षीय किसान और खेत मजदूर के लिए 10 हजार रुपये प्रति माह की पेंशन योजना लागू किया जाए
  • बिजली बिल 2020 पूरी तरह से रद्द किया जाए
  •  लखीमपुर खीरी हत्याकांड के अपराधियों का सजा दी जाए और दिल्ली कूच के दौरान पुलिस केस रद्द किए जाएं
  • किसान मोर्चों के शहीद परिवारों को वादे के मुताबिक मुआवजा दिया जाए और अन्य मांगें पूरी की जाएं