सरकार को धान की सीधी बुआई के लिए किसानों को प्रेरित करना चाहिए। फाइल फोटो 
कृषि

ताजा बारिश के बाद धान की सीधी बुआई करें किसान

सदियों से हरियाणा-पंजाब में धान की खेती सीधी बुआई विधि से होती रही है

Virender Singh Lather

1970 के बाद जन्मी पीढ़ी को यह जानकर आश्चर्य होगा कि सदियों से हरियाणा और पंजाब में धान की खेती सीधी बुआई विधि से ही की जाती थी। वर्ष 1966 से पहले इन प्रदेशों के चार लाख हेक्टेयर से अधिक खादर, तराई और डाबर क्षेत्रों (नहरों, नदियों तथा निचली भूमि वाले जलभराव क्षेत्रों) में किसान मानसूनी वर्षा से पहले अन्य फसलों की तरह ही, खेतों में बीज छिड़काव विधि द्वारा धान की सीधी बुआई करते थे। इस विधि से भी रोपाई धान के बराबर ही पैदावार प्राप्त होती थी।

दुर्भाग्यवश, राष्ट्रीय और प्रादेशिक नीति निर्माताओं ने हरित क्रांति के दौर (1966-1980) में भूजल की अत्यधिक खपत वाली रोपाई विधि को हरियाणा और पंजाब में थोप दिया, जिससे न केवल किसानों की खेती लागत कई गुना बढ़ गई, बल्कि इन राज्यों में गंभीर भूजल संकट भी उत्पन्न हो गया। इसके दुष्परिणामस्वरूप इन प्रदेशों के अधिकांश ब्लॉक भूजल की दृष्टि से ग्रे-ज़ोन की श्रेणी में आ गए हैं। इस संकट के समाधान हेतु दिल्ली और चंडीगढ़ में बैठे नीतिकारों द्वारा किसानों की वास्तविकता से कटे हुए और अव्यावहारिक सुझाव, जैसे कि फसल विविधीकरण, दिए जा रहे हैं, जो हास्यास्पद हैं।

हरियाणा सरकार पिछले दस वर्षों से धान के स्थान पर दूसरी फसलें उगाने वाले किसानों को भारी आर्थिक प्रोत्साहन दे रही है, फिर भी प्रदेश में धान के रकबे में लगातार वृद्धि हो रही है।

ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह भूजल संरक्षण हेतु, रोपाई विधि पर कानूनी प्रतिबंध लगाए और पर्यावरण हितैषी सीधी बुआई विधि को प्रोत्साहित करे। इससे न केवल खेती की लागत, सिंचाई के लिए भूजल और ऊर्जा (बिजली, डीज़ल, मानव श्रम आदि) की भारी बचत होगी, बल्कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली मीथेन गैस का उत्सर्जन भी कम होगा और पराली प्रबंधन भी आसान हो जाएगा।

सीधी बुआई विधि की सफलता के लिए किसान निम्नलिखित बातों का पालन करें:

  • धान की बुआई 20 मई से 5 जून तक मूंग, अरहर, ज्वार आदि की तरह पलेवा सिंचाई के बाद, तैयार तर-वतर खेत में करें।

  • प्रति एकड़ 8 किलोग्राम बीज का प्रयोग करें, 7-9 इंच की पंक्ति दूरी और 1-2 इंच की गहराई पर बीज बोएं।

  • बुआई से पहले बीज को 2 ग्राम बाविस्टीन प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।

  • नमी संरक्षण हेतु बुआई शाम को छींटा विधि या सीड ड्रिल से करें।

  • खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के तुरंत बाद 1 लीटर पेंडामेथलीन 30 ई.सी. को 100 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।

  • पहली सिंचाई बुआई के 15-20 दिन बाद और उसके बाद की सिंचाई वर्षा आधारित करते हुए 10-10 दिन के अंतराल पर करें।

  • यदि बेमौसम वर्षा के कारण खरपतवार अधिक हो जाए, तो बुआई के 30-40 दिन बाद 100 मि.ली. नोमीनी गोल्ड (बायस्पायरीबेक सोडियम-10%) + 80 ग्राम साथी (पायरोसल्फ्यूरॉन एथाइल) को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।

  • खाद, रोग व कीट प्रबंधन रोपाई विधि के अनुसार ही करें।

  • पहली सिंचाई के समय 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 8 किलोग्राम फेरस सल्फेट प्रति एकड़ डालना न भूलें।

  • ध्यान दें कि कुछ संस्थानों ने सूखे खेत में सीधी बुआई की अनुशंसा की है, लेकिन उसमें बुआई के बाद पहले 30 दिनों में औसतन 7 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है और खरपतवार की समस्या अधिक होती है।

उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों से हरियाणा और पंजाब के लाखों किसान औसतन पांच लाख एकड़ भूमि पर धान की सीधी बुआई विधि से खेती कर रहे हैं। इस विधि को बढ़ावा देने हेतु इस वर्ष पंजाब सरकार ने प्रति एकड़ 1500 रुपए और हरियाणा सरकार ने 4500 रुपए का प्रोत्साहन देने की घोषणा की है।

पूसा-1509, PR-126 जैसी कम अवधि वाली धान की किस्में सीधी बुआई में 110-115 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं, जिससे कटाई सितंबर में ही हो जाती है। इससे फसल अवशेष प्रबंधन आसान होता है, वायु प्रदूषण कम होता है और किसान समय पर अगली फसल जैसे आलू, सरसों, गेहूं आदि की बुआई कर सकते हैं।

लेखक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी आईसीएआर में प्रधान वैज्ञानिक पद से सेवानिवृत हैं