राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले मेंं टिब्बी के राठीखेड़ा गांव मेंं प्रस्तावित इथेनॉल फैक्ट्री स्थल पर धरने पर बैठे किसान। फोटो: मदन लाल 
कृषि

इथेनॉल फैक्ट्री प्रदूषण से डरे किसान, कहा हमारे खेत खत्म हो जाएंगे

हनुमानगढ़ जिले के टिब्बी तहसील क्षेत्र में इथेनॉल कारखाने के विरोध में तीन महीनों से प्रदर्शन जारी है

Amarpal Singh Verma

राजस्थान में हनुमानगढ़ जिले के टिब्बी तहसील क्षेत्र के विभिन्न गांवों के किसान करीब तीन महीनों से राठीखेड़ा गांव में लगने वाले इथेनॉल कारखाने के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं। इथेनॉल कारखाने की बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए कंपनी 24.5 मेगावाट क्षमता का पॉवर प्लांट भी लगाएगी। किसानों को डर है कि इस कारखाने से आबोहवा और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचेगा और खेती तबाह हो जाएगी साथ ही कई बीमारियों का प्रकोप भी झेलना पड़ेगा।

चडीगढ़ की ड्यून इथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर राठीखेड़ा गांव में 450 करोड़ रुपये की लागत से 1320 केएलपीडी क्षमता का इथेनॉल कारखाना लगाने जा रही है। कंपनी ने यहां करीब 45 एकड़ जमीन खरीदी है। यह कंपनी चंडीगढ़ के एक बड़े समूह डिस्टिलर्स एंड बॉटलर्स लिमिटेड-सीडीबीएल का हिस्सा है, जो देश के कई राज्यों में विशाल इथेनॉल उद्योग संचालित कर रहा है।

कंपनी ने राज्य एवं केन्द्र सरकार से भूमि उपयोग परिवर्तन, केन्द्रीय वन मंत्रालय से पर्यावरणीय मंजूरी, राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से स्थापना की सहमति, केन्द्रीय भूजल प्राधिकरण से भूजल के निष्कर्षण, राजस्थान आबकारी विभाग से एनओसी आदि ले ली हैं। ड्यून इथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड के सीनियर जनरल मैनेजर जयप्रकाश शर्मा का दावा है कि यह कारखाना क्षेत्र के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। करीब डेढ़ हजार लोगों को प्रत्यक्ष रूप में रोजगार एवं इससे कई गुना ज्यादा को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा।

लेकिन किसान कंपनी के दावों से सहमत नहीं हैं। इस साल जुलाई के अंत में कंपनी ने जैसे ही कारखाने के लिए प्रस्तावित भूमि पर चारदीवारी का निर्माण शुरू किया तो किसानों ने विभिन्न गांवों में जागृति अभियान शुरू कर दिया। बड़ी संख्या में किसानों ने 12 अगस्त को टिब्बी में उपखंड अधिकारी कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन किया और फिर वहां से जुलूस के रूप में कारखाने के लिए प्रस्तावित जमीन पर धरना देकर बैठ गए। तब से किसान वहां पर पड़ाव डाले हुए हैं। कारखाने के लिए निर्माण कार्यों का  काम ठप है।

इस मुहिम के तहत तीस सदस्यीय ‘फैक्ट्री हटाओ क्षेत्र बचाओ संघर्ष समिति’के सदस्य मदन दुर्गेसर कहते हैं, ‘‘धान का कटोरा कहलाने वाला हमारा इलाका पूर्णतया भूजल पर निर्भर है। इथेनॉल उत्पादन के बाद बचने वाला लाखों लीटर दूषित केमिकल युक्त पानी रोजाना भूगर्भ में डालेंगे। इससे समूचे इलाके का भूजल जहरीला हो जाएगा। हमारी खेती का क्या होगा। पेयजल के लिए भूजल पर निर्भर दर्जनों गांवों के ग्रामीण पानी कहां से पिएंगे?’’

किसान महंगा सिंह सिद्धू कहते हैं, ‘‘इथेनॉल बनाने मे रोजाना लाखों लीटर पानी का इस्तेमाल होगा। इससे भूजल पर गहरा संकट आना तय है। पॉवर प्लांट की राख दूर-दूर तक गिरेगी, इससे वायु प्रदूषण होगा। वायु एवं जल प्रदूषण से बीमारियां फैलेंगी।’’

इथेनॉल बनाने में बेशुमार पानी जाया होने की किसानों की चिंता की पुष्टि केन्द्रीय खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा के बयान से होती है, जो उन्होंने हाल में चीनी निर्माताओं के शीर्ष संगठन आईएसएमए के वैश्विक सम्मेलन में दिया है। सम्मेलन में चोपड़ा ने बताया है कि ‘‘गन्ने से बनने वाले एक लीटर इथेनॉल में 3,630 लीटर पानी की खपत होती है, जबकि मक्का से बनने वाले इथेनॉल में 4,670 लीटर और चावल से बनने वाले इथेनॉल में 10,790 लीटर पानी की जरूरत होती है।’’

दुर्गेसर कहते हैं, ‘‘राठीखेड़ा में 1320 केएलपीडी क्षमता के कारखाने में चावल से इथेनॉल बनेगा। इसमें रोजाना लाखों लीटर पानी की खपत होगी। इतनी बड़ी मात्रा में पानी को भू-गर्भ मेंं डाले बिना कहीं और खपाया नहीं जा सकता। ’’ तलवाड़ा झील गांव के किसान विनोद नेहरा सवाल करते हैं कि मेरे गांव में कई किसानों की असिंचित जमीन में सिंचाई के लिए पानी मंजूर नहीं किया जा रहा है तो फिर फैक्ट्री के लिए भारी मात्रा में पानी की मंजूरी क्यों दे दी गई है?

सिद्धू कहते हैं कि 2022 में कारखाना लगाने के लिए कंपनी का सरकार के साथ करार होने पर हमने जिला प्रशासन को ज्ञापन दिया था मगर प्रशासनिक अधिकारी उन्हें कहरहे हैं कि इथेनॉल एक बायो फ्यूल है, जिसे पेट्रोल आयात निर्भरता कम करने व प्रदूषण घटाने के लिए पेट्रोल के साथ मिलाया जा रहा है। केन्द्र सरकार ने इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम के तहत वर्ष 2025 तक पेट्रोल में बीस फीसदी एथेनॉल मिलाने का लक्ष्य है। दुर्गेसर कहते हैं कि अगर इस कारखाने से फायदा ज्यादा और नुकसान कम होता तो हमे आपत्ति न होती। हर उद्योग से थोड़ा-बहुत प्रदूषण होता है लेकिन यह कारखाना भू-जल को पूर्णतया खराब कर देगा।

कंपनी के सीनियर जनरल मैनेजर जयप्रकाश शर्मा कहते हैं,‘‘हमारे संयंत्र से ऐसा कुछ नहीं होगा। संयंत्र में इथेनॉल बनाने के लिए चावल के आटे में कुछ एंजाइम मिलाए जाते हैं।  इस मिश्रण में यीस्ट मिला कर फर्मेंटेशन किया जाता है। फिर इस मिश्रण का डिस्टिलेशन कर इथेनॉल अलग कर लिया जाता है। नीचे जो तलछट बचेगी, उसमें प्रोटीन मिलाकर पशु आहार बनाया जाएगा। यानी अपशिष्ट बचने का सवाल ही नहीं उठता।’’

शर्मा कहते हैं कि जो पानी बचेगा, उसे बाहर नहीं बहाएंगे। उसे हाई क्वालिटी आरओ  के जरिए पुन: साफ करके काम में लेंगे। पानी को भू-गर्भ में नहीं डालेंगे। संयंत्र में महीन फिल्टर धुएं को भी फिल्टर करेंगे।  210 फीट ऊंची चिमनी से निकलने वाले धुंए से प्रदूषण की मोनिटरिंग खास उपकरणों के जरिए दिल्ली में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड करेगा।

दुर्गेसर कहते हैं कि कंपनियों के पंजाब और हरियाणा में भी कारखाने लगाते समय कोई प्रदूषण नहीं होने के दावे गलत निकले हैं। पंजाब के जीरा में 2006 में स्थापित कारखाने से जमीन, भूजल और पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ। किसानों के लंबे आंदोलन के बाद पंजाब सरकार ने जनवरी,2023 में उस कारखाने को बंद करवा दिया।

दुर्गेसर कहते हैं कि हम जीरा में किसानों से मिले तो उन्होंने ऐसे कारखानों के दुष्परिणाम बताए। सिद्ध कहते हैं कि हम उद्योगों के विरोध में नहीं है। अगर सरकार यहां इथेनॉल के अलावा कोई अन्य उद्योग लगाना चाहे तो हमें कोई आपत्ति नहीं है। राठीखेड़ा के किसान सुधीर सहारण कहते हैं कि इथेनॉल कारखाना हमारे लिए बड़ा खतरा है।

राजस्थान आर्थिक परिषद के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष संतोष राजपुरोहित ऐसे उद्योगों को अर्थव्यवस्था के हिसाब से  उपयुक्त बताते हैं लेकिन आसन्न खतरों को भी ध्यान में रखने की जरूरत पर बल देते हैं। एक ओर जहां प्रशासन धरने पर बैठे किसानों को मनाने के लिए प्रयास कर रहा है, वहीं किसानों के खिलाफ मुकदमे भी दर्ज हो रहे हैं। 

टिब्बी पुलिस थाने में अब तक किसानों के खिलाफ दो मुकदमे दर्ज हो चुके हैं। किसान महंगा सिंह सिद्धू कहते हैं कि यह मुकदमे किसानों पर दबाव बनाने का प्रयास हैं।