कृषि

ग्रीन कॉरिडोर के खिलाफ धरने पर हरियाणा के किसान, पांच गुणा कम मिल रहा मुआवजा

दक्षिण और उत्तर हरियाणा को जोड़ने के लिए बनाए जा रहे ग्रीन कॉरिडोर 152 डी के लिए जमीन अधिग्रहण के खिलाफ 26 फरवरी से किसान धरने पर हैं, इनमें 5 किसानों की मौत तक हो चुकी है

DTE Staff

मलिक असगर हाशमी
हरियाणा के आठ जिलों के सैकड़ों किसान गुस्से में हैं। उनका कहना है कि एक ओर सरकार उनकी बेशकीमती जमीनें कौड़ियों के भाव खरीद रही हैं, वहीं भूमि अधिग्रहण का ऐसा तरीका अपनाया गया कि वे अपने ही खेतों में कृषि कार्य करने में असमर्थ हैं। जमीन अधिग्रहण के बाद अधिकांश किसान के खेतों का रास्ता बंद हो गया है। पूरे मामले का एक चिंताजनक पहलू यह भी है कि इस बार के हरियाणा विधानसभा चुनाव में तकरीबन सभी राजनीतिक दलों ने किसानों की बेहतरी के लिए दिल खोल कर वादे किए, पर इनमें से किसी ने किसानों को ‘सरकारी धोखा-धड़ी’ से मुक्ति और उनका वाजिब हक दिलाने को आवाज बुलंद नहीं की। 

दरअसल, हरियाणा के आठ जिलों के ये वो किसान हैं जिनकी जमीनें दक्षिण और उत्तर हरियाणा को जोड़ने के लिए बनाए जा रहे ग्रीन कॉरिडोर 152 डी के लिए अधिग्रहण की गई हैं। इस सड़क का निर्माण नारनौल से गंगहेड़ी पिहोवा तक किया जाना है। इस नए मार्ग से कुरूक्षेत्र से राजस्थान के कोटपुतली तक पहुंचना भी आसान हो जाएगा। 230 किलोमीटर लंबे इस एक्सप्रेस-वे के निर्माण पर करीब 9000 करोड़ रुपए लागत आने का अनुमान है। सड़क का बड़ा हिस्सा खेत-खलिहानों से गुजरेगा, जिसके लिए 750 एकड़ जमीन अधिग्रहण की गई है। मगर इसके कारण किसानों की 7000 एकड़ जमीन बर्बाद हो गई है। सड़क खेत-खलिहानों के बीच से गुजरने की वजह से किसानों की जमीन सड़क के इस पार और उस पार, दो भागों में बंट गई है। ऐसे में खेतों में जाने का रास्ता बंद हो गया है।

इसके अलावा मुजावजा भी केवल उसी भूखंड का दिया जा रहा है, जिसका इस्तेमाल सड़क निर्माण में किया जाएगा। किसानों की मांगों को लेकर आंदोलनरत अनूप सिंह का आरोप है कि प्रदेश सरकार जमीन अधिग्रहण में ईमानदारी नहीं दिखा रही है। कलक्टर रेट रिवाइज किए बिना उनकी जमीनें कौड़ियों के भाव खरीद ली गईं। सरकार की इस नीति के विरोध में चरखी दादरी के 17 गांवों के किसान पिछले 26 फरवरी से रामनगर गांव में धरने पर बैठे हैं। कम मुआवजा मिलने और खेती योग्य जमीन बर्बाद होने से अवसाद और ह्रदयघात से अब तक पांच किसानों की मौत हो चुकी है। बीते महीने की 11 तारीख को दलबीर नामक एक किसान ने धरनास्थल पर जहरीला पदार्थ निगल कर खुदकुशी कर ली थी। खुदकुशी तथा दिल का दौरा पड़ने से दतौली गांव के दलबीर और रामावतार, खातीवास के धर्मपाल सिंह, ढाणी फौगाट के जगदीश सिंह तथा महेंद्र सिंह अपनी जान गंवा चुके हैं।

राज्य के पूर्व मंत्री सतपाल सिंह सांगवान का कहना है कि लंबे समय से धरने पर बैठे किसान इतने मायूस हो चुके हैं कि अब उन्हें लगने लगा है कि उनकी समस्या का निदान नहीं होने वाला। इसलिए जान देने के सिवाए उन्हें कोई और रास्ता नजर नहीं आ रहा है।
 
मुआवजा दर रिवाइज करने पर जोर

इस इलाके का कलेक्टर रेट 10 लाख रुपए प्रति एकड़ है। भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के मुताबिक, अगर ग्रामीण क्षेत्र की जमीन किसी सरकारी अथवा अर्धसरकारी काम के लिए अधिगृहित की जाती है और यह जमीन साथ लगते शहरी क्षेत्र से 30 किलोमीटर दूर है तो उसका सरकारी मुआवजा मार्केट का डबल होगा। हरियाणा सरकार ने पिछले साल मंत्रिमंडल के एक फैसले के बाद इस अधिनियम में ‘गुणा फैक्टर’ जोड़ दिया था, जिसके तहत अधिगृहित भूमि के लिए सौ प्रतिशत सांत्वना राशि देने का प्रावधान है। इसके बावजूद ग्रीन कॉरिडोर के प्रभावित किसानों को मौजूदा मार्केट रेट के बराबर मुआवजा नहीं मिल रहा है।

किसान प्रति एकड़ दो करोड़ रुपए मुआवजा चाहते हैं। साथ ही अधिग्रहण के कारण जिन खेतों का रास्ता बंद हो गया है, वहां तक पहुंच बनाने या उसे भी अधिगृहित करने तथा ग्रीन कॉरिडोर पर बनने वाले टोल प्लाजा में हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं। अभी किसानों को 10 लाख रुपए  कलेक्टर रेट के हिसाब से मुआवजे की दोगनी राशि तथा सोलेशियस यानी सांत्वना राशि मिलाकर करीबन 25 से 27 लाख रुपए प्रति एकड़ दिया जा रहा है। किसान पुराने कलक्टर रेट की जगह रिवाइज कर 10 की बजाए 50 लाख रुपए करने की मांग कर रहे हैं ताकि उनकी जमीन का मुआवजा सवा से दो करोड़ रुपए प्रति एकड़ तक बन सके।

किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले विनोद मोड़ी का आरोप है कि सरकार ने बिना कलेक्टर रेट रिवाइज किए पुरानी दर से मुआवजे का भुगतान किया, जो उचित नहीं है। इसके विरोध में चरखी दादरी के अलावा महेंद्रगढ़, भिवानी, जींद सहित सात अन्य जिलों में भी पिछले आठ महीने से आंदोलनों का दौर जारी है। मुआवजा बढ़ाने की मांग पर कुछ दिनों पहले किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, वीके सिंह, राव इंद्रजीत सिंह और मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर से मिला था। मगर अब तक उनकी ओर से किसानों का मसला सुलझाने को लेकर कोई संकते नहीं मिले हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह इसके लिए खट्टर सरकार की किसानों एवं कृषि के प्रति गलत नीतियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, जबकि वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु का कहना है, पिछली सरकार सरकारी खजाना खाली कर गई थी, जिससे किसान और सरकार परेशानियों से दोचार हैं। फिर भी सरकार किसानों को बेहतर मुआवजा दिलाने की दिशा में काम कर रही है।