देश में जीएम कॉटन की वजह से न केवल कपास का उत्पादन बढ़ा है, बल्कि किसानों की आमदनी भी बढ़ी है। यह जानकारी केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो ने 22 मार्च 2021 को राज्यसभा में दी। उन्होंने बताया कि कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने उन्हें बताया है कि कपास का लगभग 90 फीसदी भाग बीटी कपास की खेती के अधीन है और उत्पादकता 2002-03 में जो 191 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 2015-20 में 455.00 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। किसान की प्रति हेक्टेयर आय में भी वृद्धि हुई है।
सुप्रियो ने सदन को यह भी बताया कि बीटी कपास की खेती करने वाले राज्यों में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने लंबे समय तक अध्ययन भी किया है और पाया कि मिट्टी, माइक्रोफ्लोरा और पशु स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। एक सीजन में की जाने वाले कीटनाशक के इस्तेमाल में भी कमी आई है।
पर्यावरण के लिए कम बजट आवंटन
एक अन्य सवाल के जवाब में सुप्रियो ने बताया कि जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (सीसीएपी) नामक योजना के तहत जलवायु परिवर्तन पर राज्य की कार्य योजना (एसएपीसीसी) के लिए आवंटन किया गया है। 2021-22 में सीसीएपी को 30 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। वित्त वर्ष 2020-21 का अनुमानित बजट 40 करोड़ रुपए था, लेकिन इसे बाद में संशोधित करके 24 करोड़ रु़पए कर दिया गया था।
छत्तीसगढ़ में हाथी-मानव संघर्ष के मामले
उन्होंने यह भी बताया कि छत्तीसगढ़ में 2018-19 में 26,889 मानव-हाथी संघर्ष के मामले सामने आए थे, जबकि 2019-20 में ये मामले घटकर 25,563 रह गए।
नदियों के किनारे निर्माण
सुप्रियो ने एक दूसरे सवाल के जवाब में साफ किया कि देश में नदियों के किनारे किसी भी तरह के निर्माण का मामला सामने नहीं आया है।
इलेक्ट्रॉनिक कचरे की मात्रा
देश में इलेक्ट्रॉनिक सामान के उत्पादन के साथ-साथ कचरा भी बढ़ता जा रहा है। सुप्रियो ने सदन को बताया कि वित्तीय वर्ष 2017-2018, वित्त वर्ष 2018-2019 और वित्तीय वर्ष 2019-2020 के दौरान 21 प्रकार के इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों (ईईई) के लिए अनुमानित कचरे का उत्पादन 7,08,445 टन, 7,71,215 टन और 10,14,961.2 टन रहा। जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में उत्पादन की दर 31.6 फीसदी थी और वित्त वर्ष 2018-2019 के लिए उत्पादन की दर 8.86 फीसदी रही।