कृषि

एमएसपी से आधे कीमत पर मक्का बेचने को मजबूर किसान

कोरोनावायरस संक्रमण और लॉकडाउन की वजह से मक्के की खरीद में काफी कमी आई है

Manish Chandra Mishra

कोविड-19 से लड़ने के लिए लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन का असर मक्का किसानों पर देखने को मिल रहा है। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य तो दूर, मक्का बेचकर लागत तक नहीं मिल पा रहा है। इस वक्त मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 रुपए प्रति क्विंटल है, लेकिन सिवनी के मोहन सिंह ने कृषि उपज मंडी सिमरिया पर 5 जून तो 1020 रुपए में अपना मक्का बेचा। कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेज (सीएसीपी) के अनुसार एक क्विंटल मक्का उपजाने में 1213 रुपए का खर्च आता है। इस लिहाज से मोहन सिंह को लागत मूल्य भी नहीं मिल पाया। देशभर में ऐसे हजारों मक्का किसान हैं जिन्हें इस साल लागत मूल्य भी नहीं मिल पाया।

मध्यप्रदेश में सिवनी और छिंदवाड़ा में प्रदेश में सबसे अधिक मक्के की खेती होती है। यहां के किसानों को 900 से 1000 रुपए प्रति क्विंटल का दर मिल रहा है। इस तरह उन्हें हर एकड़ मक्के की फसल पर 14 से 16 हजार रुपए का नुकसान झेलना पड़ रहा है। सिवनी में लगभग 4 लाख 35 हजार एकड़ में मक्का की बोनी हुई थी। अकेले सिवनी जिले के किसानों को 600 करोड़ के करीब का घाटा सहना पढ़ रहा है।

मक्का किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने के लिए मई महीने में युवा किसानों ने ऑनलाइन आंदोलन शुरू किया। आंदोलन के बारे में बताते हुए सिवनी के युवा समाजसेवी गौरव जायसवाल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि युवा किसान नए माध्यमों से आपस में जुड़े हुए हैं और इससे पहले कई बार जमीनी आंदोलन कर चुके हैं। कोविड-19 का खतरा देखते हुए इसबार इसे सोशल मीडिया पर किसान सत्याग्रह नाम से शुरू किया गया। कई वॉट्सएप ग्रुप पर किसानों को जोड़ा गया। आंदोलन में किसानों ने वीडिया बनाकर और प्ले कार्ड पर संदेश लिखकर समर्थन भेजना शुरू किया।

शुरुआत में ही कुछ दबाव बना और जबलपुर मंडी बोर्ड ने आदेश दिया कि कृषि उपज मंडी अधनियम 1972 की धारा 36(3) के तहत मक्का समर्थन मूल्य से कम में नहीं बिकना चाहिए। हालांकि, बावजूद इस आदेश के मक्के को 900 से 1000 रुपए से अधिक कीमत नहीं मिल रही है। आंदोलन में आगे किसानों ने 11 जून को एक दिन का उपवास रखा। जायसवाल बताते हैं कि उपवास में देशभर से किसानों के अलावा आम लोगों का समर्थन भी मिला और अलग-अलग क्षेत्र से जुड़े लोगों ने उपवास की बात सोशल मीडिया पर साझा की। किसानों ने आंदोलन के दौरान नेताओं की तस्वीर के सामने अपना मक्का दान भी किया। इस आंदोलन को हर रोज दो से ढाई लाख सोशल मीडिया उपयोगकर्ता का समर्थन मिल रहा है। भोपाल में गांधीवादी संगठन एकता परिषद ने भी किसानों के समर्थन में 12 जून से 24 घंटे का उपवास शुरू किया है।

आयात और लॉकडाउन से मक्के की कीमत गिरी

जायसवाल बताते हैं कि इस वर्ष खरीफ़ सीजन में मक्का की फसल आने के बाद दाम तेजी से ऊपर गए। दिसंबर और मध्य जनवरी तक मक्के के दाम 2100-2200 तक थे, पर सरकार ने 3 देशों रसिया, यूक्रेन, बर्मा से मक्के का आयात शुरू कर दिया। नतीजतन देश में जो मक्का 2200 तक बिक रहा था, उसकी कीमत जमीन के तरफ बढ़ने लगी। विदेश से मक्का भारत के पोर्ट तक 1800 में पहुंच रहा था। लॉकडाउन में पॉल्ट्री उद्योग के तबाह होने की वजह से भी मक्का की मांग कम हो गई।