कृषि

किसानों का दम घोंट रहा है केमिकल खाद से निकलने वाला अतिरिक्त सेलेनियम

सेलेनियम से भरपूर कीटनाशकों के ज्यादा उपयोग से एयरोसोल बनते हैं, जो फेफड़ों के कैंसर और अस्थमा का कारण हो सकते हैं

Lalit Maurya

शोधकर्ताओं के अनुसार कीटनाशकों और अन्य प्राकृतिक स्रोतों से निकलने वाला सेलेनियम वायु को प्रदूषित कर रहा है। जिसके कारण फेफड़े का कैंसर, अस्थमा और टाइप 2 मधुमेह जैसी बीमारियां हो सकती हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया द्वारा किया गया यह अध्ययन अंतराष्ट्रीय जर्नल एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। जिसमें सेलेनियम युक्त एरोसोल और उसकी संरचना के बारे में बताया गया है। साथ ही यह कण किस तरह हमारे फेफड़ों और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है, इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है।

यूसीआर में एटमॉस्फेरिक साइंस विषय की एसोसिएट प्रोफेसर और इस अध्ययन से जुड़ी रोया बहरीनी ने बताया कि यह ऐरोसोल्स ऐसी किसी भी जगह हो सकते हैं, जहां मिटटी में सेलेनियम की मात्रा अधिक हो। यही वजह है कि इससे किसानों को सबसे ज्यादा खतरा है। वहीं प्रदूषित मिटटी और खेतों  के पास रहने वाले लोग भी इसके चलते बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं।

आमतौर पर पर्यावरण में प्राकृतिक रूप से भी सेलेनियम पाया जाता है। लेकिन मानव निर्मित स्रोतों जैसे कीटनाशकों से निकला अतिरिक्त सेलेनियम भी मिट्टी द्वारा सोख लिया जाता है। जो पौधों में पहुंच जाता है। एक बार उत्सर्जित होने के बाद यह सेलेनियम युक्त वाष्प एरोसोल में बदल जाती है। जिसमें डाइमिथाइल सेलेनाइड के साथ-साथ वायु में मौजूद अन्य केमिकल होते हैं। यह एरोसोल करीब एक सप्ताह तक हवा में रह सकते हैं।

सामान्यतः हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए सेलेनियम की थोड़ी मात्रा जरुरी है। जिसकी कमी से थायराइड हो सकता है और हड्डियों का विकास प्रभावित हो सकता है। लेकिन जैसे की हर चीज की अति नुकसानदायक होती है। उसी प्रकार फेफड़ों में सूजन आ सकती है। साथ ही सांस की समस्या और पेट एवं आंत संबंधी विकार, बालों का झड़ना और मानसिक आघात जैसी बीमारियां हो सकती हैं। हालांकि सेलेनियम युक्त ऐरोसोल्स मनुष्य पर क्या प्रभाव डालते हैं, यह पूरी तरह साफ़ नहीं था।

इसी को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में इन एयरोसोल को बना कर उसपर अध्ययन किया है। इससे पहले चूहे पर किये गए अध्ययन में भी यह बात सामने आयी थी कि फेफड़ों में सूजन पैदा करने के साथ-साथ उन्हें नुकसान भी पहुंचा सकता है। यूसीआर में एनवायर्नमेंटल टॉक्सिकोलॉजी के सहायक प्रोफेसर यिंग-हसन लिन ने बताया कि यह नवीनतम अध्ययन इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि डायमिथाइल सेलेनाइड से एरोसोल कैसे बनते हैं और यह इंसानों को कैसे प्रभावित कर सकता है।

इसे समझने के लिए लिन और उनकी टीम ने अपनी प्रयोगशाला में मानव फेफड़े की कोशिकाओं पर इन एरोसोल का परीक्षण किया है। जिससे उन्हें पता चला कि यह ऐरोसोल्स फेफड़े के सुरक्षात्मक अवरोध को नुकसान पंहुचा सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि लम्बे समय तक इन अधिक मात्रा में सेलेनियम युक्त ऐरोसोल्स के संपर्क में रहने से फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है।

इसके साथ ही इस बात के भी सबूत मिले हैं कि इसके चलते फेफड़ों की सूजन और एलर्जी  भी हो सकती है। लीन ने बताया कि यह ग्लूकोज मेटाबोलिस्म को भी प्रभावित कर सकता है। जिसके कारण अस्थमा और टाइप-2 डायबिटीज जैसे रोग हो सकते हैं।