कृषि

मिट्टी की सेहत बताने वाले कार्ड पर किसान को भरोसा नहीं!

चार साल पहले प्रधानमंत्री ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू की थी, लेकिन अब तक किसान इस पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं

Raju Sajwan

किसानों को उनकी मिट्टी की उपजाऊ शक्ति के बारे में बताने के लिए मोदी सरकार ने फरवरी 2015 में मृदा स्वास्थ्य कार्ड (सॉयल हेल्थ कार्ड) योजना लान्च की थी, लेकिन चार साल बीतने के बाद भी इसके परिणाम देखने को नहीं मिल पाए हैं, बल्कि किसान अब तक इस पर भरोसा नहीं कर पाए हैं। सोमवार को केंद्रीय कृषि मंत्रालय और राज्यों के कृषि मंत्रियों के बीच हुई बैठक में इस योजना पर सवाल खड़े करते हुए कहा गया कि सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए कि आखिर किसान इन मृदा स्वास्थ्य कार्डों पर भरोसा क्यों नहीं कर रहा है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान के सूरतगढ़ में 19 फरवरी 2015 को "स्वस्थ धरा, खेत हरा" का नारा देते हुए मृदा स्वास्थ्य कार्ड (सॉइल हेल्थ कार्ड) स्कीम की शुरुआत की थी। सरकार का दावा है कि चार साल के दौरान 21 करोड़ से अधिक कार्ड जारी किए जा चुके हैं। लेकिन इन कार्ड पर किसान भरोसा क्यों नहीं कर रहा है। इस बारे में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एग्रीकलचरल एक्सटेंशन मैनेजमेंट (मैनेज), हैदराबाद की एक स्टडी रिपोर्ट बताती है कि किसानों की शिकायत है कि फील्ड स्टाफ ने मिट्टी का नमूना उनकी उपस्थिति में नहीं लिया।

आधुनिक खेती के लिए कई राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके फरीदाबाद के प्रगतिशाल किसान धर्मपाल त्यागी बताते हैं कि पिछले साल जब उनके पास सॉयल हेल्थ कार्ड आया तो वह चौंक गए, क्योंकि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब उनके खेतों से मिट्‌टी के नमूने लिए गए और जो रिपोर्ट दिखाई गई, उसमें पीएच की मात्रा 8 थी, जबकि वे अपने खेतों की मिट्‌टी की जांच निरंतर कराते रहते हैं, जिसमें पीएच की मात्रा 7 रहती है। इस बारे में कृषि अधिकारियों से बात भी की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। त्यागी कहते हैं कि इस तरह की गलत रिपोर्ट से खेत की मिट्‌टी को फायदा पहुंचने की बजाय नुकसान हो सकता है।

दरअसल, मिट्टी जांच की पूरी प्रक्रिया भी सवालों के घेरे में हैँ। हरियाणा कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि खेतों से मिट्‌टी के नमूने लेने का काम फसल के दौरान नहीं किया जा सकता, क्योंकि उस समय खेत में उर्वरक होते हैं, इसलिए फसल कटने के कुछ दिन बाद मिट्‌टी के नमूने लिए जाने चाहिए। और यदि इस बात का ध्यान रखा जाए तो साल भर में केवल अप्रैल-मई के बीच डेढ़ माह और अक्टूबर माह के बीच 15 से 20 दिन के भीतर ही मिट्टी के नमूने लिए जाने चाहिए। लेकिन सरकार की ओर से दबाव रहा कि जल्द से जल्द नमूने लिए जाएं। बाकायदा कृषि अधिकारियों के लक्ष्य निर्धारित कर दिया गया, इसका उल्टा असर हुआ और कृषि अधिकारियों ने फाइलों में लक्ष्य हासिल कर लिया। वह बताते हैं कि राज्य में कृषि विभाग में फील्ड स्टाफ की संख्या की काफी कमी है।

किसानों की एक और दिक्कत है। उन्हें इस कार्ड में लिखी बातें समझ में नहीं आती। जैसे कि सल्फर, जिंक, ऑयरन, मैगजीन की मात्रा के बारे में आम किसान को ज्यादा जानकारी नहीं होती। अपने खेतों की मिट्टी की बारीक जानकारी रखने वाले धर्मपाल त्यागी कहते हैं कि यह मृदा स्वास्थ्य कार्ड ठीक उसी तरह से है, जैसा आदमी की डॉग्नॉस्टिक रिपोर्ट होती है। जिसे डॉक्टर की मदद के बिना नहीं समझा जा सकता, वैसे ही सॉइल हेल्थ कार्ड को पढ़कर किसान नहीं समझ सकता कि उसके खेत की मिट्टी में क्या-क्या रसायन मिला है। उसके लिए किसानों को कृषि विकास अधिकारियों की मदद लेनी पड़ती है, लेकिन कृषि विकास अधिकारियों की संख्या लगातार कम हो रही है। जहां पहले 15 से 20 गांवों पर एक विकास अधिकारी होता था, अब उसे 100 से 105 गांव कवर करने होते हैं। इसलिए जब तक बिजाई का समय आता है, किसान को कोई बताने नहीं आता कि सॉइल हेल्थ कार्ड के हिसाब से उसे आगे क्या करना है। मैनेज हैदराबाद की रिपोर्ट में भी यह बात कही गई है कि अध्ययन के दौरान पाया गया कि 44 फीसदी किसान रिपोर्ट में लिखी सलाह को समझ नहीं पा रहे थे।