“छुट्टा मवेशियों के कारण हमने अपनी खेती का रकबा ही कम कर दिया है। क्या करें कब तक ताकें। रखवाली करने वालों को भी पैसा देना पड़ता है और इसके अलावा खेतों में कटीली बाड़ भी लगानी पड़ती है। तब जाकर कुछ खेती बच पाती है। और यह सब बहुत ही खर्चीला है। यह सभी के लिए संभव नहीं है। ” यह बात मध्य प्रदेश के चुरहट जिले के हिनौती गांव के किसान ददुल्ले प्रसाद (63 वर्ष) ने बड़े ही दुखी मन से बताया।
वह कहते हैं कि पूरे खेत में बाड़ लगाना और उसकी रखवाली करने का मतलब है कि जो भी अनाज हुआ है उसे बेच कर उसका चुकता करदो। यह मुसीबत अकेले इस गांव के ददुल्ले प्रसाद की ही नहीं है बल्कि खुले में घूम रहे छ्ट्टा जानवरों से हर ग्रामीण परेशान है।
हालांकि इस गांव में ऐसा पहली बार हुआ है कि मवेशियों के डर से लोगों ने अपने पूरे के पूरे खेतों में फसल लगाना मुनासिब नहीं समझा। क्योंकि ऐसे जानवारों से बचाने के लिए खर्च की गई लागत भी अब खेती की लगात में जुड़ने से किसान के पास कौड़ी भी नहीं बचत होती है।
प्रसाद कहते हैं कि पिछले रबी सीजन में हमने अपने घर से दूर नदी किनारे के चार खेतों को यू ही छोड़ दिया, क्योंकि घर से इस खेत की दूरी ही दो से ढाई किलोमीटर है। ऐसे में वहां फसल लगा कर आप चैन की बंसी नहीं बजा सकते है कि छुट्टा मवेशी इसे छोड़ देंगे। वह कहते हैं कि इस बार तो हमने पिछले साल की तुलना में सात खेतों को छोड़ दिया है।
गांव के ही एक अन्य किसान दिनकर प्रसाद कहते है कि हमने भी इस बार घर से दूर खेतों को ऐसे ही छोड़ दिया है। इसके अलावा एक अन्य गांव जो कि सीधी जिले के संजय राष्ट्रीय पार्क से लगा हुआ है, यहां के किसान अजय श्रीवास्तव बताते हैं कि हमने अभी तक खेत नहीं छोड़ा है लेकिन भविष्य में हम ऐसा कर सकते हैं, क्योंकि आवारा मवेशियों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही है।
इसके अलावा रीवा जिले के दुआरी गांव की किसान उषा अग्निहोत्री कहती हैं कि पिछले सीजन में तो हमने पूरा का पूरा खेत ही छोड़ दिया क्योंकि फसल की बुआई, पानी और खाद आदि का खर्च करने के बाद मवेशी ही चरने वाले हैं तो फिर पैसा क्यों लगाएं।
वह कहती हैं कि अब तो हालात ये है कि हमारे गांव में इक्का-दुक्का ही किसानों ने पिछले सीजन में खेती की थी। क्योंकि उन सभी ने अपने खेतों में कंटीली तारों की बाड़ खेतों के चारों ओर लगवाई है तब जाकर उनकी खेती हुई।
उनका कहना है कि चूंकि इस गांव में अधिकांश खेती मजदूरों को इस शर्त पर दी जाती है कि हम खेत दे रहे हैं आप इसमें अपनी लागत से फसल आदि लगाओ और बाद में फसल का आधा-आधा बांट लिया जाएगा। ऐसे सवाल उठता है कि गरीब मजदूर पहले देखता है कि खेतों में बाड़ लगी है तो लेता है नहीं तो नहीं लेता।
छुट्टा पशुओं की समस्याओं को लेकर याचिकाकर्ता किसान सतीश कुमार वर्मा ने 2008 में जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर हाईकोर्ट ने सिंतबर 2015 में सरकार को आदेश दिया था कि आवारा पशुओें को लेकर सरकार कड़ा फैसला लें। लेकिन उस समय कोई कार्रवाई नहीं हुई।
उसके बाद छुट्टा पशुओं की समस्याओं को लेकर 2018 में बृजेंद्र यादव ने और 2019 में पुर्णिमा यादव ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर जनवरी, 2021 में हाईकोर्ट ने सरकार को मवेशियों के खुले घूमने पर प्रतिबंध लगाने के लिए चेतावनी दी। इसके बाद राज्य सरकार ने नगर पालिका विधि संशोधन अधिनियम 2022 लाने का फैसला लिया।
इस अधिनियम के तहत जिसके पशु छुट्टा घूमेंगे उसके मालिक पर जुर्माना लगाया जाएगा। इस अधिनियम के तहत पशुओं को छुट्टा छोड़ने पर पशु मालिक के ऊपर एक हजार रुपए जुर्माना लगेगा। अधिनियम में इसका उल्लेख किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर अपने पशु को किसी सार्वजनिक स्थान पर या ऐसे स्थान पर छोड़ता है जहां किसी की संपत्ति को नुकसान होता है या किसी सार्वजनिक कार्यों में बांधा पहुंचती है तो पशु पालने वाले मालिक को एक हजार रुपए जुर्माना देना पड़ेगा।
लेकिन यहां एक बड़ा सवाल है कि आखिर उस मालिक की पहचान कैसे की जाएगी। इस संबंध में अधिनियम कुछ भी नहीं कहा गया है। ऐसे में यह कानून भी बस दिखावे भर के लिए होगा। हालांकि यहां ध्यान देने की बात है कि जून, 2021 में नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) ने मालिक की पहचान संबंधी समस्या से छुटकारा पाने के मकसद से एक महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की थी। तबकि एनडीएमसी की घोषणा के अनुसार मवेशियों पर एक चिप लगाई जाएगी जिसमें उनके मालिकों की जानकारी होगी। बताया गया था कि इस चिप का उपयोग करते हुए अधिकारी मवेशी के मालिकों का पता लगा सकेंगे।
इसक अलावा राज्य सरकार ने छुट्टा जानवरों से निजात पाने के लिए यह भी घोषणा की है कि एक गाय पालने पर नौ सौ रुपए का अनुदान दिया जाएगा। राज्य के मुख्यमंत्री ने यह घोषणा नीति आयोग की एक कार्यशाला के दौरान की। मध्य प्रदेश सरकार की तरह ही इस प्रकार का कानून गुजरात राज्य सरकार ने भी परित किया है और हाल ही में उत्त प्रदेश सरकार ने भी इसी प्रकार का कानून लागू करने की घोषणा की है।
ध्यान रहे कि उत्तर प्रदेश के चुनााव के दौरान बहराइच में किसानों के दर्द को भांपते हुए चुनावी सभा को संबोधित करने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 मार्च, 2022 के बाद से छुट्टा जानवरों से छुटकारा दिलाने को लेकर बड़ा वादा किया था। प्रधानमंत्री ने कहा था कि राज्य के किसानों को छुट्टा जानवरों से हो रही दिक्कतों को हम गंभीरता से ले रहे हैं।
संभवत: यही कारण है कि अब नीति आयोग (जिसके अध्यक्ष खुद प्रधानमंत्री हेाते हैं) ने छुट्टा जानवरों की दिशा में काम करना शुरू किया है। गाय के गोबर के व्यावसायिक इस्तेमाल और किसानों के लिए बोझ बनने वाले आवारा पशुओं से जुड़े अलग-अलग मसलों को हल करने को लेकर नीति आयोग एक रोडमैप तैयार कर रहा है।
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने इस बात की जानकारी देते हुए कहा कि हम गोशाला अर्थव्यवस्था में सुधार करने को इच्छुक हैं। नीति आयोग ने आर्थिक शोध संस्थान (एनसीएईआर) गोशालाओं से व्यावसायिक लाभ हासिल करने और उसके अर्थशास्त्र पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए भी कहा है।
रमेश चंद के नेतृत्व में सरकारी अधिकारियों की एक टीम ने वृंदावन (उत्तर प्रदेश), राजस्थान और भारत के अन्य हिस्सों में बड़ी गोशालाओं का दौरा किया और उनकी स्थिति का आकलन किया है। उन्होंने बताया कि 10 या 15 फीसदी गायें थोड़ी मात्रा में दूध देती हैं लेकिन यह श्रम, चारा और उपचार की लागत को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। रमेश चंद के अनुसार अवांछित मवेशियों को खुले में छोड़ना फसलों के लिए हानिकारक है इसलिए गोशाला अर्थव्यवस्था पर काम किया जा रहा है।
केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय द्वारा जनवरी, 2020 को जारी 20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार भारत में 50 लाख से अधिक आवारा मवेशी हैं। देश में आवारा मवेशियों के बढ़ने के कई कारण हैं। पिछले कुछ दशकों में स्वदेशी मवेशियों की उपेक्षा हुई है और क्रॉसब्रीडिंग (संकर) पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया गया है। मशीनीकरण के बढ़ने व गोहत्या पर राष्ट्रीय प्रतिबंध ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।
आवारा मवेशियों में गाय, बैल या बछड़े मुख्य रूप से शामिल होते हैं जिन्हें अनुत्पादक होने के कारण छोड़ दिया जाता है। यह समस्या इस कदर विकराल हो चुकी है कि छुट्टा मवेशियों को गोशालाओं में रखना पर्याप्त नहीं है। यही वजह है कि राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत बनी गोशालाएं अधिक प्रभावी नहीं हो पा रही हैं। पशुधन जनगणना बताती है कि आवारा मवेशियों की सबसे अधिक आबादी वाले 10 राज्यों में से सात में 2012 से 2019 के बीच इनकी संख्या बढ़ी है। हालात ये हैं कि मवेशियों की कुल आबादी के 70 प्रतिशत से अधिक हिस्से (क्रॉसब्रीड एवं नॉन डिस्क्रिप्ट) पर आवारा अथवा परित्याज्य होने का खतरा मंडरा रहा है।