कृषि

किसान आंदोलन: दो मांगों पर सहमति बनी, 4 जनवरी को होगी अगली बैठक

DTE Staff

किसान संगठनों और सरकार के बीच 30 दिसंबर को बैठक हुई। सरकार और किसान संगठनों के बीच दो मांगों को लेकर सहमति बन गई है, लेकिन कृषि कानूनों को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी वाली मांग पर सहमति नहीं बन पाई। इन दो मांगों पर 4 जनवरी को फिर से बैठक होगी।

जिन दो मांगों को मानने के लिए सरकार तैयार है, उनमें पराली जलाने पर कानूनी कार्रवाई की इजाजत देने वाले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग अध्यादेश 2020 और विद्युत संशोधन विधेयक 2020 में संशोधन की बात प्रमुख है।

बैठक में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तौमर और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल उपस्थित थे। बैठक में शुरु से किसान संगठन मांग कर रहे थे कि उनके द्वारा प्रस्तावित एजेंडे पर बात की जाए।
किसानों के एजेंडे में पहला प्रस्ताव तीनों कृषि कानून वापस लेने की प्रक्रिया बनाने और दूसरा एमएसपी की गारंटी वाला कानून बनाने का प्रस्ताव था, लेकिन सरकार ने इन प्रस्तावों की बजाय किसानों के तीसरे और चौथे प्रस्ताव को मान लिया। 

किसान संगठनों के एमएसपी पर कानून बनाने के प्रस्‍ताव पर कृषि मंत्री ने बताया कि कृषि उपज की एमएसपी तथा उनके बाजार भाव के अंतर के समाधान हेतु समिति का गठन किया जा सकता है। जबकि तीनों कानून वापस लेने से संबंधित सुझाव के संबंध में कृषि मंत्री ने कहा, इस पर कमेटी का गठन करके किसान के हितों को ध्‍यान में रखते हुए विकल्‍पों के आधार पर विचार किया सकता है।

उधर किसान संगठनों ने कहा है कि सरकार ने जिस तरह से दो मुद्दों पर सौहार्दता दिखाई है, उसके चलते किसानों द्वारा 31 दिसंबर को प्रस्तावित ट्रैक्टर मार्च फिलहाल टाल दिया है। किसान संगठनों ने 31 दिसंबर को कृंडली पलवल गाजियाबाद एक्सप्रेव वे पर ट्रैक्टर मार्च निकालने की घोषणा की थी।

किसान संगठनों और सरकार के बीच इससे पहले पांच दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन ये सभी दौर विफल रहे। सरकार ने बीच में कुछ प्रस्ताव भी किसानों को भेजे थे, लेकिन किसान संगठनों ने इन्हें मानने से इंकार कर दिया था। किसान संगठनों का कहना है कि जब तक सरकार कृषि कानूनों को वापस नहीं लेगी, वे अपना आंदोलन वापस नहीं लेंगे। 

इससे पहले आज केंद्रीय मंत्री सोम प्रकाश ने कहा था कि सरकार चाहती थी कि किसान सरकार की बात मानते हुए आंदोलन वापस ले ले और नए साल का जश्न अपने घर में मनाए।